मजदूर दिवस और लॉयल्टी डे की जंग !
दुनिया मजदूर दिवस मना रही है तो दूसरी ओर अमेरिका में उसका पूंजीवादी संस्करण लॉयल्टी डे मनाया जा रहा है. इन सेलिब्रेशन के बीच ट्रंप की राजनीति चमकाने की कोशिश चर्चा का विषय बन गई है.
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एक तरफ भारत सहित लगभग सारा विश्व आज मजदूर दिवस मना रहा है, तो दूसरी तरफ अमेरिका में लोयॅलटी की बात हो रही है. जी हां, अमेरिका 1 मई को लॉयलटी डे के रूप में मनाता है. ये और बात है कि मजदूर दिवस भी अमेरिका की ही देन है. कभी सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट विचारधारा का अनुसरण करने वाला देश आज उस सोच को बहुत पीछे छोड़ आया है. यहां तक कि उस सोच से संबंध रखने वाले मजदूर दिवस को भी.
मजदूर के उठ खड़े होने का अमेरिकी इतिहास
19वीं शताब्दी के अंत में दुनिया के मजदूर संगठित हो रहे थे. उनपर कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रभाव था. 8 घंटे का कामकाजी दिन, साप्ताहिक छुट्टी सहित एक बेहतर जीवनशैली उनकी कुछ बुनियादी मांगें थीं. अमेरिकी मजदूरों ने आज (1 मई) के ही दिन 1886 में अपनी मांगों को लेकर विशाल बंद का ऐलान किया था. और फिर इसी को दिन को याद करते हुए कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित देश विश्व मजदूर दिवस मनाने लगे.
लेबर डे बनाम लाॅयल्टी डे
श्रमिक भारत और विचारधारा
भारत की बात करें तो यहाँ श्रमिकों को लेकर एक्टिविज्म रूस के प्रभाव से शुरू हुआ. रूस से हमारा रिश्ता हमेशा से मधुर रहा तो लेनिन वाला सोशलिज्म धीरे से यहां भी आ गया. भारत में 'लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान' की पहल पर 1923 से 'विश्व श्रमिक दिवस' मनाया जाने लगा.
अमेरीकन लॉयल्टी डे
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया दो खेमों में बंट गई थी. शीत युद्ध के इस दौर में एक ओर अमेरिका था तो दूसरी ओर रूस. अमेरिकी जमीन से सोशलिज्म के निशान चुन-चुनकर मिटाए गए. उन्हीं में एक मजदूर दिवस भी था. अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजेनहॉवर ने 1958 को इस दिन (1 मई) को लोयलटी डे घोषित कर दिया. ये दिन अमेरीका और अमेरिकी आजादी की विरासत के प्रति वफादारी का प्रतीक बन गया. वैसे तो 1921 में ही लेबर डे को काउंटर करने के लिए इसका नाम बदलकर अमेरीकनाइजेसन् डे कर दिया गया था.
ट्रंप का लॉयल्टी डे
जब अमेरिका लॉयल्टी डे मनाने निकला तो भरोसे के संकट से जूझ रहे ट्रंप ने इसे अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल किया. अपने कार्यकाल के 100वें दिन, आलोचनाओ से घिरी ट्रंप सरकार ने लोयलटी डे को मुद्दा बनाने की कोशिश की. वैसे तो पिछले 60 वर्षों से हर साल राष्ट्रपति इसकी घोषणा करते आ रहे हैं. लेकिन इस बार ट्रंप का बयान कुछ खास है. वे आतंकवाद की बात करने लगे और दुश्मनों को चेतावनी देते रहे. 'हमारे देश के नागरिकों की लॉयल्टी इस बात का सबूत है कि हम अपनी राह से हटेंगे नहीं.'
एक समय कम्युनिस्ट विचारधाराओं के गढ़ रहे अमेरिका ने पूंजीवाद को अपनाते हुए सोशलिज्म से किनारा कर लिया था, लेकिन क्या अब वे ट्रंप का विरोध करते हुए उनकी लॉयल्टी के ऑफर को भी ठुकरा देंगे ?
कंटेंट : श्रीधर भारद्वाज ( इंटर्न, ichowk.in )
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