कश्मीर से धारा 370 हटाने को भारत का अंदरुनी मामला बता विदेश मंत्री ने तो इमरान खान की भद्द पिटा दी
एक तरह से 370 को भारत का आतंरिक मसला बताकर उन्होंने सऊदी में इमरान खान की भद्द पिटा दी है. कुरैशी के बयान और टाइमिंग के कई मायने हैं. दो पड़ोसी देशों के बीच कथित मध्यस्थ की भूमिका निभाते नजर आ रहे सऊदी अरब की इच्छा को कुरैशी ने झटका दिया है.
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जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने और उसे केंद्रशासित राज्यों में बांटने के फैसले पर पहली बार पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद शाह कुरैशी का ताजा बयान चर्चा में है. एक तरह से 370 को भारत का आतंरिक मसला बताकर उन्होंने सऊदी में इमरान खान की भद्द पिटा दी है. कुरैशी के बयान और टाइमिंग के कई मायने निकलते हैं. सबसे बड़ा मतलब तो यही है कि दो पड़ोसी देशों के बीच कथित मध्यस्थ की भूमिका निभाते नजर आ रहे सऊदी अरब की इच्छा को कुरैशी ने झटका दिया है.
भारत-पाकिस्तान के रिश्ते पुलवामा के बाद से ही खराब हैं. दोनों देशों में सहयोग और बातचीत पूरी तरह से बंद है. 2019 में जब कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया गया था तब पाकिस्तान ने काफी शोर-शराबा मचाया था. मुस्लिम देशों के संगठन खासकर सऊदी अरब से वहां दखल देने की मांग की थी. जब सऊदी ने कोई स्टैंड नहीं लिया तो कुरैशी ने हीला-हवाली बरतने का आरोप भी लगाया था. ये पाकिस्तान की ओर से नाराजगी मोल लेने वाला कदम था. हुआ भी ऐसा ही. पाकिस्तान पर सऊदी का अरबों डॉलर कर्ज है. इसे चुकाने का अल्टीमेटम मिलने लगा.
महामारी के बाद पाकिस्तान की आर्थिक हालत बुरी तरह से खस्ता है. महंगाई-बेरोजगारी की दर बेतहाशा बढ़ रही है. खराब अर्थव्यवस्था में इमरान सरकार पर विपक्षी पार्टियों का बहुत दबाव है. पाकिस्तान की ये हालत भारत की ओर से द्विपक्षीय व्यावसायिक कारोबार रद्द करने, पहले की तरह अमेरिका से मदद ना मिल पाने और हाल के दिनों में यूरोपीय देशों का कड़ा रुख है. सऊदी अरब ने हाथ खींचना शुरू किया तो इमरान का दर्द बढ़ने लगा.
इमरान खान को उम्मीद थी कि जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के बाद वहां व्यापक अशांति होगी और ऐसे माहौल में वो भारत पर दबाव बना लेगा. आर्थिक रूप से मजबूत इस्लामिक देश भी पाकिस्तान के साथ आएंगे. लेकिन जम्मू कश्मीर में सबकुछ इमरान खान की अपेक्षाओं के विपरीत हुआ. भारत सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर और कारगिल के इलाकों में शुरू परियोजनाओं और विकास कार्यों के आगे छिटपुट विरोध कमजोर साबित हुआ. पीएम मोदी के नेतृत्व में अरब कंट्रीज की मीडिया ने भी विकास कार्यों को काफी सराहा. जम्मू कश्मीर में लोकल बॉडी इलेक्शन भी शांतिपूर्ण तरीके से हुए और बीजेपी (मुस्लिमों का भी साथ मिला) बड़ी ताकत के रूप में उभरकर सामने आई.
जम्मू कश्मीर में अब तक की प्रगति का असर ये रहा कि पाकिस्तान को भारत की स्थितियों के आगे झुकना पड़ा. दोबारा रिश्ते सही करने की कोशिशों में लग गया. हाल के दिनों में इसके कई संकेत भी मिले. यह दावा भी किया गया कि गुप्त रूप से दोनों देशों के शीर्ष अफसरों के बीच दुबई में मीटिंग हुई. भारत के साथ बेहतर रिश्तों के हवाले से सऊदी अरब के मध्यस्थता की भी चर्चाएं हुईं. सऊदी अरब वैसे भी कई बार मध्यस्थता की पेशकश कर चुका है. सऊदी का हमेशा मानना रहा है कि दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति ना सिर्फ स्थानीय बल्कि उनके हित में भी है.
दोनों पड़ोसी देशों के बीच क्या पक रहा है ये बाद की बात है, मगर दोनों के झगड़े में "पंच" की भूमिका देख रहे सऊदी अरब को महमूद कुरैशी के बयान से तगड़ा धक्का पहुंचा होगा. बयान साफ संकेत है कि जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान अपने हितों से अलग दुनिया के किसी भी और मुल्क के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहता. निश्चित ही आधिकारिक यात्रा पर पहुंचे इमरान भी बयान से असहज हो गए होंगे. क्योंकि उनकी यात्रा हर लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. हाल के दिनों में रिश्ते सऊदी के साथ जिस तरह रिश्ते खराब हुए हैं उसे सुधारने के लिए दोनों देश सुप्रीम कोऑर्डिनेशन काउंसिल बनाने का विचार कर रहे हैं. आर्थिक सहयोग, स्ट्रेटजिक पार्टरनशिप, ऊर्जा, पर्यावरण और मीडिया पार्टनरशिप के मुद्दों पर भी बड़े समझौतों की उम्मीद थी.
पाक विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी
कश्मीर की मुस्लिम पहचान बड़ा करने की कोशिश
यह देखने वाली बात होगी कि कुरैशी के मौजूदा बयान का इमरान की यात्रा और उसके आउटकम पर क्या असर पड़ता है. वैसे समा टीवी से इंटरव्यू में आर्टिकल 370 को भारत का आतंरिक मसला बताते हुए कुरैशी ने पाकिस्तानी पेंच बचाए रखा. उन्होंने कहा- हम (पाकिस्तान) आर्टिकल 370 को ज्यादा अहमियत नहीं देते. हम 35A की वजह से परेशान हैं. क्योंकि कश्मीर के भूगोल और आबादी (मुस्लिम) का संतुलन बदलने की कोशिश है. वहां सुप्रीम कोर्ट में मामला भी चल रहा है और बड़े स्तर पर लोग विरोध भी कर रहे हैं.
मोदी के लिए कितना अहम है कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में अशांति और उसकी वजह से समूचे पनपा आतंकवाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती रही है. पिछले कई दशक से शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए सुलझाने के प्रयास हुए लेकिन नतीजा नहीं निकला. मोदी ने अपने कार्यकाल में आक्रामकता दिखाई और एकतरफा पहल की. भारत के लिहाज से अभी तक का डेवलपमेंट कई लिहाज से सकारात्मक है. अगर मोदी कश्मीर पर पाकिस्तान को पीछे हटाने में कामयाब हुए तो ये एनडीए सरकार की बड़ी उपलब्धि होगी. चुनावी लिहाज से भी मुद्दे की अहमियत समझ सकते हैं.
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