पैगंबर विवाद में मुस्लिम भाजपा नेता के इस्तीफे से पार्टी और शीर्ष नेतृत्व को कोई फर्क पड़ेगा?
कोटा नगर निगम से भाजपा पार्षद तबस्सुम मिर्जा ने अपना इस्तीफ़ा दिया है. मिर्ज़ा पैंगंबर मोहम्मद पर अभद्र टिप्पणी करने वाली नूपुर शर्मा के खिलाफ हैं. सवाल ये है कि क्या वाक़ई भाजपा और उसके नेताओं को इस इस्तीफे से कोई ख़ास फर्क पड़ेगा ? जवाब है नहीं और इसके पीछे माकूल कारण हैं.
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भाजपा नेता नूपुर शर्मा द्वारा एक टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद पर अभद्र टिप्पणी करना भर था. क्या देश का मुस्लिम समुदाय क्या विश्व के मुस्लिम देश आहत सभी हुए. बाद में जब विवाद ने जोर पकड़ा भाजपा ने नूपुर शर्मा को न केवल पार्टी से निकाला बल्कि ऐसे लोगों को 'फ्रिंज एलिमेंट' का तमगा दे दिया. पार्टी के इस फैसले के बाद मुसलमानों के एक वर्ग ने जहां इसे बड़ी कूटनीतिक जीत कहा तो वहीं ऐसे भी लोग थे जिनका मानना था कि नूपुर के बयान ने सिर्फ मुसलमानों को आहत ही नहीं किया बल्कि उनका मकसद हिंदू मुस्लिम की आग में खर डालना था इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया जाए. शायद ये कहना अतिश्योक्ति हो लेकिन नूपुर के खिलाफ जिस तरह देश भर में मुस्लिम समुदाय द्वारा हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं कहीं न कहीं भाजपा के लिए फायदेमंद है. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे प्रदर्शन हिंदू वोटरों को एकजुट करने के लिए उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं.
आज लगाने वाले बयान के बावजूद नूपुर को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है. पार्टी के इस रवैये से वो लोग नाराज हैं जो हैं तो पार्टी में लेकिन मुसलमान होने के कारण पार्टी के रुख से ठगा हुआ महसूस हर रहे हैं. तबस्सुम मिर्जा का केस भी कुछ-कुछ ऐसा ही है. तबस्सुम मिर्ज़ा कोटा नगर निगम से भाजपा पार्षद हैं. नूपुर शर्मा मामले पर तबस्सुम कुछ इस हद तक आहत हुई हैं कि उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है. अपने फैसले के बाद तबस्सुम ऐसी पहली भाजपा नेता हैं जिन्होंने पार्टी के मुकाबले अपने धर्म को वरीयता दी.
पैगंबर विवाद में भाजपा की मुस्लिम नेता ने अपने इस्तीफे से एक नयी डिबेट का आगाज कर दिया है
मिर्जा ने एक पत्र भी लिखा है जिसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि वह पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रही हैं, क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में उनके लिए पार्टी के साथ काम करना जारी रखना संभव नहीं है. वहीं एक अलग पत्र में उन्होंने पार्टी का सदस्य होने पर खेद जताया और कहा कि भाजपा अपने उन कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करने में नाकाम रही है, जो उनके 'नबी' की आलोचना करते हैं.
मिर्जा ने कहा, 'अगर मैं भाजपा की सदस्य बनी रही और इतना कुछ (पैगंबर के खिलाफ) होने के बावजूद पार्टी का समर्थन करती रही तो मुझसे बड़ा अपराधी कोई नहीं होगा. अब मेरी चेतना जाग गई है और मैं पार्टी में काम करना जारी नहीं रख सकती.'
सवाल ये है कि क्या एक मुस्लिम नेता द्वारा लिए गए इस फैसले से पार्टी या पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को कोई विशेष फर्क पड़ेगा? क्या पार्टी को इस बात का एहसास होगा कि यदि नूपुर अब तक गिरफ्तार नहीं हुई हैं तो एक बड़ी चूक हुई है? जवाब है नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर उस वोटिंग परसेंटेज की बात की जाए, जो मुसलमानों से भाजपा को मिलते हैं तो वो मात्र 8 प्रतिशत ही हैं और इसमें भी दिलचस्प ये कि ये वोट मुसलमानों से भाजपा को चोरी छुपे ही मिलते हैं. अब खुद बताइये क्या भाजपा को तबस्सुम मिर्ज़ा या किसी और मुस्लिम नेता के इस्तीफे से फर्क पड़ेगा?
विषय बहुत सीधा है जब देश के मुसलमानों ने भाजपा को अपना दुश्मन मान ही लिया है तो आखिर पार्टी उन्हें खुश करने के जतन क्यों करेगी? भाजपा को हिंदू वोटों से मतलब है और वो छप्पर फाड़ के उसकी झोली में आ ही रहे हैं.
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