मैच फिक्सिंग के लिए भारत में कोई कानून क्यों नहीं?
देश का कानून बनाने का काम संसद करती है. सवाल है कि 15 साल पहले जब ऐसा गंभीर मामला हमारी नजरों से गुजर चुका था, फिर भी इस बारे में हम कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा सके.
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करीब 15 साल पहले जब पहली बार भारतीय क्रिकेट का वास्ता मैच फिक्सिंग से पड़ा तब सब हक्के-बक्के रह गए थे. उस समय कई बड़े भारतीय खिलाड़ी जैसे मोहम्मद अजहरूद्दीन, अजय जडेजा, नयन मोंगिया सहित कुछ और नाम जांच के घेरे में आए. लेकिन इस प्रकार के क्राइम के संबंध में भारत में कोई कानून नहीं होने के कारण सभी को बच कर निकलने का मौका मिल गया. अधिक से अधिक एक-दो खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लग सका. इसे लेकर स्थिति आज भी जस की तस है.
क्या यह संभव नहीं है कि IPL में स्पॉट फिक्सिंग के लिए जांच के घेरे में आए एस श्रीसंत, अजिल चंदीला और अंकित चव्हाण को कानून की कमी का फायदा मिला होगा? जब किसी अपराध के संबंध में हमारे पास कोई ठोस कानून ही नहीं है, तो उस पर क्या सुनवाई और क्या सजा. जिस अपराध का कानून की किताब में कहीं जिक्र ही नहीं हो तो क्या उम्मीद करेंगे. यह अदालत के लिए भी संशय वाली स्थिति है.
पुलिस ने जब 2013 में तीनों खिलाड़ियों को गिरफ्तार किया तो इसके बाद उन पर धोखेबाजी और महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) के तहत आरोप लगाए गए. इन आरोपों का स्पॉट फिक्सिंग से संबंध जोड़ते हुए ठोस सबूत पेश करना पुलिस के लिए मुश्किल था और वही हुआ भी. मकोका ज्यादातर अंडरवर्ल्ड से जुड़े अपराध, जबरन वसूली, फिरौती, गैरकानूनी रूप से बड़े पैमाने पर पैसे कमाने के मामले में लगाया जाता है. लेकिन पुलिस इन आरोपों को साबित नहीं कर सकी. ठोस 'खेल कानून' नहीं होने की स्थिति में पुलिस को भी फजीहत झेलनी पड़ी. अगर खेल कानून होता तो पुलिस उसके अनुसार आरोप तय करती और फिर पुलिस के लिए हाथ-पांव मारना ज्यादा आसान होता.
ऐसे मामलों में दोषी पाए गए खिलाड़ियों के खिलाफ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पास एकमात्र हथियार प्रतिबंधित करने का है. इससे ज्यादा कोई सजा आज के दिन में दोषी खिलाड़ियों को नहीं दिया जा सकता. भारतीय कानून तो यह भी नहीं कर सकता. बीसीसीआई ने कहा है कि अदालत द्वारा बरी किए जाने के बावजूद वह तीनों खिलाड़ियों से प्रतिबंध हटाने नहीं जा रहा. ऐसा क्यों? क्या बीसीसीआई को किसी और 'सच' का पता है जो अदालत में साबित नहीं हो सका?
देश का कानून बनाने का काम संसद करती है. सवाल है कि 15 साल पहले जब ऐसा गंभीर मामला हमारी नजरों से गुजर चुका था, फिर भी इस बारे में हम कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा सके.
हम भले ही अभी मैच या स्पॉट फिक्सिंग को क्रिकेट से जोड़ कर देख रहे हैं. लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों में भारत में कई अन्य खेलों और लीग प्रतियोगिताओं की शुरुआत हुई है. फिर वह चाहे इंडियन सुपर लीग (आईएसएल), हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल), प्रो-कबड्डी लीग आदि ही हो. इसलिए हमारे कानून को ऐसे मामलों से निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है. बाहर के कई देशों में इससे जुड़े कानून हैं. हम लेट हो चुके है. इसलिए बेहतर है कि अब और देरी नहीं की जाए.
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