क्या ट्रंप, इमरान खान के लिए 'ट्रम्प कार्ड' साबित होंगे?
इमरान खान और ट्रंप की मुलाकात में हर पाकिस्तानी की नजर टिकी हुई है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के संकटमोचक बनते हैं या नहीं?
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बदहाल इकॉनमी और आतंकवादियों को पनाहगाह देने के गंभीर आरोप के साथ अमेरिका पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिल रहे हैं. पाकिस्तान इस समय बहुत ही ख़राब स्तिथियों से गुजर रहा हैं. उसका दिवालिया होना ही बचा है. उसकी इकॉनमी रसातल में पहुँच गयी है. पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुक़ाबले रिकॉर्ड गिरावट तक पहुंच गया है. पूरे एशिया में पाकिस्तानी रुपया सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करंसी बन गई हैं. पाकिस्तान में चीन को छोड़ कर कोई भी देश निवेश करना नहीं चाह रहा है. उसके ऊपर कर्ज का भार काफी अधिक हो गया हैं. महंगाई दर अपने चरम पर है. वहां पर पेट्रोल सहित अन्य सामानों के दाम आसमान चूम रहे हैं. लोगों की हालत ख़राब हैं. पाकिस्तान का करीब 100 में से 30 रुपया कर्ज चुकाने में ही खर्च हो रहा हैं. इन सब के बीच आतंक का पोषक कहलाने वाला देश पाकिस्तान डिफेंस में काफी अधिक खर्च कर रहा है. वो अपनी इकॉनमी का तक़रीबन 11 प्रतिशत डिफेंस पर खर्च कर देता है जिससे आर्थिक स्थिति पर दबाव जरूर पड़ता है.
अमेरिका ने पाकिस्तान की सुरक्षा सहायता पर रोक लगाई हुई है. अमेरिका का मानना है कि पाकिस्तान जब तक अपने देश में आतंकी समूहों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं करता है तब तक उसके द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा सहायता बंद रहेंगी. यहाँ पर एक चीज जानना जरूरी है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्देश पर अमेरिका ने पाकिस्तान की सुरक्षा सहायता को जनवरी 2018 से ही बंद कर दिया था. यहाँ तक कि अमेरिका हाल में ही मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की गिरफ्तारी समेत आतंकी संगठनों के खिलाफ पाकिस्तान की कार्रवाई से भी संतुष्ट नहीं दिख रहा है.
इसी परिप्रेक्ष्य में इमरान खान और ट्रंप की मुलाकात में हर पाकिस्तानी की नजर टिकी हुई है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के संकटमोचक बनते हैं या नहीं? ट्रंप की कठोर नीति के कारण ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और वर्ल्ड बैंक से बेलआउट मिलना पाकिस्तान के लिए मुश्किल हो गया हैं. साथ ही साथ पाकिस्तान, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के बैन को लेकर डरा हुआ है. जून 2019 में लिए गए एक्शन में FATF ने पाकिस्तान को ‘ग्रे सूची’ में बनाए रखा है. साथ ही साथ FATF ने पाकिस्तान को चेतावनी भी दी कि अगर उसने टेरर-फंडिंग और आतंकी ट्रेनिंग कैंपों पर कड़े कदम नहीं उठाए तो उसे अक्टूबर में ब्लैकलिस्ट भी किया जा सकता है. इमरान खान इस फ़िराक में है कि वो आतंकवाद पर कार्रवाई का भरोसा देकर अमेरिका का गुस्सा थोड़ा शांत कर इस मामले में कुछ राहत भरी उम्मीद रखे.
हाल के दिनों में एक चीज जो पाकिस्तान के पक्ष में जाती है वो है तालिबान के साथ शांति वार्ता में पाकिस्तान द्वारा एक अहम् भूमिका निभाया जाना. अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करना अमेरिका का लक्ष्य है. ट्रम्प प्रशासन अफगानिस्तान में युद्ध भरा माहौल को समाप्त करने के लिए उत्सुक है. एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 45 बिलियन डॉलर सालाना इसमें खर्च होता है, और वहां तैनात 14,000 अमेरिकी सैनिकों में से अधिकांश या सभी को वो वापस बुलाना चाहता है और अगर पाकिस्तान इसमें अमेरिका का साथ देता है तो ये उसके पक्ष में जा सकता हैं.
क्यों टिकी है अमेरिका पर नजर
2017 में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं. 2018 में सुरक्षा सहायता रोकने के दौरान ट्रंप ने साफ, सीधे शब्दों में कहा था कि पाकिस्तान ने झूठ और फरेब के अलावा कुछ नहीं दिया है. वो आतंक को रोकने में नाकाम हुआ है.
अमेरिका, पाकिस्तान में विदेशी निवेश का एक बहुत बड़ा स्रोत या कहें तो प्रमुख देश है. पाकिस्तानी निर्यात का सबसे बड़ा बाज़ार भी अमेरिका ही है. 2018 से पहले पाकिस्तान को सबसे ज्यादा सुरक्षा सहायता, आर्थिक मदद अमेरिका द्वारा ही दिया जाता था. पाकिस्तान जानता है की अगर वो अमेरिका को मनाने में कामयाब हो जाता है तो आर्थिक तंगी से मुक्ति उसे कुछ हद तक मिल सकती है.
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