क्या होगा यदि चीन से युद्ध हुआ तो ?
भारत-चीन सीमा टकराव पर इंडिया टुडे पत्रिका के एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी का यह विशेष लेख...
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'दि आर्ट ऑफ वॉर' में सुन त्सू ने लिखा था कि दुश्मन को बिना लड़े हुए वश में कर लेना रणनीति की पराकाष्ठा है. सदियों बाद चीन के शी जिनपिंग भारत के साथ यही रणनीति आज़मा रहे हैं- भारत को शब्दों से मात देने की कोशिश कर रहे हैं. भारत ने नारेबाजी की जगह शांत संवाद का रास्ता चुना है और शांतिपूर्ण तरीके से गतिरोध के कूटनीतिक समाधान पर जोर दे रहा है. भारत और चीन की फौजों ने आज से 50 बरस पहले 1967 में एक-दूसरे पर हमला कर दिया था. उसके बाद से दोनों ही पक्षों ने 4057 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आर-पार जो भी आक्रामक हरकतें की हैं, वे अनिवार्यतः भंगिमाओं तक ही सीमित रही हैं. दोनों ही पक्ष जमीन पर यथास्थिति को बदलने के खिलाफ एक-दूसरे को चेतावनी जारी करते रहे हैं. इंडिया टुडे ने 19 जुलाई, 2017 की अपनी आवरण कथा (आमने-सामने) में मौजूदा टकराव की उत्पत्ति को समझाया था- यह डोकलाम पर पैदा हुआ विवाद है जो उत्तर-पूर्वी राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाले 27 किलोमीटर लंबे संवेदनशील सिलिगुड़ी गलियारे से चीन की निकटता को और बढ़ा देता है.
अगर जंग हुई तो क्या होगा? दोनों देशों की तुलनात्मक स्थिति क्या है? शी के किए सुधारों ने चीन की फौज का आधुनिकीकरण किया है और नवगठित संयुक्त ऑपरेशन कमान प्रणाली के माध्यम से फौज के एकीकरण को मुमकिन बनाया है, जिस पर भारत लंबे समय से बहस करता आ रहा है लेकिन आज तक अपने यहां लागू नहीं कर सका. शी के कार्यकाल के पहले वर्ष में रक्षा व्यय को 10.7 फीसदी बढ़ाकर 114.3 अरब डॉलर कर दिया गया. पिछले साल तक यह 150 अरब डॉलर पार कर चुका था, हालांकि स्वतंत्र अनुमानों के मुताबिक, यह आंकड़ा 215 अरब डॉलर तक जाता है जो भारत के रक्षा व्यय के पांच गुना से ज्यादा बैठता है.
इंडिया टुडे पत्रिका.
इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च से लेकर अब तक अपनी कैबिनेट में एक पूर्णकालिक रक्षा मंत्री तक नहीं रख पाए हैं. इंडिया टुडे पत्रिका में इस हफ्ते की खास रपट में कार्यकारी संपादक संदीप उन्नीथन लिखते हैं कि भारतीय फौज का आधुनिकीकरण अभियान अब तक नतीजे नहीं दे सका है. 1999 की करगिल जंग के बाद से बुढ़ाते हेलिकॉप्टरों, मिसाइलों और पैदल सेना के उपकरणों को बदले जाने का काम लंबित है. बीते तीन दशकों में हॉवित्ज़र की पहली खरीद वाली खेप भी सेवा में अगले वर्ष ही प्रवेश कर पाएगी. भारतीय सेना की पहाड़ी युद्धक कोर- करीब 90,000 सैनिकों का युद्धक बल जो ऊंचाइयों पर युद्ध करने में आक्रामक रूप से प्रशिक्षित होगा- भी 2020 तक तैयार हो पाएगी. भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों की संख्या 39 से घटकर 32 पर आ गई है जो खतरनाक है. नौसेना के पास पनडुब्बियों और पनडुब्बीरोधी युद्धक हेलिकॉप्टरों की किल्लत है. भारत का रक्षा बजट 2017 में जीडीपी का केवल 1.5 फीसदी था जो हाल के वर्षों में न्यूनतम है. ज्यादा चिंता हालांकि सीमावर्ती इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुस्त गति को लेकर है. एलएसी के साथ लगने वाली कुल 73 चौमासा सड़कों को बनाया जाना था, जिनमें से केवल 22 को मंजूरी के एक दशक बाद पूरा किया जा सका है जबकि सीमा तक टुकड़ियों और आपूर्ति को जल्द पहुंचाने के लिए निर्मित की जाने वाली रणनीतिक रेल लाइनें अब भी कागजों तक सीमित हैं. इसके मुकाबले चीन ने सीमावर्ती इलाकों में सड़क बनाने का काम पूरा कर लिया है और अब रेलवे के काम में जुटा हुआ है.
ऐसा लगता है कि चीन इस बार समझौते के मूड में नहीं है. उसकी एक वजह वहां का मौजूदा सियासी माहौल है चूंकि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) 1 अगस्त को पड़ने वाली अपनी 90वीं जयंती और नवंबर में होने वाली पंचवर्षीय पार्टी कांग्रेस को ध्यान में रखते हुए जंग का माहौल तैयार कर रही है. कमजोरी का कोई भी संकेत शी के प्रतिद्वंद्वियों को ताकत दे सकता है. चीनी मौजूदा गतिरोध को अतीत के टकरावों के मुकाबले ज्यादा गंभीर मान रहे हैं. इंडिया टुडे के बीजिंग संवाददाता अनंत कृष्णन कहते हैं, ‘‘पीएलए से लेकर हर राजनयिक तक को यही कहते सुना जा रहा है कि इस बार मामला अलग है.’’ चीनियों का कहना है कि विवाद डोकलाम को लेकर नहीं है बल्कि भारत ने एक सर्वसम्मत सीमा को लांघा है और वहां प्रवेश कर गया है जिसे वे अपना परिक्षेत्र मानते हैं. लिहाजा संदेश यह है कि जब तक हम कदम वापस नहीं खींचते, तनाव कम होने की कोई गुंजाइश नहीं बनेगी. भारत का कहना है कि दोनों पक्ष पीछे हटें, तब बात होगी. यह गतिरोध इतनी जल्दी नहीं टूटने वाला है और आने वाले कुछ वक्त तक तनाव कायम रहेगा.
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इन सब के बावजूद भारत के साथ कोई भी संघर्ष चीन के लिए विनाशक साबित होगा. शी की महत्वाकांक्षाओं- उनकी पसंदीदा वन बेल्ट, वन रोड परियोजना सहित- के फलने-फूलने के लिए वातावरण का शांतिपूर्ण बने रहना और दुनिया में उभरते हुए देश के तौर पर चीन की जिम्मेदार छवि को कायम रखना ज्यादा जरूरी है. हम रक्षा खरीद के मामले में चाहे कितने ही नाकाम क्यों न हों लेकिन इस बार भौगोलिक परिस्थितियां भारत के पक्ष में हैं. अगर टकराव हुआ तो चीन को जान-माल का भारी नुक्सान उठाना पड़ेगा. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों को एक बार फिर सुन त्सू का कहा याद कर लेना चाहिएः लंबी जंग से किसी देश को कोई लाभ हुआ हो, ऐसा उदाहरण कहीं नहीं मिलता.
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