केजरीवाल की सियासी सेहत पर दिल्ली की हार ये असर हो सकता है
वो दिल्ली का ही एक चुनाव रहा जिससे सत्ता और राजनीति के बाजार में ब्रांड मोदी को झटका लगा - और अब जाकर यूपी चुनाव से वापस आया है. ये दिल्ली का ही चुनाव है कि ब्रांड केजरीवाल को बड़ा झटका दिया है, खासकर पंजाब और गोवा की करारी हार के बाद.
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दिल्ली उपचुनाव के रिजल्ट का अरविंद केजरीवाल की सियासी सेहत पर आखिर कितना असर होगा? क्या राजौरी गार्डन के नतीजे का दिल्ली सरकार पर भी असर होगा? क्या इस नतीजे से आम आदमी पार्टी भी प्रभावित होगी?
इन सवालों के जवाब भले अलग अलग हों लेकिन सभी में एक बात कॉमन है - असर तो होगा ही. केजरीवाल की सियासी सेहत पर तो असर होगा लेकिन दिल्ली सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. हां, संभव है आप के अंदर विरोध के कुछ स्वर तेज हो जायें.
रही बात राजौरी गार्डन के हार की अरविंद केजरीवाल, दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पर असर की तो आइए समझने की कोशिश करते हैं.
दिल्ली में
राजौरी गार्डन में आम आदमी पार्टी कैंडिडेट की हार को उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली वालों के गुस्से से जोड़ा है. हालांकि, सिसोदिया का कहना है कि राजौरी गार्डन के लोग आप विधायक जरनैल सिंह के इस्तीफे से नाराज थे. जरनैल सिंह ने पंजाब चुनाव में प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए अपनी विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. आप ने जरनैल को दोबारा टिकट न देकर दूसरे उम्मीदवार को मैदान में उतारा जिसकी जमानत जब्त हो गयी.
अगला इम्तिहान एमसीडी चुनाव
केजरीवाल के पुराने साथी योगेंद्र यादव ने आप की हार का अपने तरीके से विश्लेषण किया है. योगेंद्र यादव राजनीति में भले ही अब तक संघर्ष कर रहे हों, लेकिन चुनाव विश्लेषण के मामले में उनका बड़ा नाम रहा है. आप को मिलने वाले सपोर्ट में गिरावट को उन्होंने एक ट्वीट में समझाने की कोशिश की है.
Rajouri Garden by-poll: AAP losing deposit where it won2015: AAP 47% BJP+ 38% Cong 12%Current count 4th round: BJP+ 50% Cong 33% AAP 10%
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) April 13, 2017
आप की इस हार का दिल्ली सरकार पर तो कोई असर नहीं होने वाला लेकिन इस नतीजे के बाद उसके कामकाज पर सवाल जरूर उठेंगे. इस नतीजे को केजरीवाल सरकार के दो साल के कामकाज पर लोगों की राय के रूप में जरूर देखा जाएगा, भले ही ये महज एक इलाके की बात हो. एक इलाका ही सही, लेकिन एक भी इलाका ऐसा क्यों?
केजरीवाल बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस पर भी बराबर बरसते रहे हैं. 1984 के दंगों को लेकर वो हमेशा उसे कठघरे में खड़ा करते रहे हैं. कह तो यहां तक चुके हैं कि अगर '84 के दंगों के पीड़ितों को इंसाफ मिल गया होता तो गुजरात दंगे और दादरी जैसी घटनाएं नहीं होतीं.
केजरीवाल के ये सब कहने के बावजूद राजौरी गार्डन में बीजेपी को जीत मिली है - और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को तीसरे पोजीशन पर धकेल दिया है.
केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए इससे भी बड़ा इम्तिहान इसी महीने होने जा रहे एमसीडी के चुनाव हैं.
चुनाव मैदान में
अरविंद केजरीवाल एक ही साथ दो नावों पर सवार हैं. एक दिल्ली एमसीडी चुनाव है तो दूसरा गुजरात का. अगर वो एमसीडी को तरजीह देते हैं तो गुजरात में उनके कार्यक्रम प्रभावित होते हैं और उसका उल्टा भी होता है.
राजौरी गार्डन के नतीजे के बाद आप नेता मनीष सिसोदिया बोले कि 'हम लोग अपने दो साल के काम के दम पर एमसीडी चुनाव जीतेंगे.' सवाल ये है कि क्या राजौरी गार्डन उसके दायरे से बाहर था?
उपचुनाव में सेकंड रह कर कांग्रेस ने जो संकेत दिये हैं वो आप के लिए परेशान करने वाला है. जिस कांग्रेस को केजरीवाल और उनकी पार्टी खत्म मान कर चल रही थी उसी ने उन्हें तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया. ऊपर से एमसीडी चुनाव में केजरीवाल के दोस्त नीतीश कुमार और पुराने दोस्त योगेंद्र यादव भी हिस्सेदार हैं. अब तक बिहार और पूर्वी यूपी के जिन लोगों के वोट केजरीवाल को मिले होंगे उसके दो दावेदार हो गये हैं. एक हैं नीतीश कुमार और दूसरे बीजेपी के मनोज तिवारी.
एक तरफ विधानसभा में विपक्षी बीजेपी के सदस्यों की संख्या चार हो जाएगी, तो दूसरी तरफ संसदीय सचिव बनाये गये आप के 21 विधायकों की सदस्यता पर खतरा लगातार मंडरा रहा है.
संसदीय सचिवों की नियुक्ति एक तरीके से विधायकों को सत्ता में ऐडजस्ट करने की कोशिश ही रही होगी - अगर उनकी सदस्यता रद्द हो गयी और उन सीटों पर उपचुनाव हुए तो क्या हाल होगा?
आम आदमी पार्टी में
प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को आप से निकाले जाने और उसके बाद कुछ लोगों के पार्टी छोड़ने के बाद आप में विरोध के स्वर खत्म से हो गये थे. ताजा हार के बाद आम आदमी पार्टी में विरोध के स्वर तेज होने की आशंका बढ़ गयी है. अगर कुमार विश्वास के ट्वीट पर गौर किया जाये तो इस बात को और बल मिलता है.
कुमार विश्वास ने राजौरी गार्डन की हार के बाद अब्बास ताबिश का एक शेर ट्विटर पर शेयर किया है.
पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है,अब भी जलता शहर बचाया जा सकता है (अब्बास ताबिश)
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) April 13, 2017
वो दिल्ली का ही एक चुनाव रहा जिससे सत्ता और राजनीति के बाजार में ब्रांड मोदी को झटका लगा - और अब जाकर यूपी चुनाव से वापस आया है. ये दिल्ली का ही चुनाव है कि ब्रांड केजरीवाल को बड़ा झटका दिया है, खासकर पंजाब और गोवा की करारी हार के बाद.
आंदोलन की पृष्ठभूमि से राजनीति में आये अरविंद केजरीवाल के जुझारू तेवर में कोई कमी नहीं आई है. केजरीवाल ने दिल्ली में शीला दीक्षित को भारी शिकस्त दी तो वाराणसी में नरेंद्र मोदी से बुरी तरह हार गये. फिर खुद ही संभलने की कोशिश की और दिल्ली में सत्ता की कुर्सी पर बैठे, लेकिन पंजाब और गोवा में फिर से हार गये. केजरीवाल के लिए दिल्ली उपचुनाव रास्ते का रोड़ा हो सकता है, लेकिन विरोधियों के लिए इसे वो मील का पत्थर नहीं बनने देंगे ये तो तय है.
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