बैन किये जाने से 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' का मकसद पूरा होता नजर आ रहा है!
दुनिया का नियम है जब भी किसी चीज पर बैन लगता है पब्लिक उसे हाथों हाथ लेती है. और बीबीसी यही तो चाहती थी कि पीएम मोदी पर बनी उनकी इस डॉक्यूमेंट्री पर भारत की मौजूदा सरकार ओवर रियेक्ट करे. बाकी माना ये भी जा रहा है कि फैन से BBC और डॉक्यूमेंट्री को फायदा ही मिलेगा.
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जब भी कुछ बैन किया गया है, सिर चढ़कर बोला है. और बीबीसी यही तो चाहती थी कि इस डॉक्यूमेंट्री पर भारत की मौजूदा सरकार ओवर रियेक्ट करे, इसकी अनऑफिसियल वॉच पर अनऑफिसियल बैन लगाएं. डॉक्यूमेंट्री भारत में रिलीज़ जो नहीं की हैं. लॉजिक है कि हमने तो ऑफिशियली ब्रिटिशर्स के लिए बनाई हैं. लेकिन कोई अनधिकृत रूप से लिंक इंडिया में शेयर करता है तो वे इग्नोर कर रहे हैं क्योंकि उनका कुत्सित हिडन एजेंडा यही है. कानूनी रूप से या नैतिकता की कसौटी पर पेंच फंसा तो पल्ला जो झाड़ लेंगे. वरना तो बीबीसी स्वतः हंगामा करता कि उनका कंटेंट पायरेसी का शिकार हो रहा है. हिडन एजेंडा क्या है ? चूंकि हिडन है तो बीबीसी तो खुलासा करेगी नहीं ! सो कयास ही लगाए जा सकते हैं और लग भी रहे हैं. लेकिन ये तो तय है कि है ज़रूर वरना दूसरे देश के दो दशक पुराने मामले में सेटल्ड लीगल प्रेसिडेंट के खिलाफ जाकर किसी खोजपरक अनुसंधान के तहत कुछ ख़िलाफ़त के आधार पर एक कथा प्रस्तुत करने का क्या औचित्य है खासकर तब जब दोनों देशों के रिश्ते इस कदर सौहाद्रपूर्ण हैं कि ऋषि सुनक कनेक्शन भी हैं.'
माना जा रहा है कि पीएम मोदी पर डॉक्यूमेंटरी को बैन करना बीबीसी के लिए फायदेमंद है
कुत्सित मंशा है इस डॉक्यूमेंट्री की. चूंकि मास्टरमाइंड ब्रिटेन का पूर्व विदेश सचिव जैक स्ट्रॉ है, जिसने ईराक़ के पास केमिकल और बायोलॉजिकल हथियारों के ज़ख़ीरे होने का निराधार दावा कर इराक़ युद्ध के लिए वजह तैयार की. नतीजन एक देश ही ख़त्म हो गया. लेकिन आज तक उसके जखीरों के दावे की पुष्टि नहीं हो पाई. ब्रिटेन के मुस्लिम बाहुल्य प्रोविंस ब्लैकबर्न से वह चुन कर आता है. सो स्ट्रॉ का टूल ही तुष्टिकरण है. जिस वजह से उसने गुजरात दंगों की ब्रिटिश हाई कमीशन द्वारा की गई किसी जांच की अपुष्ट गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर माइलेज लेते हुए अपनी स्टोरी बीबीसी के हवाले कर दी.
फिर मिर्च मसाला लगाने के लिए कुछ निहित स्वार्थी तत्व हमेशा होते ही हैं. मौजूदा सरकार ने ब्लंडर ही कर दिया है रोक लगाकर. बेहतर होता वह निर्लिप्त रहती, ज्यादा से ज्यादा कड़ी असहमति जता देती. बेवजह का फ्रीडम ऑफ़ स्पीच वाला विक्टिम कार्ड आदतन छद्म विक्टिम लॉबी को जो दे दिया. दरअसल फ्रीडम ऑफ़ स्पीच उनका सेलेक्टिव होता है, एजेंडा ड्रिवेन होता है. तभी तो वे सलमान रूश्दी की सैटेनिक वर्सेज के बैन का समर्थन करते हैं. जहां तक राजनैतिक बवाल है, जड़ में एंटी बीजेपी के साथ साथ एंटी मोदी एजेंडा है जिसकी पूर्ति वे इस डॉक्यूमेंट्री के बैन में देख रहे हैं.
फ्रीडम ऑफ़ स्पीच उनका टूल नहीं है क्योंकि बैन उनका भी पसंदीदा टूल रहा है फिर भले ही पावर में तृणमूल हो या कांग्रेस या कम्युनिस्ट या कोई और. नेहरू, इंदिरा से लेकर मनमोहन सिंह तक बैनों की परंपरा रही है. हालांकि वे भी मात ही खाये हैं जिस प्रकार मौजूदा सरकार खा गई है. जब जिस चीज पर रोक लगाईं, वह थर्ड रेट होते हुए भी हिट हुई ; टैबू फैक्टर जिज्ञासा जो जगा देता है. और यही 'इंडिया : द मोदी क्वेश्चन' के साथ होगा. थर्ड रेट हिट कृतियों की लिस्ट में शुमार होगी जिस प्रकार सैटनिक वर्सेज, किस्सा कुर्सी का आदि हुई.
सिर्फ विरोध के लिए विरोध करते करते विपक्ष महत्ता खोता जा रहा है क्योंकि मोदी विरोध में जाने अनजाने वे अनुचित बातों को भी प्रश्रय दे देते हैं. इन्हीं बातों की ओर उनके ही अपने युवा प्रतिभाशाली नेता अनंत एंटनी, जो दिग्गज और वरिष्ठतम कांग्रेसी नेता ए के एंटनी के पुत्र भी हैं, ने इंगित करते हुए कहा कि जो लोग ब्रिटिश प्रसारक और ब्रिटेन के पूर्व विदेश सचिव जैक स्ट्रॉ के विचारों का समर्थन करते हैं और उन्हें जगह देते हैं, वे भारतीय संस्थानों पर एक खतरनाक मिसाल कायम कर रहे हैं. क्योंकि 2003 के इराक युद्ध के पीछे जैक स्ट्रॉ का दिमाग था.
उन्होंने कहा, भाजपा के साथ बड़े मतभेदों के बावजूद, मुझे लगता है कि यह हमारी संप्रभुता को कमजोर करेगा. परंतु कांग्रेस के तमाम नेता मय शीर्षस्थ नेता को सही बात गवारा नहीं हुई. शीर्षस्थ नेता की दार्शनिकता ने तो शीर्षस्थ न्यायालय को कठघरे में खड़ा कर दिया और आजकल अति सक्रिय नेता जयराम रमेश, सुप्रिया श्रीनेत ने तो हदें पार कर दीं. अपने ही वरिष्ठतम और मौजूदा अनुशासन समिति के अध्यक्ष को ही बेवजह आड़े हाथों ले लिया चूंकि वे अनंत के पिता हैं. कुल मिलाकर किरकिरी कांग्रेस पार्टी की हुई, हालांकि अब तो पार्टी को आदत सी हो गई है.
उधर चूंकि अनंत स्वाभिमानी हैं, उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. और एक हैं बेशर्म जिन्हें पार्टी कब से ढो रही हैं क्योंकि वे परम चाटुकार है. खैर, पार्टियों की अपनी अपनी स्ट्रेटेजी है, सोच है, माइलेज लेने की दौड़ है, टारगेट चुनाव है. परंतु सवाल है टाइमिंग पर. सवाल है सत्ता पर क्यों ट्रैप हो गई ? सवाल विपक्ष पर भी है क्यों कंट्रीब्यूट कर रही है ? क्या इसलिए योगदान दे रहे हैं क्योंकि ब्रिटिश सरकार के पैसे पर आश्रित बीबीसी की यह डॉक्यूमेंट्री 2024 आम चुनावों पहले पीएम मोदी को ‘मुस्लिम विरोधी’ दिखाने में, सत्तारूढ़ बीजेपी के शासनकाल में 'डरा हुआ मुसलमान' नैरेटिव सेट करने में सहायक होगी?
लोक की बात करें तो सत्ता ही सहानुभूति बटोर लेगी जिसकी वजहें निहित है उसके द्वारा बेचारगी दिखाते हुए ट्रैप होना स्वीकारने में. फिर ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड के सदस्य लॉर्ड रामी रेंजर ने भी बीबीसी को लताड़ा है, 'बीबीसी न्यूज, आपने भारत के करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया है और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित भारत के प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस और भारतीय न्यायपालिका की भी बेइज्जती की है. हम दंगों और लोगों की मौत की निंदा करते हैं लेकिन हम आपकी पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग की भी निंदा करते हैं.'
और अंत में बात करें किसी (डॉक्टर अजय कुमार, कांग्रेस) ने कहा कि भाजपाई नजर में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री यदि प्रोपेगंडा है तो कश्मीर फाइल्स डाक्यूमेंट्री कैसे है ? जवाब है 'लॉ ऑफ़ लैंड' जिसने द मोदी क्वेश्चन का जवाब दे दिया था. जहां तक कश्मीर फाइल्स की बात है लॉ ऑफ़ लैंड ने इसके सवालों को नकारा नहीं है. हां, कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से संबंधित जनहित याचिका सत्ताईस सालों की देरी की वजह से साक्ष्य उपलब्ध न होने की बिना पर खारिज जरूर कर दी थी.
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