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Updated: 04 फरवरी, 2021 01:15 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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दिल्ली की सीमाओं पर दो महीनों से भी ज्यादा समय से किसान आंदोलन (Farmer Protest) जारी है. किसान संगठनों की मांग है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानून (agricultural Laws) रद्द किए जाएं. साथ ही न्यूनतम समर्थम मूल्य (MSP) पर कानून बनाने की मांग को लेकर अड़े हुए हैं. इन किसान संगठनों का मानना है कि कृषि कानूनों के लागू होने से किसान की जमीन पर कॉरपोरेट का कब्जा हो जाएगा. किसान संगठनों के अनुसार, इन कानूनों के लागू होने पर किसान और खेती दोनों ही खत्म हो जाएंगे. वहीं, सरकार कानूनों में जरूरी बदलाव करने को तैयार है. MSP को लेकर लिखित गारंटी भी देने को राजी है. इन सबके बावजूद किसानों और मोदी सरकार (Modi Government) के बीच गतिरोध जारी है. अंतरराष्ट्रीय पॉप सिंगर रिहाना (Rihanna) और कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट करने के बाद बड़ी तादात में लोग इस विरोध प्रदर्शन को सही ठहरा रहा हैं. देश का एक बड़ा कथित 'बुद्धिजीवी वर्ग' इन हस्तियों के ट्वीट के जरिये किसान आंदोलन के पक्ष में माहौल बनाने के प्रयासों में जुट गया है. लेकिन, ये 'बुद्धिजीवी वर्ग' अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ (Gita Gopinath) को लेकर कुछ कहते नहीं दिखते हैं. जो भारत में इन कृषि कानूनों को लागू करने के पक्ष मे हैं. आखिर ऐसा क्यों है कि इस बुद्धिजावी वर्ग को केवल विरोध ही पसंद है? कृषि कानूनों का पक्ष लेने वालों से ये अपना मुंह क्यों मोड़ लेते हैं?

वैश्विक वित्तीय संस्थान की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कृषि कानूनों की तारीफ की थी.वैश्विक वित्तीय संस्थान की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कृषि कानूनों की तारीफ की थी.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ के अनुसार, मोदी सरकार के कृषि कानूनों में किसानों की आय बढ़ाने की क्षमता है. इसके साथ ही कमजोर किसानों को सामाजिक सुरक्षा देने की जरूरत है. गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां सुधार की जरूरत है. इन कानूनों से किसानों के लिए बाजार और ज्यादा बड़ा हो जाएगा. कुल मिलाकर एक वैश्विक वित्तीय संस्थान की मुख्य अर्थशास्त्री ने कृषि कानूनों की तारीफ की थी. उन्होंने इस बदलाव से होने वाले नुकसान से किसानों को बचाने के लिए सामाजिक सुरक्षा की भी सलाह दी. गीता को इस बुद्धिजीवी वर्ग ने केवल इस वजह से दरकिनार कर दिया कि उन्होंने कानूनों की बड़ाई कर दी थी. गीता गोपीनाथ चाहे जितनी बड़ी अर्थशास्त्री हों, अगर वे कृषि कानूनों के विरोध में नही हैं, तो इस वर्ग की नजर में उनकी अहमियत नहीं है.

बीते कुछ समय में भारत काफी कुछ बहुत तेजी से बदला है. असहिष्णुता को लेकर अवार्ड वापसी से लेकर CAA विरोधी प्रदर्शन तक आपको एक व्यवस्थित और विशिष्ट तरीके का विरोध प्रदर्शन नजर आएगा. ये कथित 'बुद्धिजीवी वर्ग' पर्दे के पीछे रहते हुए आंदोलन को अपने हिसाब से नचाता रहता है. इस वर्ग का पूरा ध्यान रहता है कि किसी भी तरह से आंदोलन कमजोर न पड़े. 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा और लाल किला पर अराजकता के बाद किसान आंदोलन कमजोर पड़ने लगा. दो दिनों के अंदर ही गाजीपुर बॉर्डर पर इस आंदोलन के एक नए 'नायक' राकेश टिकैत सामने आ गए. यह वर्ग विशेष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद साने आया है. आप मानें या नहीं, ये 'बुद्धिजीवी वर्ग' हर बार सरकार के खिलाफ किसी न किसी मुद्दे पर एक जैसी 'मॉडस ऑपरेंडी' अपनाते हुए आगे बढ़ता है. इसका उद्देश्य सीधे तौर पर अराजकता को बढ़ावा देना ही नजर आता है. शाहीन बाग की तरह किसी भी सड़क को घेरकर बैठ जाओ, सरकारी अवार्डों को वापस करो, कुछ बड़े और खास लोगों से मुद्दे का समर्थन प्राप्त करो. ये वर्ग ऐसा करता ही नजर आता है.

आंदोलन में मुख्य रूप से पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान ही हिस्सेदारी निभा रहे हैं.आंदोलन में मुख्य रूप से पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान ही हिस्सेदारी निभा रहे हैं.

ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हों कि किसान उनसे बस एक फोन कॉल की दूरी पर हैं. तब भी किसान संगठनों की ओर से बातचीत करने की कोशिशों का नजर न आना, एक प्रोपेगेंडा की तरह दिखता है. हालांकि, किसान संगठन 26 जनवरी को हुई हिंसा से सबक लेते हुए दिख रहे हैं. इसी की वजह से किसान नेता राकेश टिकैत ने 6 फरवरी को प्रस्तावित चक्का जाम को दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में करने से मना कर दिया है. गौर करने वाली बात ये भी है कि इस आंदोलन में मुख्य रूप से पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान ही हिस्सेदारी निभा रहे हैं. इसकी वजह से सरकार को ये कहने का मौका मिल रहा है कि किसानों का एक खास धड़ा ही इन कानूनों का विरोध कर रहा है. किसान संगठनों की कानूनों को रद्द करने की जिद की वजह से कोई हल नहीं निकल पा रहा है. 40 किसान संगठनों को मिलाकर बने संयुक्त किसान मोर्चा में अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं वाले संगठन जुड़े हैं. किसान संगठन सरकार के कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और इनकी आड़ लेकर ये कथित 'बुद्धिजीवी वर्ग' मोदी सरकार के विरोध की अपनी मंशा पूरा कर रहा है. कृषि कानूनों के लागू होने के बाद किसान खत्म हो जाएंगे, इस काल्पनिक स्थिति को ये 'बुद्धिजीवी वर्ग' किसान संगठनों के जरिये किसानों तक पहुंचाने में लगातार कामयाब रहा है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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