राजनीतिक विरासत में अखिलेश से भारी हैं जयंत
देश की राजनीति का केंद्र उत्तर प्रदेश है और दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी है. जबकि इस सूबे की सियासत का केंद्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश बन गया है, किसानों और जाटों के इस भू-भाग की सियासत नजदीकी राज्य हरियाणा को भी प्रभावित करती है. और यूपी की सियासत की धुरी बनने वाले पश्चिम उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल और इस दल के शहंशाह जयंत चौधरी की शहेनशाहात ख़ूब चलती है.
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उत्तर प्रदेश की सियासत में राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी का बाजार भाव बढ़ रहा है, वो किधर जाएंगे. समाजवादी पार्टी के गठबंधन में बर्करार रहेंगे या भाजपा का दामन थामेंगे, अथवा सपा को नजरंदाज कर भाजपा से लड़ने के लिए कांग्रेस-बसपा को गठबंधन में लाने के प्रयास में सफल होंगे ? इन चर्चाओं को खुद जयंत चौधरी ने अपने एक ट्वीट से हवा दे दी है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि खिचड़ी, पुलाव, बिरयानी जो पसंद है खाओ. अपने उसी ट्वीट पर ख़ुद रिप्लाई करते हुए जयन्त चौधरी ने ट्वीट के जरिये कहा कि वैसे चावल खाने ही हैं तो खीर खाओ. खीर को सत्ता यानी भाजपा से जोड़ा जाने लगा. इस तरह समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर दबाव बनाना स्वाभाविक है. इससे पहले जयंत बिहार में होने वाली विपक्षी दलों की बैठकों में भी नहीं पंहुचे थे.एनडीए सरकार समर्थित सांसद और मंत्री रामदास अठावले ने भी कुछ दिन पहले इस बात के संकेत दिए थे कि रालोद भाजपा गठबंधन में शामिल हो सकता है. जयंत खुद भाजपा में जाने के संकेत भी दे रहे हैं और विपक्षी खेमें में रहने का बयान भी दे रहे हैं.राजनीतिक पंडित इसे गठजोड़ और गठबंधन की राजनीति में अपना बाजार भाव बढ़ाने का सियासी स्टेंट बता रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन में रालोद तीन सीटें पाया था और तीनों सीटों पर शिकस्त मिली थी.
जयंत चौधरी के साथ सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव
इसके बाद स्थितियां बदलीं, किसान आंदोलन हुआ. भाजपा सांसद बृजभूषण और जाट खिलाड़ियों के टकराव का मामला भी गर्म है. किसान नेता टिकैत से भी जयंत की नज़दीकी है. उप चुनाव में भाजपा को हरा कर रालोद ने खतौली सीट जीत कर भी अपना क़द बढ़ा लिया. इसके बाद जयंत और अखिलेश यादव के बीच दूरी नजर आने लगी. बताया जाता है का रालोद आगामी लोकसभा चुनाव में बारह सीटें चाहता है जबकि सपा पांच से आठ सीटें ही देने पर राज़ी है. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि रालोद कांग्रेस को जितनी अहमियत देना चाहता है सपा मुखिया उतनी एहमियत नहीं देना चाहते.
इन बातों को लेकर गठबंधन के दोनों शीर्ष नेताओं में मन-मुटाव हो गया. ऐसे में जयंत भाजपा में जाने की खबरों को खुद हवा देकर सपा मुखिया पर दबाव बनाने और अपनी पॉलीटिकल मार्केट का भाव बढ़ाने की चालें चल रहे हैं. देश के किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह और अजीत सिंह की विरासत को मजबूती से निभाने वाले चौधरी परिवार के इस छोटे चौधरी अखिलेश को जताना चाहते हैं कि वो उन्हें हल्के में ना लें.
ये सच भी है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कहीं ज्यादा राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी की नसों में सियासी ख़ून दौड़ता है. अखिलेश जिस सपा के वारिस है वो सपा जयंत के दादा चौधरी चरण सिंह और पिता चौधरी अजीत सिंह की पार्टी से ही पैदा हुई थी. अखिलेश के पिता मुख्यमंत्री थे तो जयंत के दादा मुख्यमंत्री थे और पिता की बार केंद्रीय मंत्री रहे और सियासी गठजोड़, सरकारें बनाने-तोड़ने के बड़े खिलाड़ी थे. अखिलेश सपा की दूसरी पीढ़ी के वारिस हैं और जयंत रालोद की तीसरी पीढ़ी के राजकुमार हैं.
देश की राजनीति का केंद्र उत्तर प्रदेश है और दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी है. जबकि इस सूबे की सियासत का केंद्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश बन गया है, किसानों और जाटों के इस भू-भाग की सियासत नजदीकी राज्य हरियाणा को भी प्रभावित करती है. और यूपी की सियासत की धुरी बनने वाले पश्चिम उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल और इस दल के शहंशाह जयंत चौधरी की शहेनशाहात ख़ूब चलती है.
कहने वाले ये भी कहने लगे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा और सबसे बड़े विपक्षी दल सपा में मुकाबले में कौन किसपर भारी पड़ेगा इस बात के संकेत रालोद के फाइनल फैसले से भी किसी हद तक ज़ाहिर हो जाएंगे.
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