आईपीएस अमिताभ ठाकुर का 'मुलायम टेप' नया सिस्टम बनाएगा
अगर ये बात सही है कि सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति ने उन्हें धमकी दी है और उनके साथ पूर्व में हुई घटना को दोहराया गया है तो यह सारी बातें शर्मनाक हैं.
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यूपी के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को धमकी दिए जाने का मामला सुर्खियों में है. पूरे देश में इस मामले पर चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया में ये मामला टॉप पर ट्रेंड कर रहा है. अगर ये बात सही है कि सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति ने उन्हें धमकी दी है और उनके साथ पूर्व में हुई घटना को दोहराया गया है तो यह सारी बातें शर्मनाक हैं. उनके साथ ये सब इसलिए किया गया क्योंकि वे एक मंत्री के खिलाफ बोल रहे थे, विरोध कर रह थे. सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति ही बदला लेने की बात कर रहा है. यह तो तानाशाही की पराकाष्ठा है. ऐसे में सवाल उठता है कि जनता किसके पास जाए. जनता किससे उम्मीद रखे.
ये चीज़ें होनी नहीं चाहिए लेकिन ये नेता लोग इस तरह की बातें कर देते हैं. एक समाचार पत्र में एक पूर्व आईपीएस अधिकारी ने कहा कि आज की तारीख में एक एडवांटेज ये है कि रिकॉर्डिंग टूल्स की वजह से कम से कम ये सबूत तो रहता है कि उसके साथ ऐसा हुआ है. आज कम से कम अधिकारी आवाज़ तो उठा सकता है. पहले अधिकारी ऐसा नहीं कर पाते थे. मगर ऐसा नहीं कि पहले ऐसा नहीं होता था. पहले भी चीफ मिनिस्टर सीधे अधिकारियों से कह देते थे.
अमिताभ इतनी हिम्मत कर रहे हैं. वे अपनी नौकरी अपना सबकुछ दांव पर लगा कर यह सब कर रहे हैं. वे इस बात से डरे नहीं कि सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति उन्हें धमका रहा है. कई बार ऐसा होता है कि कई लोग बड़े नेताओं के नाम से अधिकारियों को फोन पर धमकाने लगते हैं. अमिताभ ने भी तभी बात की होगी जब उन्होंने नंबर देखा होगा. किसी ने टेलीफोन किया और कहा कि नेता जी बात करेंगे. पीबीएक्स से कॉल ट्रांसफर किया गया. तब उन्होंने बात की. किसी ने अगर मिमिक किया है तो बहुत ही बढ़िया किया. राजू श्रीवास्तव जैसे लोग ही ऐसा कर सकते हैं. लेकिन उस बातचीत में कहा गया था कि मैं पटना गया था आपके पिता जी से मिला था. ये बात तो केवल अमिताभ ठाकुर और मुलायम सिंह यादव ही जानते हैं. इनके अलावा ये इन्फॉरमेशन किसी के पास नहीं हो सकती. इस बारे में शायद उनकी पत्नी को भी न पता हो. समझाना एक बात होती है. वे अमिताभ को विश्वास में लेते, उन्हें बुलाते सामने बुलाकर बात करते.
अब अमिताभ विरोध की लाठी लिए अकेले खड़े हैं. विभाग की बात ये है कि उनके खिलाफ एक ही जैसी दो एप्लीकेशन एटा और गाजियाबाद से आई थीं. जिसमें दो अलग-अलग महिलाओं ने उन पर एक ही तरह के आरोप लगाए थे. अब अचानक उन मामलों में 6 माह बाद एफआईआर दर्ज कर ली गई. एसएसपी ने महिलाओं को मेडिकल तक के लिए भेज दिया. और ये भी कह दिया कि बयान लेंगे और ज़रूरत पड़ी तो गिरफ्तारी भी करेंगे. दरअसल, शासन जो कहेगा अधिकारी वही करेंगे. अधिकारी दबाव से होकर आते हैं. उन्हें किसी न किसी तरह दबाव झेलना पड़ता है. हम दबाव को झेलकर किसी तरह से निकल गए.
अमिताभ ठाकुर का विरोध किसी सरकार से नहीं बल्कि सिस्टम से है. ये भाव उनके अंदर है, अच्छी बात है. लेकिन ये बात भी अपनी जगह है कि जब आप नौकरी कर रहे हैं और आप से गलत काम के लिए कहा जाए तो आप स्किप कर जाओ. कहीं चले जाओ. इस तरह के मामलों से बचा जा सकता है. अमिताभ शासन के नियमों के मुताबिक सब कर रहे हैं. वे कहते हैं कि वे एक नागरिक होने के नातें सबकुछ कर रहे हैं. किसी कानून का उल्लंघन नहीं करते. वे केवल अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं. कोई प्रशासनिक अधिकारी या कोई आईपीएस या आईएएस किसी अन्याय को देखता है और एक जागरुक नागरिक होने के नाते उसके खिलाफ आवाज़ उठाता है तो क्या ये सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाना है?
प्रधानमंत्री कहतें हैं कि स्वच्छता अभियान में शामिल हों. अमिताभ ठाकुर, मोदी के स्वच्छता अभियान में सौ लोगों को साथ लेकर शामिल हों रहे हैं, सफाई कर रहे हैं. दो लोग इसका विरोध करें तो क्या अमिताभ एक नागरिक के नाते ऐसे अभियान में भाग नहीं ले सकते? अगर एक अधिकारी अन्याय के खिलाफ न्याय संगत तरीके से खड़ा हो रहा है तो क्या यह गलत है? आप क्यों चिढ़ रहे हैं? न्यायिक तरीके से उसका जवाब दो. कानूनी तरीके से जवाब दो. हमने भी जबाव दिए हैं. अगर जांच में कोई पुलिसकर्मी दोषी पाया गया तो उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. कुल मिलाकर अगर आपको शिकायत थी तो बुलाकर या सही तरीके से अमिताभ से बात करते, समझाते. किसी अधिकारी को धमकाना केवल तानाशाही को दर्शाता है.
अब बात अमिताभ की. ऐसे अफसर जो नियम से परे किसी की बात स्वीकार नहीं करते, वे दबाव बनाने वालों का खुलासा कर नया सिस्टम बना रहे हैं. समाज को और खुलकर इनके साथ आना चाहिए. वो आ भी रहा है. लेकिन एक सवाल यूपी की आईपीएस एसोसिएशन से है. जिसने एसपी उन्नाव रहे सब्बरवाल के निलंबन पर अकल्पनीय एकता दिखाई थी. पूरी एसोसिएशन एकजुट होकर उनके साथ खड़ी हो गई थी. सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा था. साल 2002 में सब्बरवाल को एक संघ पदाधिकारी की पिटाई करने के मामले में बीजेपी सरकार ने सस्पेंड कर दिया गया था. तब आईपीएस एसोसिएशन ने एकता की नई मिसाल कायम की थी. मगर अब एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ हुई इस घटना पर आईपीएस एसोसिएशन आज चुप क्यों है?
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