दुनिया में शांति के लिए भारत को वीटो चाहिए
अमेरिका का कहना है कि परिषद के सुधार की प्रक्रिया के मुद्दे पर उसके भारत के साथ मतभेद हैं लेकिन सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के तौर पर शामिल किए जाने की बात पर वो पूरी तरह कायम है.
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संयुक्त राष्ट्र महासभा के 70वें सेशन की थीम है - 'पार्टनरशिप फॉर पीस'. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र के शिखर सम्मेलन को संबोधित करने वाले हैं. समझा जाता है कि मोदी भी अपनी बात को इसी थीम के इर्द गिर्द रखेंगे और इसी आधार पर सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट की दावेदारी भी.
शांति में भारत की भूमिका क्यों नहीं?
इसी साल जून की बात है. भारत और बांग्लादेश के बीच एक लैंड एग्रीमेंट हुआ जिसके तहत कुछ बस्तियों की अदला-बदली हुई. इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक लेख का जिक्र किया जिसमें इस समझौते की तुलना बर्लिन की दीवार गिराए जाने की घटना से की गई थी. मोदी ने कहा कि दुनिया में कहीं भी ऐसी कोशिश हुई होती तो नोबेल पुरस्कार तक की बात चल पड़ती, लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं होता.
1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा, "हमारे कब्जे में 90 हजार पाकिस्तानी सैनिक थे. यदि हमारी मानसिकता विकृत होती, तो कुछ भी हो सकता था. लेकिन हम बांग्लादेश की धरती को रक्तरंजित नहीं करना चाहते थे. हमने पाकिस्तानी फौजियों को वापस कर दिया. फिर भी शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थाई सीट हमें नही मिली है."
मोदी ने द्वितीय विश्व युद्ध का भी हवाला देते हुए कहा कि वो लड़ाई भारतीय जवानों ने अपने लिए नहीं लड़ी थी, बल्कि उसका मकसद दुनिया की शांति से जुड़ा था.
मोदी ने सवाल किया कि इन सब के बावजूद हम से पूछा जाता है कि हम दुनिया की शांति के लिए उपयोगी हैं कि नहीं.
सितंबर 2014 में ही मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का इरादा जाहिर कर दिया था. साथ ही चेतावनी भी दी कि ध्यान नहीं दिया गया तो संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता भी खतरे में पड़ सकती है, "इसकी विश्वसनीयता कैसे बढ़े, इसका सामर्थ्य कैसे बढ़े, तभी जा कर के यहां हम संयुक्त बात करते हैं, लेकिन टुकड़ों में बिखर जाते हैं."
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लंबे अरसे से भारत स्थाई सीट की मांग करता रहा है, लेकिन ये मांग लगातार दरकिनार की जाती रही है.
"कोई एक देश या कुछ देशों का समूह विश्वस की धारा को तय नहीं कर सकता," आगाह करने के साथ मोदी ने अहमियत भी समझाई, "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाना, इसे अधिक जनतांत्रिक और भागीदारी परक बनाना हमारे लिए अनिवार्य है."
स्थाई सीट क्यों नहीं?
हाल ही में सुरक्षा परिषद में सुधार से संबंधित बातचीत के लिए पेश किया गया प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया है. संयुक्त राष्ट्र के करीब 200 सदस्य देश सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग पर चर्चा की मांग वाले दस्तावेज के मसौदे पर अगले एक साल तक चर्चा करने के लिए राजी हो गए हैं. चीन ने इस मामले में भी अड़ंगा डालने की कोशिश की थी, लेकिन इस मसले पर उसे दूसरे मुल्कों का साथ नहीं मिला. इसे भारत की बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सुरक्षा परिषद का गठन हुआ. युद्ध में विजेता रहे अमरीका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस ने वीटो अधिकार सहित इस परिषद में स्थाई सदस्यता ले ली. उसके बाद परिषद में सदस्यों की संख्या बढ़ कर 15 तक पहुंच गई है, लेकिन न तो स्थाई सदस्यों की संख्या में कोई बदलाव हुआ और न ही किसी और वीटो का अधिकार दिया गया.
अमेरिका का कहना है कि परिषद के सुधार की प्रक्रिया के मुद्दे पर उसके भारत के साथ मतभेद हैं लेकिन सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के तौर पर शामिल किए जाने की बात पर वो पूरी तरह कायम है.
साल भर पहले की बात है. प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने पहले ही भाषण में योग के लिए भी एक दिन मुकर्रर किए जाने का प्रस्ताव रखा. महज 75 दिन के रिकॉर्ड वक्त में ही उस प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल गई - और इस साल 21 जून को पूरी दुनिया ने 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' मनाया.
अब भारत को जल्द से जल्द सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट देनी होगी - ताकि दुनिया में जहां कहीं भी शांति की बात चले, भारत भी वीटो कर सके.
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