अपने जन्मदिन पर वसुंधरा ने अपना दम दिखाकर भाजपा को बड़े संदेश दे दिए हैं!
समर्थकों का दबाव व खुद को मुख्यधारा में शामिल करवाने के लिए ही वसुंधरा राजे ने अपने जन्मदिन के बहाने रैली कर पार्टी आलाकमान को खुला संदेश दिया है.वसुंधरा ने भाजपा से साफ़ कह दिया है कि किसी भी हाल में उनकी ताकत को कम कर नहीं आंका जाए.
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राजस्थान में भाजपा की वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चूरू जिले के सालासर बालाजी मंदिर क्षेत्र में अपने जन्मदिन मनाने के बहाने अपनी ताकत का एहसास कराया है. वसुंधरा राजे द्वारा यह एक तरह से सीधे भाजपा आलाकमान व अपने विरोधियों को चैलेंज के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि वसुंधरा राजे का जन्मदिन आठ मार्च को आता है. मगर उन्होंने चार दिन पूर्व ही शेखावाटी क्षेत्र के सालासर में अपने जन्मदिन के बहाने एक बड़ी जनसभा का आयोजन कर अपनी ताकत का अहसास करवाया है. वसुंधरा राजे ने अपना जन्मदिन मनाने के लिए उसी दिन का चयन किया जिस दिन भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा जयपुर में विधानसभा का घेराव किया जाना था. विधानसभा का घेराव करने के कार्यक्रम को प्रदेश भाजपा द्वारा प्रायोजित किया जा रहा था. उसी के समानांतर वसुंधरा राजे का कार्यक्रम करना कुछ अलग ही कहानी बयां करता है.2018 का विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद वसुंधरा राजे पार्टी में अलग-थलग पड़ गई है. पार्टी के बड़े कार्यक्रमों में भी वह अक्सर अनुपस्थित रहती है. प्रदेश भाजपा के संगठन में भी वसुंधरा विरोधियों की भरमार है. यहां तक कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया वसुंधरा विरोधी खेमे के माने जाते हैं.
चूरू में अपने जन्मदिन पर वसुंधरा ने बता दिया है कि उन्हें हल्के में न लिया जाए
विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि से आए सतीश पूनिया राष्ट्रीय स्वयं संघ के नजदीकी है तथा संगठन में वर्षो से विभिन्न पदों पर कार्य कर चुके हैं. जाट समाज से आने वाले पूनिया अपनी सौम्य छवि के कारण राजस्थान भाजपा में खासे लोकप्रिय भी है. इसी के चलते वसुंधरा राजे पूनिया को पसंद नहीं करती है. इसी साल के अंत में राजस्थान विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में वसुंधरा राजे को लगता है कि यदि उनकी इसी तरह चुनाव में भी उपेक्षा की गई तो उनका राजनीतिक प्रभुत्व समाप्त हो जाएगा.
इसी आशंका के चलते वह भाजपा की मुख्यधारा में आने के लिए पूरा जोर लगा रही है. सालासर का कार्यक्रम भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है. वसुंधरा राजे चाहती है कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी आलाकमान उन्हें एक बार फिर नेता प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़े. ताकि चुनाव में जीतने पर वह फिर से मुख्यमंत्री बन सके. मगर भाजपा आलाकमान वसुंधरा राजे को किसी भी परिस्थिति में नेता प्रोजेक्ट कर चुनाव नहीं लड़ना चाहता है. पार्टी आलाकमान द्धारा इस बात का खुलकर इजहार भी किया जाता रहा है.
भाजपा आलाकमान चाहता है कि राजस्थान में नया नेतृत्व आगे आए. वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति में लंबी पारी खेल चुकी है. ऐसे में उनके स्थान पर नए नेताओं को आगे करने से आने वाले समय में पार्टी को नया नेतृत्व मिलेगा. इसी सोच के तहत भाजपा आलाकमान प्रदेश में सतीश पूनिया, गजेंद्र सिंह शेखावत, कैलाश चौधरी, दीया कुमारी, जोगेश्वर गर्ग, राज्यवर्धन सिंह राठौड, रामलाल शर्मा, मदन दिलावर, अनिता भदेल, ओम बिरला, सीपी जोशी, स्वामी सुमेधानंद सरस्वती, अश्विनी वैष्णव जैसे नए व युवा चेहरों को आगे बढ़ा रहा है.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाबचंद कटारिया को भी इसी सोच के तहत असम का राज्यपाल बनाया गया है. ताकि उनके स्थान पर उदयपुर डिवीजन में नया नेतृत्व उभर सके. जिस तरह से गुजरात विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, उप मुख्यमंत्री रहे नितिन पटेल सहित बहुत से वरिष्ठ नेताओं के टिकट काटकर उनके स्थान पर नए लोगों को मौका दिया गया था. उसी तर्ज पर पार्टी आलाकमान राजस्थान में भी बदलाव करना चाहता है.
अगले विधानसभा चुनाव के दौरान जहां अधिक उम्र वाले विधायकों के टिकट कटना तय माना जा रहा है. उसके साथ ही बहुत से ऐसे नेताओं के टिकट भी कटेंगे जिनकी क्षेत्र में परफॉर्मेंस अच्छी नहीं मानी जा रही है. इसमें वसुंधरा राजे समर्थक बहुत से मौजूदा विधायकों के नाम भी शामिल है. इसी बात से वसुंधरा समर्थक चिंतित नजर आ रहे हैं. वसुंधरा राजे समर्थक भवानी सिंह राजावत का पिछले विधानसभा चुनाव में लाडपुरा से टिकट काटकर उनके स्थान पर कोटा की महारानी कल्पना देवी को भाजपा प्रत्याशी बनाया गया था.
जो चुनाव भी जीत गयी थी. अब भवानी सिंह राजावत के पास चुनाव लड़ने के लिए कोई क्षेत्र नहीं है.ऐसे में यदि वसुंधरा समर्थक अन्य नेताओं के टिकट भी कटते हैं तो उनके सामने चुनाव लड़ने का विकल्प ही नहीं बचेगा. वसुंधरा समर्थकों को पता है कि वह सब लोग चुनाव अपने दम पर नहीं बल्कि पार्टी के निशान पर जीतते हैं. ऐसे में यदि उनके पास पार्टी का निशान नहीं रहेगा तो चुनाव जीतने का तो सवाल ही नहीं होगा.
समर्थकों का दबाव व खुद को मुख्यधारा में शामिल करवाने के लिए ही वसुंधरा राजे ने अपने जन्मदिन के बहाने रैली कर पार्टी आलाकमान को खुला संदेश दिया है कि उनकी ताकत को कम कर नहीं आंका जाए. प्रदेश में आज भी उनका जनाधार बरकरार है. वसुंधरा राजे के कार्यक्रम में गंगानगर सांसद निहालचंद मेघवाल, चूरु सांसद राहुल कस्वां, जयपुर सांसद रामचरण बोहरा, झालावाड़ सांसद व उनके पुत्र दुष्यंत सिंह, टोंक सवाई माधोपुर सांसद सुखबीर जौनपुरिया, करौली-धौलपुर सांसद मनोज राजोरिया सहित करीबन दो दर्जन विधायक, कई पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद भी शामिल हुए.
हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह भी जयपुर के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद रात को सालासर पहुंचकर वसुंधरा राजे को उनके जन्मदिन की बधाई दी. अरुण सिंह का वसुंधरा के कार्यक्रम में पहुंचना भाजपा आलाकमान का डैमेज कंट्रोल करना ही था. भाजपा आलाकमान चाहता है कि चुनाव तक वसुंधरा राजे को ऐसे ही लटकाए रखा जाए.
ताकि वह पार्टी से अलग जाकर कोई कदम नहीं उठा सके. मगर वसुंधरा राजे इस बात से पूरी तरह वाकिफ है कि उन्हें जो कुछ भी करना है चुनाव से पूर्व ही करना है. चुनाव की घोषणा होने के बाद उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं बचेंगे. अपनी सालासर रैली में वसुंधरा राजे ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई, पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत की जमकर तारीफ की. भैरोंसिंह शेखावत को उन्होंने अपना राजनीतिक गुरु तक बताया जिनकी अंगुली पकड़ कर उन्होंने राजनीति में चलना सीखा.
मगर प्रदेश के लोगों को पता है कि भैरोंसिंह शेखावत के अंतिम दिनों में वसुंधरा राजे ने उनको कैसे गुरु दक्षिणा दी थी. एक समय तो ऐसी परिस्थितियां हो गई थी कि भैरोंसिंह शेखावत ने निर्दलीय चुनाव लड़ने तक की घोषणा कर दी थी. कुल मिलाकर वसुंधरा राजे ने सालासर में अपने समर्थकों को जुटाकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है. हालांकि वसुंधरा समर्थक पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परणामी व पूर्व मंत्री यूनुस खान सभा से पूर्व एक लाख की भीड़ जुटने का दावा कर रहे थे.
मगर वसुंधरा राजे की सभा में अपेक्षा के अनुरूप लोग नही जुट पाए. जिससे उन्हें भी आभास हो गया कि समय उनके हाथ से निकलता जा रहा है. साथ ही समर्थकों की संख्या भी धीरे-धीरे कम हो रही है. वरिष्ठ नेता चंद्रराज सिंघवी का कहना है कि वसुंधरा के साथ का कोई भी नेता अपने बूते चुनाव नहीं जीत सकता है. सभी को पार्टी टिकट की चिंता है. जिस दिन पार्टी सख्ती करेगी उसी दिन सभी लोग वसुंधरा राजे को छोड़कर पार्टी लाइन में खड़े नजर आएंगे.
वसुंधरा राजे फिर से मुख्यमंत्री बन पाती है या नहीं इस बात का पता तो चुनाव के बाद ही चल पाएगा. इस बार यदि वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनने से चूक जाती है तो उसके साथ ही उनका राजनीतिक वर्चस्व भी समाप्त हो जाएगा. बहरहाल भाजपा आलाकमान व वसुंधरा राजे के बीच शह मात का खेल जारी है.
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