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Updated: 17 मार्च, 2017 02:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मनोहर पर्रिकर को दिल्ली ने बुलाया जहां नाम-सम्मान से तो नवाजा ही, जल्द ही वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नवरत्नों में भी शामिल हो गये. बावजूद इसके शायद ही ऐसा कोई लम्हा रहा हो जब उन्हें गोवा की फिश करी याद नहीं आती रही. आखिरकार वो दिन भी आया जब फिर से उन्हें की गोवा सीएम की वही कुर्सी मिल गयी.

ये भी जगजाहिर हो चुका है कि राजनाथ सिंह यूपी का मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते - फिर भी कोई पूछे तो तपाक से बोलते हैं - फालतू बात.

इंडिया टुडे कॉनक्लेव - 2017 में ऐसा ही सवाल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस से भी पूछा गया.

सबसे ताकतवर कौन

कॉनक्लेव में इंडिया टुडे टीवी के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने पूछा - आपकी भोपाल से दिल्ली आने की चर्चा चल रही है. इसके साथ ही राजदीप ने जानना चाहा कि वो मुख्यमंत्री पद को ज्यादा ताकतवर मानते हैं या फिर केंद्र में मंत्री पद को?

पहले तो शिवराज ने समझाया कि ऐसे काल्पनिक सवालों का जवाब देने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, फिर बोले, "बीजेपी शासित राज्यों का कोई भी मुख्यमंत्री के दिल्ली नहीं जा रहा है. मुझे पता नहीं चल रहा कि आखिरकार कौन ऐसी अफवाहें उड़ा रहा है?"

conclave-2017_650_031717020217.jpgबड़ा सवाल - ताकतवर कौन? मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री?

शिवराज को कुरेदते हुए राजदीप ने जानना चाहा कि उन्हें दिल्ली जाना ही पड़े तो वो कौन सा मंत्रालय पसंद करेंगे? राजदीप का सवाल शिवराज की नर्मदा यात्रा और ऐसे मामलों में उनकी दिलचस्पी को देखते हुए था - मसलन, केंद्र में जल संसाधन मंत्रालय में उनकी दिलचस्पी होगी क्या? खास बात ये है कि वो मंत्रालय फिलहाल उमा भारती के पास है जो पहले मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं.

असली वजह क्या है

सवाल के जवाब में शिवराज ने भले ही अपना बयान दे दिया हो, लेकिन इससे सवाल खत्म नहीं हो जाता.

राजदीप ने कॉन्क्लेव में शिरकत कर रहे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की भी इस बारे में राय जाननी चाही. देवेंद्र के जवाब में मन की बात कम और राजनीति ज्यादा रही - जब उन्होंने समझाया कि इसमें ताकत की बात नहीं बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि पार्टी किसे कौन सा काम करने को कहती है और वो उसे कैसे करता है.

पार्टी चाहे कोई भी हो ज्यादातर नेता कहते यही हैं कि वो तो बस सिपाही हैं जो काम मिलेगा वो उसे अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे. जैसे रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी हाल ही में बताया कि सेनापति इशारा करें तो वो मार कर गर्दा झाड़ देंगे.

देवेंद्र से इतर बीजेपी में देखें तो एक ही वक्त में दो तस्वीरें सामने आती हैं.

एक, मनोहर पर्रिकर की - जो गोवा लौटने को किस कदर बेताब थे खुद ही कैमरे पर बता चुके हैं.

दूसरी, राजनाथ सिंह की - लखनऊ लौटने को लेकर इस हद तक खफा हो जाते हैं कि इस बारे में चर्चा को भी 'फालतू बात' मानते हैं.

अब सवाल ये है एक ही जगह काम करने वाले दो नेताओं की इतनी विपरीत राय क्यों है?

क्या मनोहर पर्रिकर दिल्ली में खुश नहीं थे? क्या राजनाथ सिंह दिल्ली में इतने खुश हैं कि यूपी की ओर देखना भी पसंद नहीं करते?

या फिर, क्या मनोहर पर्रिकर को दिल्ली में गोवा के मुकाबले काम करने में मुश्किलें आ रही थीं? क्या राजनाथ दिल्ली में खुद को कंफर्ट जोन में फिट पाते हैं और यूपी जाकर चैन गंवाना नहीं चाहते?

तो क्या ऐसा भी है कि मनोहर पर्रिकर को दिल्ली सूट नहीं कर रही थी? क्या केंद्र में मंत्री के रूप में काम करने में उन्हें वो आजादी महसूस नहीं हुई जो बतौर मुख्यमंत्री गोवा में वो पाते हैं? क्या इसके पीछे जैसे कि कहा जाता है मंत्रालयों में पीएमओ की ज्यादा दखलंदाजी है?

ऐसी भी खबरें आई हैं जिनसे पता चलता है कि कई मंत्री अपनी पसंद के ओएसडी भी नहीं रख पाते. क्या मनोहर पर्रिकर भी ऐसी परिस्थितियों से दो चार हुए होंगे और तभी उनकी राय बनी होगी.

क्या राजनाथ सिंह इस तरह के बंधनों से मुक्त हैं? या फिर यूपी सीएम के तौर पर वो लखनऊ होकर भी ज्यादा बंधन की कल्पना कर बैठे हैं?

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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