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Updated: 26 मार्च, 2015 07:11 AM
एश्लिन मैथ्यू
एश्लिन मैथ्यू
 
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हमें डरना चाहिए. हकीकत में बेहद डरना चाहिए. हो सकता है कि यही उनकी मंशा भी हो. वरना चर्च पर हमलों और हमारे इतिहास का संप्रदायीकरण करने को जायज ठहराने वाले विहिप नेताओं की और क्या मंशा हो सकती है? ताजा घटनाक्रम में विहिप के संयुक्त महासचिव सुरेन्द्र जैन ने आक्रामक तरीके से हरियाणा के हिसार में एक चर्च को गिराए जाने के फैसले का बचाव किया. और सवाल उठाया कि क्या ईसाई समुदाय वेटिकन सिटी में एक हनुमान मंदिर बनाने की इजाजत देगा?

जैन आसानी से भूल गए कि भारत एक शहर या एक राज्य नहीं है बल्कि हम एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी गणतंत्र देश हैं. यह चर्च हरिद्वार के घाट पर नहीं हिसार में बनाया जा रहा था. यह अंबाला, झज्जर या यहां तक कि रोहतक भी हो सकता था.

मैं ईसाई हूँ और मैंने एक बार भी प्रार्थना नहीं की है. लेकिन जैन ने इतिहास का संप्रदायीकरण करने का फैसला कर लिया है. वो जोर देकर कहते हैं कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम एक सांप्रदायिक युद्ध था और अगर ईसाइयों ने धर्मांतरण बंद नहीं किया तो इसी तरह का युद्ध फिर छेड़ा जाएगा. इसी बात ने मुझे, मेरे अंदर, मेरे धर्म की तीव्रता को साबित करने के लिए उकसाया. शायद यही वजह है कि मैं उस वक्त उल्लास में मुस्कुरा रही थी, जब केरल सरकार ने परिवर्तित ईसाइयों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शोध कराने का फैसला लिया और इसके लिए अपने बजट में पांच करोड़ रुपये आवंटित किए.

विहिप नेताओं को अगर धर्मांतरण से परेशानी है तो उन्हें वहां जाकर लोगों की समस्याओं का समाधान करना चाहिए, जहां बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ है. भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा धर्म में आस्था रखता है और वो अक्सर अपने अस्तित्व के लिए संप्रदाय की तरफ देखता है. यह एक अप्राकृतिक उम्मीद है. लेकिन धार्मिक संप्रदाय अपने अनुयायियों में देखभाल की यही उम्मीद जगाते हैं. और उम्मीद पूरी न होने के चलते जब कोई दूसरा संप्रदाय उनकी मौलिक जरूरतों को पूरा करता है तो ये धर्मांतरण का लालच बन जाता है. यह बेहतर जीवन और बेहतर आर्थिक हालात का मामला है. कौन जानता है कि मैं अपने घर में किस ईश्वर की पूजा करती हूँ और किसके लिए मोमबत्ती जलाती हूँ- राम, अल्लाह या यीशु.

अगर इन पुजारियों के पास दुल्हानों का कोई गोपनीय समूह है और मैं उसमें से एक को भी खोजने में सक्षम नहीं हूँ तो क्यों नहीं मुझे अपना धर्म परिवर्तित करना चाहिए? शायद यह सही वक्त है जब धर्म-आशंकित नेता अपने अनुयायियों को पहले ये बताएं कि हमें एक लड़की के जन्म पर जश्न क्यों मनाना चाहिए.

अगर मेरे धर्म का मकसद मेरे जीवन में बेहतर गुणवत्ता लाना होगा, तो कौन कहता है कि मैं इसे इस्तेमाल नहीं कर सकती. जब इंसान के अस्तित्व के लिए सारी जरूरतें पूरी हो जाएंगी तो धर्म पर विवाद का मुद्दा बंद हो जाएगा. न सिर्फ मध्यम वर्ग बल्कि अमीरों के लिए भी आकांक्षाएं असीमित होती हैं.

प्रवीण तोगडिया समेत विहिप के तमाम नेताओं को उन ग्रामीण इलाकों से शुरूआत करनी चाहिए जहां धर्मांतरण हुआ है और वहां स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण कराने के साथ-साथ विद्युतीकरण कराना चाहिए. चाहे वो ओडिशा हो, गुजरात हो, उत्तर प्रदेश या पश्चिम बंगाल. न कि बार-बार धर्मांतरण के खतरे का रट्टा लगाना चाहिए.

बिना पलक झपकाए इन सारे नेताओं ने मदर टेरेसा पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान का समर्थन किया. मैं इसलिए मिशनरीज ऑफ चेरिटी की आलोचना करती हूँ क्योंकि उन्होंने लगातार कैदियों, चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में देखभाल के लिए आधुनिक थेरेपी का उपयोग करने के लिए मना कर दिया.

लेकिन ये धर्मार्थ संस्थाएं इसलिए चल रही हैं क्योंकि लोगों को इनकी जरूरत है. एक संस्थान होने के नाते वहां पुरुष और महिलाएं बिना अपने धर्म पर ध्यान दिए अक्षम और बीमार लोगों की सेवा कर सकते हैं. कोई भी कभी भी ऐसा कर सकता है क्योंकि यहां काम का मतलब केवल सेवा है. आपका यह काम दुनिया में उन लोगों को भड़का सकता है जो खोखली बातें करते हैं. यह काम निश्चित रूप से दुर्गा वाहिनी शिविर चलाने से तो बेहतर है!

यहां तक कि प्रधानमंत्री की गहरी टिप्पणी से ऐसा लगता है कि वे भी अपनी छवि को ठीक करने के लिए दोबारा संप्रदायिकता की कड़ाही में डूबकी लगाने की तैयारी में हैं. क्या इसका यह मतलब निकालना चाहिए कि हमें अपने धर्म की रक्षा के लिए लड़ने के लिए बांहें चढ़ा कर तैयार रहना होगा?  यह भूलना आसान नहीं है कि आंख के बदले आंख की नीति पूरी दुनिया को अंधा बना देती है.

, आरएसएस, विहिप, घर वापसी

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