जवाबी कार्रवाई नहीं, पाकिस्तान पहले दुनिया को जवाब देने के बारे में सोचे
भारत के सर्जिकल स्ट्राइक 2 के बाद पाकिस्तानी फौज की मानसिक स्थिति समझी जा सकती है और इमरान खान किस तरह के दबाव में होंगे अंदाजा लगाया जा सकता है - जवाबी कार्रवाई से पहले पूरी दुनिया इमरान खान से जवाब मांग रही है.
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पाकिस्तान को लेकर भारत का स्टैंड पूरी तरह साफ है. भारत का कहना है कि किसी भी रूप में वो तनाव नहीं बढ़ाना चाहता. बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पहली प्रेस कांफ्रेंस में विदेश सचिव विजय गोखले ने ये बात दो टूक समझाने की कोशिश की थी.
रूस-भारत-चीन फोरम की बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने देश का स्टैंड समझाने का प्रयास किया, 'ये कोई सैन्य अभियान नहीं था. इसमें पाकिस्तान के किसी भी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना नहीं बनाया गया.' चीन के वुझेन में रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की 16वीं बैठक चल रही है. सुषमा स्वराज ने चीनी विदेश मंत्री वॉन्ग यी से मुलाकात में भी पुलवामा का खास तौर पर जिक्र किया. दरअसल, अब तक चीन ही ऐसा मुल्क है जो पाकिस्तान का सपोर्ट कर रहा है. दुनिया के ज्यादातर देश पाकिस्तान से खिलाफ हैं क्योंकि किसी ने भी भारत की कार्रवाई को गलत नहीं बताया है.
सर्जिकल स्ट्राइक 2 पहले से बिलकुल अलग है
उरी अटैक के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक और ताजा एयरस्ट्राइक या सर्जिकल स्ट्राइक 2 दोनों ही में भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को टारगेट किये. दोनों ही केस में पाकिस्तान के सैन्य ठिकाने को दायरे से बाहर रखा गया और इस बात का ख्याल रखा गया कि आम लोगों को कोई नुकसान न पहुंचे. व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कई दोनों में कई तरह के फर्क नजर आते हैं.
2016 की सर्जिकल स्ट्राइक सेना के स्तर पर थी और राजनीतिक नेतृत्व ने अपनी भूमिका हरी झंडी दिखाने तक सीमित रखी थी. इस बार वैसा नहीं हुआ बल्कि पॉलिटिकल लीडरशिप ने आगे बढ़ कर अगुवाई की है. ध्यान देने वाली बात ये है कि 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक की औपचारिक जानकारी सेना ने दी थी, इस बार ये विदेश विभाग की ओर से बतायी गयी और इसके लिए विदेश सचिव विजय गोखले ने प्रेस कांफ्रेंस की. 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक को उससे पहले हुई वैसी ही कार्रवाइयों जैसा बताया गया था लेकिन इस बार वैसा बिलकुल नहीं है. विदेश सचिव प्रेस कॉन्फ्रेंस में कार्रवाई को 'नॉन मिलिटरी प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक' बताया और 'जिहादी' शब्द पर जोर देकर दोहराया. असल में ये दहशतगर्दी के खिलाफ भारत की सख्त रणनीति की तरफ इशारा है.
जानकारी तो पहले सर्जिकल स्ट्राइक की भी कई देशों को दी गयी थी, लेकिन इस बार जोरदार कूटनीतिक पहल भी हुई है. पुलवामा हमले के बाद से ही दुनिया के तमाम देशों को विश्वास में लेने की कोशिश हुई और बाद में भी औपचारिक जानकारी दी गयी - खासतौर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और चीन को. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने स्थिति को भयानक मानते हुए पहले ही कह दिया था कि भारत कुछ बड़ा करने जा रहा है. बालाकोट में एयरस्ट्राइक को पाकिस्तान कुछ भी कहता फिरे और चीन उसे जैसे भी समझे या समझाये, अमेरिका ने स्पष्ट तौर पर 'काउंटर टेररिज्म एक्शन' करार दिया है.
'आतंकवाद को कुचलना हमें आता है...'
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने पाकिस्तान को भी समझाने की कोशिश की है, 'मैंने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से बात की और उनसे किसी भी सैन्य कार्रवाई से बचते हुए वर्तमान तनाव को कम करने को तरजीह देने को कहा. साथ ही पाकिस्तान से उनकी जमीन पर पल रहे आतंकी ठिकानों पर सख्त कार्रवाई करने को कहा.'
चीन भी अब खुद को भारत और पाकिस्तान दोनों का दोस्त बताते हुए संयम बरतने की सलाह दे रहा है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तो चीन को बता ही दिया है कि भारत की तरफ से आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर कार्रवाई की गई. सुषमा स्वराज ने कहा, 'भारत किसी भी रूप से तनाव को बढ़ाना नहीं चाहता. हम जिम्मेदारी और संयम से काम करते रहेंगे.'
पाकिस्तानी राजदूत ने संयुक्त राष्ट्र में भी ये मामला उठाने की कोशिश की है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से शांति बहाल करने की अपील कर रहा है. मसूद अजहर के मामले को अटकाने वाला चीन अब आतंकवाद और कट्टरपंथ की जमीन को खत्म करने में सहयोग करने की बात करने लगा है. ये बात पाकिस्तान को हजम नहीं हो रही है. ये इस बात का भी संकेत हो सकता है कि पाकिस्तान को चीन आर्थिक मदद तो दे सकता है लेकिन भारत के खिलाफ जाने की उसकी एक सीमा है. एक खास बात ये भी है कि चीन अपनी वन बेल्ट वन रोड की पहल में भारत का सहयोग चाहता है. इसी साल अप्रैल में उसकी दूसरी बैठक होने जा रही है.
ये दुनिया को जवाब देने का वक्त है - कुछ और करने का नहीं
पाकिस्तान के लिए इससे अजीब बात क्या होगी कि इस्लामी सहयोग संगठन के उद्घाटन सत्र में जब भारत शामिल होने जा रहा है और पाकिस्तान उससे दूरी बना रहा है.
इमरान खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक मौका मांगा था - शांति का मौका. इमरान खान को मालूम होना चाहिये कि ये मौका उन्होंने गंवाया नहीं है. भूल सुधार का उनके पास अब भी पूरा मौका है.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने शांति का मौका मोदी के उस भाषण के बाद मांगा जब राजस्थान की एक सभा में प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि पुलवामा हमले के दोषियों को भारत नहीं छोड़ेगा. मोदी ने कहा था कि इस बार हिसाब बराबर होगा क्योंकि ये नये भारत की रीति है, इसमें दर्द को सहन नहीं किया जाएगा. मोदी ने कहा था, 'हमें पता है कि आतंकवाद को कैसे कुचलना है.' इसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इमरान को बधाई के वक्त उनकी कही बात याद दिलायी थी - 'पठान का बच्चा हूं. सच्चा बोलता हूं. सच्चा करता हूं'.
अब भी बहुत देर नहीं हुई...
मोदी ने इमरान को शांति कायम करने का मौका अच्छे से मुहैया कराया है. बेहतर होता पाक प्रधानमंत्री इसका भरपूर लाभ उठाते, बजाय इस बात के कि वो जवाबी कार्रवाई जैसी किसी तरह की जल्दबाजी करें. पहले तो पाकिस्तानी नेतृत्व दुनिया को ये समझाने की कोशिश करे कि वो भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई किस बात के लिए करना चाहता है? भारत ने तो पुलवामा अटैक का बदला लिया है. जिस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने खुद ली है. पाकिस्तान भला किस जवाबी कार्रवाई की बात कर रहा है?
पाकिस्तान को अब समझ में आ जाना चाहिये कि दुनिया में वो अलग थलग पड़ चुका है. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय कार्रवाई को सही ठहराया है. चीन सहित दूसरे मुल्क दोनों देशों से संयम बरतने को कह रहे हैं - और अमेरिका ने तो कुछ ऐसा वैसा न करने को लेकर आगाह भी कर दिया है.
2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी पाकिस्तानी फौज की फजीहत हुई थी - लेकिन तब उसने झुठला कर पल्ला झाड़ लिया था. इस बार पाक फौज ने ही हड़बड़ी में खबर भी ब्रेक कर दी. उसके बाद से हर कोई डैमेज कंट्रोल में लगा हुआ है.
पाकिस्तानी फौज की बात अपनी जगह है, इमरान खान तो खुद उसके हाथों अपनी फजीहत करा रहे हैं. जिस इमरान खान के क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीतने पर लोग पलकों पर बिठाये और नये पाकिस्तान की उम्मीद के साथ प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाये, उसी इमरान खान के खिलाफ अब 'शेम-शेम' के नारे लगने लगे हैं.
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