कांग्रेस के लिए दुश्मन नंबर वन बन गई हैं स्मृति ईरानी...
वर्तमान राजनितिक परिदृश्य में कांग्रेस को लेकर कितनी भी बातें क्यों न हों लेकिन एक सत्य ये भी है 2019 में लोकसभा की हार से ज्यादा अमेठी की हार ने कांग्रेस में एक अंसतोष पैदा किया है. जिससे गांधी परिवार के खिलाफ शीर्ष नेताओं का एक गुट खड़ा हो गया है.
-
Total Shares
साल 2019 लोकसभा चुनाव की हार से कांग्रेस को उतनी निराशा नहीं हुई जितनी की उसे अमेठी की हार से मिली. इस चुनाव में एनडीए की जीत भी अप्रत्याशित थी. दूसरे लोकसभा चुनाव में पहली बार एनडीए ने जीत दर्ज कर सत्ता वापसी की. वो भी पहले से काफी ज्यादा अंतराल से. लोग अनुमान लगा रहे थे कि एनडीए अगर जीती भी इस बार तो 2014 की तरह बीजेपी अकेले सरकार बनाने के उस जादुई आंक़ड़े तक शायद ही पहुंच पाएगी. लेकिन परिणाम जब आये तो सभी के अनुमान धरे के धरे रह गए. बीजेपी ने अकेले ही 303 सीटों पर कब्ज़ा किया जबकि एनडीए को कुल 353 सीटें मिली. बीजेपी और एनडीए गठबंधन की इस महाजीत के नायक नरेंद्र मोदी थे. लेकिन इन सबके बीच उस दिन अमेठी की जीत ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का कद उन नेताओं के बराबर ला खड़ा कर दिया जो देश की दिशा और दशा तय करते हैं.
2014 में मिली हार के बाद से ही स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी की नाक में दम करना शुरू कर दिया था
वहीं अमेठी में कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की हार ने गांधी परिवार से लेकर कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को हिला दिया. यहीं से गांधी परिवार व कांग्रेस को अपने पतन का एहसास होने लगा. वरना 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली हार को वह एक हवा का झोंके की तरह समझ रहे थे. और वह सोचकर बैठ गए थे कि 2019 में उनकी फिर से सत्ता वापसी हो जाएगी.
हार के बाद भी बुलंद हौसलों के साथ डटी स्मृति
साल 2014 के चुनाव में अमेठी में मिली हार के बाद स्मृति ईरानी ने निराश होकर बैठने के बजाय अमेठी में समय बिताना शुरू किया. अमेठी के लोगों के बीच बार – बार जाती रही. राहुल की कमी और अमेठी की जनता की समस्या समझने में पूरे 5 साल दिए. इस दौरान ईरानी लोगों से एक आत्मीय रिश्ता गढ़ने में जुटी रहीं.
वहां के लोगों की शिकायत भी रहती थी कि राहुल उस तरह से क्षेत्र के लोगों से आत्मीय संबंध नहीं बना पाए. जिस प्रकार से उनके पिता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का अमेठी के लोगों से आत्मीय रिश्ता था. शायद, राहुल अमेठी के सांसद होते हुए भी उतनी बार अमेठी नहीं गए होंगे जितनी बार स्मृति ईरानी ने 2014 – 2019 के बीच अमेठी का दौरा किया.
साल 2019 के चुनाव में मोदी फैक्टर तो देश भर में था लेकिन मोदी फैक्टर के साथ – साथ स्मृति फैक्टर ने अमेठी में गांधी परिवार के किला को ध्वस्त कर दिया.
हार से राहुल को मिली सीख
अमेठी की हार का अंदाजा भले ही किसी को न था लेकिन कांग्रेस और गांधी परिवार को इसके संकेत चुनाव से पहले ही मिल चुके थे. इसीलिए राहुल को कांग्रेस ने अमेठी के साथ – साथ वायनाड से भी चुनाव लड़वाया. वायनाड के सांसद बनने के बाद राहुल बार – बार वहां जा रहे हैं. इस तरह उन्हें कभी अमेठी जाते हुए नहीं देखा गया. अमेठी के लगातार तीन बार सांसद रहे राहुल 15 सालों में अमेठी उतनी बार बिल्कुल भी नहीं गए होंगे जितना उन्होंने अबतक वायनाड का दौरा कर चुके हैं.
साफ है राहुल को अब लगने लगा है कि सिर्फ चुनावी दौरे से काम नहीं चलेगा. अब जीतना है तो हर सुख – दुख में जनता के बीच रहना होगा. धरातल पर अपनी मौजूदगी दर्ज करानी होगी लिहाजा राहुल वायनाड का दौरा 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से निरंतर कर रहे हैं.
मोदी – शाह के बाद अब ईरानी बनी कांग्रेस की दुश्मन नं – 1
हाल के वर्षो में ये देखा गया है कि कांग्रेस के निशाने पर अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तुलना में ज्यादा रही हैं. मंहगाई से जुड़े मुद्दे पर सोशल मीडिया में कांग्रेस व उनके नेताओं द्वारा स्मृति ईरानी को सोशल मीडिया पर ज्यादा ट्रोल करने की कोशिश होती रही है.
कई बार पब्लिक प्लेस पर भी कांग्रेस के नेताओं द्वारा स्मृति ईरानी को टारगेट करने का प्रयास किया जाता रहा है. हाल ही में एक प्लेन में सफर के दौरान कांग्रेसी नेता डिसूजा ईरानी से उलझते दिखीं थी. स्मृति को टारगेट करने की वजह भी साफ है. ईरानी के हाथों अमेठी में राहुल की पराजय. कांग्रेस के लिए बेशक 2019 लोकसभा चुनाव की हार से ज्यादा दर्द देने वाली अमेठी की हार थी.
2019 लोकसभा चुनाव की हार कांग्रेस के लिए सबक थी तो अमेठी की हार गांधी परिवार व कांग्रेस के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी. जिस पार्टी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार ही अपनी सीट हार जाय तो उस पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट जाना स्वाभाविक है. 2019 लोकसभा चुनाव के बाद कई कांग्रेस के शीर्ष नेता पार्टी को अलविदा कह चुके हैं.
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कपिल सिब्बल हाल ही में समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं. इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएनसिंह, व जितिन प्रसाद जैसे नेता बीजेपी में आ चुके हैं. कांग्रेस अब भी अंत:कलह से जूझ रही है. कांग्रेस में 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से ही एक गुट कथित जी – 27 के सुर बगावती दिख रहे हैं.
शुरूआत से ही वो लगातार शीर्ष नेतृत्व को बदलने की मांग कर रहे हैं. लेकिन गांधी परिवार को ये शर्ते नामंजूर है. हाल ही में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष इसी प्रस्ताव को लेकर गए थे लेकिन प्रशांत किशोर के भी नेतृत्व में बदलाव करने वाले इस प्रस्ताव को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने खारिज कर दिया. वहीं एक सत्य ये भी है लोकसभा की हार से ज्यादा अमेठी की हार ने कांग्रेस में एक अंसतोष पैदा किया है. जिससे गांधी परिवार के खिलाफ शीर्ष नेताओं का एक गुट खड़ा हो गया है.
आपकी राय