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Updated: 17 सितम्बर, 2018 05:21 PM
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भारत पूरी दुनिया में कच्चे तेल आयात करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर है और ईरान चीन के बाद भारत को ही सबसे ज्यादा क्रूड आयल का निर्यात करता है. भारत और ईरान के रिश्ते परंपरागत रूप से मजबूत रहे हैं जिसका सबसे बड़ा कारण भारत और ईरान की संस्कृति भी रही है. ईरान आज मिडिल-ईस्ट की राजनीति और अमेरिकी तानाशाही का शिकार बन गया है. डोनाल्ड ट्रम्प ने बराक ओबामा के शासनकाल में हुए ईरान और अमेरिका के न्यूक्लियर डील को रद्द करने के बाद ईरान को सबक सीखाने की कोशिशों में लगे हुए हैं जिसके कारण उन्होंने दुनिया के उन तमाम देशों को धमकी दी है जो ईरान से कच्चे तेल का आयात करते हैं. ट्रम्प के अनुसार उन देशों को नवंबर तक ईरान से आयात होने कच्चे तेल को पूर्ण रूप से बंद करना होगा नहीं तो अमेरिका उन देशों पर भी प्रतिबन्ध लगाएगा.

ईरान, भारत, कच्चा तेल, आयात  भारत चाबहार पोर्ट विकसित कर रहा है जिसके बाद अफगानिस्तान में भारत का प्रवेश आसान हो जायेगा.

हाल ही में भारत और अमेरिका ने 2+2 डायलॉग के तहत COMCASA पर हस्ताक्षर किए. इस बातचीत का हिस्सा ईरान के साथ कच्चे तेल के आयात को भी होना था लेकिन अमेरिकी रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री ने ईरान के मुद्दे को लेकर कोई बातचीत नहीं की. मुलाकात से पहले भारत और अमेरिका ने अपना स्टैंड साफ कर दिया था. भारत ने ईरान से कच्चे तेल के आयात को लेकर प्रतिबद्धिता जताई थी वही अमेरिका शून्य आयात के अपने स्टैंड पर अडिग था. इससे साफ संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में भारत और अमेरिका के बीच ईरान को लेकर तनाव बढ़ सकता है.

ईरान पर कितना निर्भर है भारत

भारत में क़रीब 12% कच्चा तेल सीधे ईरान से आता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष भारत ने ईरान से क़रीब सात अरब डॉलर के कच्चे तेल का आयात किया था. ईरान के पास मौजूद विशाल प्राकृतिक गैस भंडार और भारत में इसकी बढ़ती ज़रूरतें भी फ़ैक्टर है. भारत और ईरान के बीच दोस्ती के मुख्य रूप से दो आधार हैं. एक भारत की ऊर्जा ज़रूरतें हैं और दूसरा ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा शिया मुस्लिम भारत में होना. भारत ने हाल ही में ईरान में स्थित चाबहार पोर्ट को विकसित करने का जिम्मा उठाया है जिससे भारत को अफगानिस्तान पहुंचने के लिए पाकिस्तान जाने की जरुरत नहीं होगी. हाल के वर्षों में अफगानिस्तान में भारत ने अपनी मौजूदगी बढ़ाई है जिसके कारण चाबहार पोर्ट सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है.

अमेरिका को मनाना कितना मुश्किल

2+2 डायलॉग के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने नई दिल्ली में पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा था, "​दूसरे देशों की तरह हमने भारत से भी कहा है कि चार नवंबर से ईरान से कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लग जाएंगे. उन मामलों पर हम आगे चल के ग़ौर करेंगे जिनको इन प्रतिबंधों में छूट दी जाएगी. लेकिन फ़िलहाल हमारी उम्मीद है कि हर देश ईरान से ख़रीदने वाले क्च्चे तेल की मात्रा को ज़ीरो (शून्य) तक ले आएँगे." अमेरिका के विदेश मंत्री ने साफ संकेत दिए थे कि इस मुद्दे पर बाद में विचार किया जा सकता है. अमेरिका और भारत के संबंधों में हाल के वर्षों में मधुरता देखी गयी है. एशिया में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को रोकने के लिए भारत अमेरिकी विदेश नीति की मजबूरी बन चुका है. ऐसे में अमेरिका भारत और ईरान के संबंधों को सब्सिडी दे सकता है.

भारत ईरान से कच्चे तेल का जो आयात करता है उसका भुगतान रुपये में करता है. जिसके कारण भारत को ईरान का कच्चा तेल आर्थिक रूप से भी सहूलियत प्रदान करता है. भारत को विदेशी मुद्रा भंडार बचाने का सुनहरा मौका मिल जाता है. इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को कच्चा तेल निर्यात करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर आता है. ईरान का तेल भारत की अर्थव्यवस्था और सामरिक हितों के लिए बहुत जरूरी है जिसका अंदाजा शायद भारत और ईरान दोनों को है.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)

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