सांस्कृतिक कूटनीति के तहत भारत श्रीलंका संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत
भारत सिर्फ अपने विकास की बात नहीं करता बल्कि सभी पडो़सियों के विकास की बात करता हैं. ऐसे में "सबका साथ सबका विकास" भारत की सीमा के बाहर भी चरितार्थ होता है.
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भारत ने हमेशा पड़ोसी देशों के साथ घनिष्ठ संबंधों को बनाए रखने का अभूतपूर्व प्रयास किया है ताकि वर्तमान के वैश्विक युग में भारत के साथ-साथ पड़ोसी देशों का भी बेहतर माहौल में सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक विकास अबाधित रूप से होता रहे. श्रीलंका में 2015 में सत्ता परिवर्तन के साथ संबंधों में नवीन युग की शुरुआत माना जा रहा है क्योंकि राष्ट्रपति सिरीसेना मैत्रिपाला भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने की ओर लगातार अग्रसर हैं. इसी संदर्भ में सत्ता पर काबिज होने के पश्चात राष्ट्रपति सिरीसेना ने सर्वप्रथम विदेशी यात्रा हेतु भारत को चुना. उनकी यात्रा भारत श्रीलंका संबंधों को सुदृढ़ता प्रदान करने के साथ-साथ अविश्वासों को दूर करने का संकेत थी. क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे के शासन काल में भारत श्रीलंका संबंध अविश्वास से परिपूर्ण होने के कारण संबंधों में विकृति आ गयी थी.
श्रीलंका के राष्ट्रपति सिरीसेना मैत्रिपाला के साथ प्रधानमंत्री मोदीचीन ने इसका लाभ उठाने की भरपूर कोशिश की और इसमें कामयाब भी रहा. हम्मनटोटा बंरगाह का विकास कर चीन श्रीलंका के माध्यम से भारत के दक्षिणी भाग में हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है. जो भारत के सामरिक हित में नहीं है. मैत्रिपाला सिरीसेना के पश्चात मार्च 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका का यात्रा की. मई 2016 में श्रीलंका राष्ट्रपति मैत्रिपाला ने भारत में कामकाजी यात्रा की. मैत्रिपाला 6-7 नवंबर 2016 को भारत की यात्रा पर रहे. पुनः 25 अप्रैल 2017 को मैत्रिपाला भारत की यात्रा पर आये थे. यह भारत के साथ बेहतर संबधों को प्रदर्शित करता है.
प्रधानमंत्री मोदी (11 मई 2017 से 12 मई 2017) दो दिवसीय श्रीलंका की यात्रा पर गए थे. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को सांस्कृतिक कूटनीति के तहत देखा जा सकता है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र के तत्वधान में 14 वां अंतर्राष्ट्रीय "वेसाक महोत्सव" में श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला के निमंत्रण पर मुख्य अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुए.
वेसाक महोत्सव श्रीलंका में शामिल हुए प्रदानमंत्री मोदी
दरअसल भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण जैसी महत्वपूर्ण घटना एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन हुए थे. इसी संदर्भ में "वेसाक महोत्सव "का आयोजन सिंगापुर, मलेशिया, भारत, चीन, नेपाल, श्रीलंका, वियतनाम, जापान, थाइलैंड, कंबोडिया, म्यांमार, इंडोनेशिया सहित विश्व के कई देशों में मनाया जाता है. 2017 का अंतर्राष्ट्रीय "वेसाक महोत्सव" पहली बार श्रीलंका में 12 मई से 14 मई 2017 तक मनाया जा रहा है. जिसमें 100 देशों के 400 डेलीगेट्स महोत्सव में भाग लेने हेतु आए हुए हैं.
भारतीय प्रधानमंत्री मोदी मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित थे. श्रीलंका दौरे के दौरान 11 मई 2017 को कोलंबो पहुंचने के दौरान कोलंबो के प्रसिद्ध मंदिर गंगारामया मंदिर के दर्शन किए. इस मौके पर उनके साथ श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भी मौजूद थे. प्रधानमंत्री मोदी ने दीप प्रज्ज्वलित कर अंतर्राष्ट्रीय "वेसाक महोत्सव" का विधिवत उद्घाटन किया और प्रार्थना सभा में भाग लिया. कोलंबो में दीप प्रज्ज्वलित कर यह संदेश देने का प्रयास किया कि बौद्ध धर्म की रौशनी से न केवल कोलम्बो अपितु सम्पूर्ण विश्व भी जगमगाए क्योंकि बौद्ध धर्म की नींव मानवता केन्द्रित है. मंदिर को रंग बिरंगे रौशनी से सजाया गया और शानदार आतिशबाजी हुई.
बौद्ध मंदिर में दर्शन करते प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री ने 12 मई 2017 को वेसाक महोत्सव को संबोधित किया. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि श्रीलंका के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंध काफी प्राचीन हैं. घृणा की मानसिकता खराब है. जो केवल विनाश के मार्ग पर ले जाती है. भारत श्रीलंका के सांस्कृतिक संबंधों को और बढा़ने हेतु प्रधानमंत्री ने कहा कि अगस्त 2017 से कोलंबो से वाराणसी की एयर इंडिया की सीधी उड़ान होगी. दरअसल यदि दोनों देशों के लोगों के मध्य आवाजाही बढे़गी तो लोगों का लोगों के मध्य संपर्क बढ़ेगा जिससे दोनों देशों के मध्य पर्यटन से लेकर विश्वास निर्माण की बहाली होगी. जिसके फलस्वरूप दक्षिण एशिया में दोनों देशों में मध्य संबंधों में और मजबूती आएगी.
भारतीय प्रधानमंत्री मोदी शहर के चहल पहल से दूर "डिकोया "नामक कस्बे में गए. जहां चारों तरफ चाय के बागान हैं. यह चाय बगान वहां दशकों से रह रहे तमिल भारतीय समुदाय के लोगों के रोजगार का जरिया हैं. डिकोया में प्रधानमंत्री ने एक सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल जिसकी लागत 150 करोड़ रुपये है श्रीलंका को समर्पित किया जो भारत की मदद से बनाया गया है. डिकोया में रहने वाले भारतीय मूल के तमिलों हेतु यह अस्पताल किसी संजीवनी से कम नही है. प्रधानमंत्री ने वहां जनता को संबोधित किया और 10 हजार अतिरिक्त घर बनाने की घोषणा की.
वैसे श्रीलंका के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंध काफी प्राचीन हैं. लेकिन भारत के अपने पड़ोसियों के साथ संबंध तनाव और टकराव से भरे हुए हैं क्योंकि भारत के कुछ पड़ोसी देश अपने स्वार्थपूर्ण हितों की रक्षा हेतु भारत के सुरक्षा को खतरा पैदा करने में भी नहीं हिचकते, इसलिए भारत अपने सुरक्षा हितों को लेकर इस क्षेत्र में हमेशा क्रियाशील रहा. लेकिन श्रीलंका के साथ भारत के संबंध दक्षिण एशिया में किसी अन्य राज्य की तुलना में बेहतर रहे हैं. ध्यातव्य हो कि भारत ने हिंद महासागर में सामरिक हितों श्रीलंका में तमिल हितों और अधिकारों की महत्वपूर्ण और विशिष्ट प्राथमिक नीति के तौर पर ध्यान केन्द्रित किया. भारत ने श्रीलंका की ओर तटस्थता और अहस्तक्षेप की नीति बनाई है लेकिन सुरक्षा हितों को बनाए रखने और श्रीलंका की मदद हेतु भारत ने 30 जुलाई 1987 को श्रीलंका में सैन्य हस्तक्षेप किया जो भारत के लिए कठिन था. भारत ने 29 जुलाई 1987 को लिट्टे को काबू में करने और जातीय संघर्ष के समाधान हेतु भारत श्रीलंका समझौते के अनुसार भारत ने श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षक बल भेजा था. लेकिन भारतीय शांति रक्षक दल अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया और कई असफलताओ के साथ भारत लौटा जो भारत के लिए दुखद अंत था. 21 मई 1991 को आईपीकेएफ मिशन की असफलता के बाद भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या लिट्टे द्वारा कर दी गई. तब से भारत ने श्रीलंका हेतु अलग नीति तैयार की और समय समय पर सभी शांति प्रक्रिया एवं विकास हेतु बाहरी समर्थन और नैतिक सहयोग तक ही सीमित रहने का निर्णय लिया. भारत ने श्रीलंका प्रकरण की ओर तटस्थता बनाने की पूरी कोशिश की. लेकिन बदलते हुए हालात और नेतृत्व के साथ दोनों देशों ने अपने संबंधों को मधुर बनाने और एक दूसरे के नजदीक आने हेतु कोशिश की और दोनों देशों ने 28 दिसंबर 1998 को पहले मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए जो 1 मार्च 2000 को अस्तित्व में आया.
भारत ने हमेशा से श्रीलंका के एकता अखंडता को अपना समर्थन दिया है और एक स्वतंत्र तमिल ईलम राज्य के गठन की मांग का विरोध किया है. हालांकि यह सत्य है कि भारत ने हमेशा से श्रीलंका में रह रहे तमिलों के अधिकारों हेतु चिंता और सहानुभूति रही है. 2009 में लिट्टे जो श्रीलंका में आतंकवाद का परिचायक था, श्रीलंका में शांति वार्ता के नवीनीकरण और लिट्टे के खिलाफ श्रीलंका सेना के अभियान को रोकने हेतु भारत सरकार की मध्यस्थता प्राप्त करने का इच्छुक था, लेकिन तत्कालीन भारत सरकार ने इस अवसर पर हस्तक्षेप नहीं किया. भारत सरकार ने केवल तमिलों के कल्याण हेतु रुचि की घोषणा की खासतौर से संघर्ष में बेघर हुए लोगों हेतु. अर्थात जाफना प्रायद्वीप और उत्तरी प्रांत से था. श्रीलंका में 18 मई 2009 को श्रीलंका सरकार ने आधिकारिक तौर पर लिट्टे के अंत की घोषणा की. उसके पश्चात भारत सरकार द्वारा श्रीलंका में काफी पुनर्निर्माण कार्य किए गए हैं. इस प्रकार लिट्टेतर युग में भारत श्रीलंका के संबंधों में काफी निकटता आयी है. भारत ने बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण हेतु सहायता के रुप में लगभग एक अरब डॉलर प्रदान किए है ताकि युद्ध के तीन दशको के दौरान तबाह हुए बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा सके.
कई भारतीय कंपनियों ने भी इस द्वीप में कई परियोजनाओं में लगभग आधे से एक डॉलर का निवेश किया है. श्रीलंका में युद्ध के पश्चात हुये नुकसान का जायजा लेने हेतु भारत की ओर से श्रीलंका के उत्तरी प्रांतों जैसे वावुनिया, किलिनोच्ची और जाफना का दौरा भी किया गया. भारत द्वारा उत्तरी श्रीलंका में कृषि गतिविधियों को पुनर्जीवित करने हेतु भारत ने बीज भेजे थे और आईडीपी के तहत 500 ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरणों की खरीद की थी. इसके अतिरिक्त भारत ने भारतीय आपात क्षेत्र अस्पताल की स्थापना, सुरंग हटाने की टीमें, 7800 टन आश्रय और छत सामग्री ताकि युद्ध से विस्थापित हुए लोगों की जिन्दगी को पुनः पटरी पर लाया जा सके. पूर्वोत्तर प्रांतों में भी भारत सरकार ने रेल परियोजनाओं के विकास हेतु श्रीलंका का समर्थन किया. दरअसल लिट्टे ने उत्तरी प्रांत में रेलवे लाइनों को अपने प्रयोजनों के लिये हटा दिया था, जिसके फलस्वरूप रेल लाइन से वह क्षेत्र वंचित हो चुका था. इसलिए भारत सरकार द्वारा ढांचागत विकास हेतु जिम्मेदारी ली गई. 149300000 डॉलर की लागत से इरकान इंटरनेशनल लिमिटेड और श्रीलंका के रेलवे ने 56 किलोमीटर कंकासंथुराई पल्लाई लाइन के निर्माण हेतु एक ज्ञापन समझौता पर हस्ताक्षर किए.
भारत सरकार द्वारा श्रीलंका के साथ संबंधों को लगातार बेहतर बनाने के प्रयास जारी है. संबंधों को बेहतर बनाने हेतु आर्थिक, राजनीतिक, सामरिक कूटनीति के साथ साथ सांस्कृतिक कूटनीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसलिए भारतीय विदेश नीति में पडो़सियों से बेहतर संबंध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रुप से भारत के पडो़सी अपने अन्य पडो़सियों से काफी निकटता से जुड़े हैं .इसलिए वर्तमान समय में प्रधानमंत्री मोदी ने सांस्कृतिक कूटनीति पर भी ध्यान केन्द्रित किया है. इसी के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी की दो दिवसीय(11 मई 2017 से 12 मई 2017) श्रीलंका यात्रा को देखा जा सखता है. प्रधानमंत्री मोदी ने 'वेसाक महोत्सव 'में भाग लिया. सांस्कृतिक भागीदारी प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य है. इसलिए सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से बौद्ध देशों के साथ संबंधों को और ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है. उदाहरण के तौर पर भारत सरकार ने मार्च 2015 में एनजीओ द्वारा नालंदा परंपरा और श्रीलंका में उच्चस्तरीय थेरवाद बौद्ध भिक्षुओं के मध्य विनय पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम को समर्थन देकर अपनी तार्किकता और गहरी समझ का प्रदर्शन किया. दरअसल थेरवाद परंपरा का वर्चस्व श्रीलंका के अलावा म्यांमार, थाईलैंड और लाओस में है जबकि नालंदा परंपरा का वर्चस्व भूटान और नेपाल में. प्रधानमंत्री मोदी की मार्च 2015 के श्रीलंका दौरे के दौरान बौद्ध महानायकों से मुलाकात की थी. उसके पश्चात श्रीलंका के अनुराधापुरा में महाबोधि के पवित्र वृक्ष की पूजा की थी.भारत और श्रीलंका के बौद्ध इस बात में यकीन करते है कि सम्राट अशोक की पुत्री द्वारा गया ( बिहार)के प्रसिद्ध बौद्ध वृक्ष अंश को श्रीलंका लाया गया था जिससे अनुराधापुरा में एक महाबोधि वृक्ष का अभ्युदय हुआ.
विश्व के अन्य देशों से हटकर भारतीय विदेश नीति सम्पूर्णता की ओर अग्रसर होती प्रतीत होती है. जैसे पडो़सी पहले. जबकि अन्य देश स्वयं की पहले बात करते है जैसे अमेरिका पहले. इसी संदर्भ में भारत सिर्फ अपने विकास की बात नहीं करता बल्कि सभी पडो़सियों के विकास की बात करता हैं. ऐसे में "सबका साथ सबका विकास" भारत की सीमा के बाहर भी चरितार्थ होता है. इसी संदर्भ में श्रीलंका में पिछले साल आकस्मिक एम्बुलेंस सेवा भारत के सहयोग से शुरू किया गया. जो वहां के लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है. हाल में भारत ने सार्क सैटेलाइट को छोड़ा. इसके अंतर्गत भारत ने उपग्रह कूटनीति के द्वारा दक्षिण एशिया के अपने पड़ोसी देशों को एक सूत्र में संबद्ध कर दिया. यह भारतीय कूटनीति का पड़ोसियों को तकनीकी सहयोग का अभिनव प्रयास है.
श्रीलंका के साथ घनिष्ठ संबंध इस क्षेत्र में चीन को भी प्रतिसंतुलित करता है. प्रधानमंत्री के श्रीलंका यात्रा के दौरान मई मध्य में चीन द्वारा अपने बेड़े खड़ा करने की अनुमति श्रीलंका से माँगी गई थी, जिसे श्रीलंका ने स्पष्टत: मना कर दिया.
इस तरह प्रधानमंत्री ने सांस्कृतिक कूटनीति के द्वारा भारत-श्रीलंका संबंधों को ऊर्जा दी. प्रधानमंत्री की इस यात्रा से दोनों देशों के संबंध और भी उच्चस्तर की ओर अग्रसर हुए हैं. वर्तमान में भारतीय विदेश नीति के लिहाज से सांस्कृतिक कूटनीति एक बेहतर उपकरण है जिसके माध्यम से आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक संबंधों को गति प्रदान की जा रही है. उदाहरण के तौर पर सितंबर 2016 में प्रधानमंत्री की वियतनाम यात्रा के दौरान कुआन सू पगोडा का दर्शन करने के पश्चात बुद्ध और युद्ध की बात की.
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