New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 18 जून, 2015 07:44 PM
  • Total Shares

भारतीय सेना के विशेष बल की टीम ने 9 जून को NSCN (K) के शिविरों और म्यांमार के पीएलए में छापेमारी की थी. हाल के वर्षों में इस तरह की यह पहली कार्रवाई थी, जिससे पता चलता है कि कैसे विशेष बलों का अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है. यह खुफिया रिपोर्ट की रोशनी में अपने मकसद को हासलि करने की चुनौतियों पर आधारित मिशन था. म्यांमार की तरह एक बड़े पैमाने पर परंपरागत युद्ध खुफिया जानकारी पर आधारित कार्रवाई की संभावनाओं को दर्शाता है. हाल के वर्षों में विशेष बलों ने अपने हुनर का इस्तेमाल केवल मानवीय, आपदा राहत और अन्य गैर युद्धकारी हालातों में किया है. उत्तराखंड में पिछले वर्ष बाढ़ के दौरान, सेना के कमांडो ने घायल तीर्थयात्रियों को बचाने के लिए एक अस्थाई हैलीपैड बनाया था.

नौसेना के मरीन कमांडो (मार्कोस) को 2008 के बाद से अदन की खाड़ी में सोमाली समुद्री डाकुओं से व्यापारी जहाजों की रक्षा के लिए युद्धपोतों पर तैनात किया गया है, यह काम उनकी जंगी तैनाती से बिल्कुल अलग है. लेकिन क्या होता है जब ये कमांडो एक साथ मिलकर काम करते हैं?

26 नवंबर 2008 की रात को मुंबई के ताज होटल में सबसे पहले प्रवेश करने वाले मार्कोस ही थे. उनके दखल ने ही अलग-अलग जगहों पर छिपे 100 से अधिक मेहमानों की जान बचाई थी. बंधकों को बचाने और आतंकवादियों को शिकार बनाने वाले ये 24 कमांडोज तब तक नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) के साथ शामिल नहीं हुए थे. NSG यूनिट के पास मार्कोस को बाहर रखने का एक और आसान कारण था. दो सेनाओं के विशेष बल कभी भी एक साथ प्रशिक्षित या संचालित नहीं किए जाते और उनकी ड्रिल भी अलग होती है. अन्यथा वे बिना नुकसान वाले कारणों से युद्ध जैसे हालात में भी जीवन और मौत के बीच फर्क कर सकते हैं. भारत के 4,800 सदस्यीय विशेष बल तीन सेनाओं में कार्य करने के लिए तैनात हैं. इनकी गिनती गृह मंत्रालय के विशाल 10,000 मजबूत एनएसजी कमांडो, रॉ के स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) और स्पेशल ग्रुप में नहीं होती है. ये बल अपने उपकरण, प्रशिक्षण या सुविधाएं कभी साझा नहीं करते हैं.

सशस्त्र बल संसाधनों के इस दोहराव के बारे में जानते हैं. 2002 में सेना मुख्यालय ने सभी विशेष बलों को मिलाकर एक नए स्पेशल ऑपेरशन कमांड (SOCOM) को बनाने का प्रस्ताव रखा था. एक लेफ्टिनेंट जनरल इस कमांड का प्रमुख होता जो चेयरमैन चीफ्स ऑफ स्टॉफ कमेटी और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को रिपोर्ट करता. प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया, लेकिन 2011 में आंतरिक सुरक्षा पर बनी नरेश चंद्रा समिति ने एक बार फिर इसका प्रस्ताव रखा और इस पर फिर से चर्चा हुई. तीनों सेनाओं ने सहमति जताई और एक SOCOM बनाने का फैसला किया. इस संयुक्त कमांड में साझा प्रशिक्षण और सुविधाएं ही नहीं बल्कि उपकरणों और समर्पित परिवहन विमानों का एक कॉमन पूल बनाने का फैसला भी हुआ था. वर्तमान में किसी भी कार्रवाई के दौरान सेना और नौसेना कमांडो उड़ान भरने के लिए वायु सेना के विमानों पर निर्भर करते हैं. लेकिन यह एक ऐसा संगठन होता जिसके पास अपनी खुद की समर्पित हवाई शाखा और विशेष रूप से प्रशिक्षित पायलट होते.

यह प्रस्ताव 2013 के बाद से कैबिनेट की सुरक्षा मामलों वाली समिति के पास पड़ा धूल फांक रहा है. ऐसा नहीं कि सरकार नहीं जानती कि इसकी जरूरत कितनी अहमियत रखती है. पिछले अक्टूबर में संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने युद्ध को बड़े पैमाने पर दुर्लभ बताया था लेकिन भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा था "कम उम्मीद के मुताबिक हालात विकसित और तेजी से बदल जाएंगे."

प्रधानमंत्री ने जिन चुनौतियों का जिक्र किया था, उनके मद्देनजर एक स्पेशल ऑपरेशन कमांड बनाए जाने की फौरन जरूरत है. इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि यह सरकार पिछली किसी भी सरकार के मुकाबले ज्यादा सक्रीय होकर स्पेशल ऑपरेशन चलाने की योजना बना रही है. ऐसे में एक स्पेशल ऑपरेशन कमांड के अनुमोदन में देरी करना, चौंकाने वाला है.

#सेना, #स्पेशल फोर्स, #रक्षा, आर्मी, सेना, रक्षा

लेखक

संदीप उन्नीथन संदीप उन्नीथन @sandeepunnithanindiatoday

लेखक इंडिया टुडे में डिप्टी एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय