क्या अमर सिंह सिर्फ सात साल की सजा वाले अपराधों से ही बचाने में माहिर हैं?
सोच कर ही ताज्जुब होता है इतनी बड़ी बड़ी बातें अमर सिंह आखिर अपने अति विनम्र हंसमुख चेहरे के पीछे छिपा कैसे लेते हैं?
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मानना पड़ेगा, अमर सिंह ने तो राम जेठमलानी जैसे नामी वकील को भी पीछे छोड़ दिया. ये तो मुलायम सिंह यादव की पारखी नजर रही जिन्होंने अमर सिंह में ऐसा फाजिल दोस्त देखा - और भला हो उनका कि अमर सिंह की इस खूबी को उन्होंने शेयर किया वरना किसी को पता भी न चलता. न तो कभी कोई डिग्री विवाद होता और न ही कोई ये पूछ पाता कि वकालत की ऐसी आला तालीम उन्होंने कब और कहां से ली - या ये कोई पैदाइशी हुनर है?
सोच कर ही ताज्जुब होता है इतनी बड़ी बड़ी बातें अमर सिंह आखिर अपने अति विनम्र हंसमुख चेहरे के पीछे छिपा कैसे लेते हैं?
अमर सिंह की महारत?
दिल्ली की राजनीति में तो कानूनी जमात का जलवा जगजाहिर है - यूपी में तो लोग सिर्फ सतीश मिश्रा का ही नाम जानते रहे. उनके बारे में भी खास बातें तब पता चलीं जब मायावती ने उनके हमेशा साथ नजर आने की वजह साझा की. ज्यादा दिन नहीं हुए मायावती ने एक रैली में बताया कि सतीश मिश्रा को वो इसलिए साथ रखती हैं ताकि कहीं कोई कानूनी मुश्किल आ पड़े तो वो उन्हें बचा लें. सतीश मिश्रा को भी उसी दिन ये बात मालूम हुई होगी, वरना वो भी शिवपाल यादव की तरह कभी राजनीतिक विरासत को लेकर कुछ न कुछ गलतफहमी पाल रखे होंगे. ये सुन कर मन में एक सहज सवाल उठता है कि नेताओं का सिर्फ जेड प्लस सिक्योरिटी से ही काम नही चल पाता? इस तरह नसीबवाला बनने में माया और मुलायम से सिर्फ लालू प्रसाद ही पीछे नजर आते हैं - नहीं तो, जयललिता भी उबर चुकी हैं.
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तो क्या मुलायम सिंह भी अमर सिंह को वैसे ही हमेशा साथ रखना चाहते हैं जैसे सतीश मिश्रा को मायावती. क्या अमर सिंह को समाजवादी पार्टी में पुराना पद और पहले से ज्यादा प्रतिष्ठा दिये जाने की भी यही असल वजह है. क्योंकि पार्टी से बाहर होने पर अमर सिंह को हमेशा साथ रखना संभव न था.
अब सवाल ये है कि क्या मुलायम सिंह सिर्फ पुराने अहसानों के चलते अमर सिंह की इतनी तारीफ कर रहे हैं या फिर कोई नया खतरा मंडरा रहा है जिसके लिए अपने कानूनी कनेक्शन से संजीवनी बूटी सिर्फ अमर सिंह ही खोज सकते हैं.
क्या वो आय से अधिक संपत्ति का मामला है? फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता? पहले यूपीए सरकार और अब मोदी सरकार मुलायम सिंह पर सीबीआई के जरिये नकेल कसे रहती है - या कोई और मामला. बिहार चुनाव और फिर संसद सत्र में मुलायम के विपक्ष का साथ न देने पर तो यही सवाल खड़े किये जा रहे थे. क्या अमर सिंह ने ऐसे ही किसी मामले में मुलायम की कोई मदद की?
अब तो दिल में भी - और दल में भी... |
पब्लिक लाइफ में भी पर्सनल मामलों को निजता की दुहाई देकर इग्नोर करने पर ही जोर दिया जाता रहा है. यही वजह है कि सोनिया गांधी की बीमारी और अमेरिका में उसके इलाज पर कोई सवाल नहीं पूछता.
लेकिन जब खुद ही कोई निजी बातें सार्वजनिक करे तो कोई क्या कर सकता है? फिर तो लोगों की राजनीतिक हस्तियों में भी वैसी ही दिलचस्पी पैदा होती है जैसी फिल्मी सितारों में.
मुलायम सिंह ने भी माना है कि वाजपेयी से लेकर कल्याण सिंह तक कड़े विरोधी होने के बावजूद कभी उनके निजी मामले नहीं उठाये. मुलायम सिंह अपने समर्थकों में मसीहा माने जाते हैं. समर्थकों को भी तो लग रहा होगा उनके नेता को किन किन हालात से गुजरना पड़ा? कितना संघर्ष करना पड़ा? कुछ संघर्ष तो दिखता है, लेकिन कुछ ऐसे भी होतें हैं जिसे नेता नीलकंठ बन कर चुपचाप पी लेते हैं.
अगर समर्थक इस उधेड़बुन में लगते हैं तो स्वाभाविक है. आखिर मामला क्या था? क्या मुलायम सिंह किसी हादसे की वजह से किसी मामले में फंसे? या किसी ने साजिश रच कर ऐसा मामला बनाया और फिर जैसे तैसे मुलायम सजा से बाल बाल बच पाये.
समर्थक तो समर्थक, क्या लालू प्रसाद को नहीं लगा होगा कि इतने करीब और फिर रिश्तेदारी होने के बावजूद मुलायम सिंह ने क्यों नहीं बताया कि उनके अमर सियासी ही नहीं, कानूनी पेंचों की बारीकियों से भी उतने ही वाकिफ हैं. मायावती तो निश्चिंत रहती हैं कि उनके पास सतीश मिश्रा हैं. लेकिन लालू? राम जेठमलानी को तो अभी अभी उन्होंने राज्य सभा भेजा है. अगर मुलायम थोड़ा भी हिंट दे देते तो लालू चारा घोटाले में अमर सिंह को सेट कर सकते थे.
लेकिन क्या पता अमर सिंह सिर्फ सात साल की सजा वाले अपराधों से ही बचाने में माहिर हों!
सजा-ए-सात साल?
सोशल मीडिया पर टाटा संस और यादव संस के दबदबे की बात चल रही है - दोनों की ताकत की तुलना की जा रही है. फिर भी मिस्त्री को लेकर मिस्ट्री कम नहीं हो रही. ऐसे में मुलायम ने एक नयी मिस्ट्री पेश कर दी है.
ध्यान उन अपराधों की ओर जाने लगा है जिनमें कम से कम या फिर ज्यादा से ज्यादा सात साल की सजा होती है. आम लोगों के मन में बड़ा सवाल ये है कि ऐसे कौन कौन से अपराध हैं जिनमें सात साल की सजा होती है. जिनके मन में ये ख्याल आये वो चाहें तो कानून के जानकारों से मशवरा कर सकते हैं. हर किसी के पास अमर सिंह तो हो नहीं सकते, लेकिन उनका कोई न कोई अमर सिंह तो होगा ही. ऐसा नहीं तो दोस्तों में किसी ने कानून की जरूर की होगी. अब तो डरने की बात भी नहीं जिसका कोई नहीं उसके लिए गूगल तो है ना.
असली वजह एक ही तो नहीं?
उनके इरादे लोहा हैं - और वो मन से जितने मुलायम बड़ों के लिए हैं उतने ही बच्चों के लिए भी. वो तो इतने उदार हैं कि संगीन से संगीन जुर्म का इल्जाम लगने पर भी कहते हैं - बच्चे हैं बच्चों से गलती हो जाती है. 'तो क्या फांसी पर चढ़ा दोगे?'
लेकिन ऐसा क्या है अपने बच्चे को लेकर वो इतने सख्त हो जाते हैं. अमर सिंह के लिए तो तारीफों के पुल बांधते हैं लेकिन अपने ही बेटे को बात बात पर कोसते और फटकार लगाते हैं. वो भी तब जब उनके कहते ही किसी भी मंत्री को वो कैबिनेट से निकाल बाहर करता है - और जब वो उनकी घर वापसी का एलान कर देते हैं तो चुपचाप मान भी लेता है.
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मुलायम सिंह के सात साल की सजा वाले बयान के बाद समर्थक और विरोधी दोनों ही खेमों में चर्चा इसी बात की है कि आखिर इसका रहस्य क्या है? सवाल ये है कि जो अमर सिंह मुलायम सिंह को जिंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत से हंसते खेलते उबार लेते हैं वो आखिर उनकी समाजवादी पार्टी को इतने बड़े संकट में क्यों डालेंगे? ऐसा कैसे हो सकता है कि जो शख्स पिता को मुश्किल से बचाये वही बेटे पर मुसीबतें उड़ेल दे. जरूर अखिलेश को कोई न कोई गलतफहमी है. जिस तरह मुलायम ने अखिलेश को सजा वाली बात बताई उसी तरह उनकी गलतफहमी भी खत्म कर देते तो कितना अच्छा होता.
कहीं अमर सिंह से अखिलेश के नाराज रहने और मुलायम के अहसानमंद रहने का कारण एक ही तो नहीं है. क्या मालूम जिस बात से मुलायम सिह अमर सिंह के शुक्रगुजार है - अखिलेश भी उसी बात से सबसे ज्यादा खफा हों?
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