अमरनाथ पर आतंकी हमला बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है
इंटेलिजेंस की चेतावनी थी की आतंकवादी अमरनाथ यात्रियों को निशाना बना सकते हैं तो क्यों नहीं इस रूट को फूलप्रूफ सुरक्षा प्रदान की गयी. क्या इसे पुलिस की चूक नहीं मानेंगे?
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सावन के पहले सोमवार के दिन कश्मीर में अमरनाथ यात्रियों पर हमला होना बहुत कुछ कह रहा रह है. आतंकवादियों ने इस आतंकी हमले में एक बस को अपना निशाना बनाया. उन्होंने अनंतनाग में पुलिस के काफिले पर हमला करने के बाद अमरनाथ यात्रियों की एक बस पर फायरिंग की जिसमें 7 यात्रियों की मौत की हो गई. मरने वालो में ज्यादा संख्या गुजरात से थी. नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्र में तीन साल पुरे कर लिए हैं. इस कार्यकाल में ये पहली आतंकी घटना है, जो अमरनाथ यात्रियों पर हुई है. और कहे तो ये भी कहना सही है कि मोदी के कार्यकाल में पहली बार किसी धार्मिक प्रयोजन पर गए हुए लोगों पर हमला हुआ है. कश्मीर में बुरहान वानी की पहली बरसी के दौरान इस तरह का हमला होना जब कश्मीर में सुरक्षा पूरी चाक-चौबंद थी और जब वहां पर हाई अलर्ट जारी है बहुत कुछ कहता है.
सवाल कई उठ रहे हैं कि आखिर ये चूक कैसे हुई? इतना हाई अलर्ट होने के बाद भी क्या सुरक्षा नाकाफी थी. अगर मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो जिस बस पर हमला किया गया वो अमरनाथ श्राइन बोर्ड से रजिस्टर्ड नहीं थी. वे लोग दो दिन पहले ही दर्शन कर के वापस लौट रहे थे. सवाल ये भी उठता है कि आखिर क्यों दूसरे सिक्योरिटी चेकपॉइंट से बस गुजरने में सफल हो जाती है. सुरक्षा खामी का एक पहलु ये भी है कि क्यों 5 बजे शाम के बाद ये बस चल रही थी. सुरक्षा नियमों के तहत ये बिल्कुल साफ है कि किसी भी परिस्थिति में सूरज ढलने के बाद अमरनाथ यात्री, यात्रा नहीं करेंगे. और सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है कि इंटेलिजेंस की चेतावनी थी की आतंकवादी अमरनाथ यात्रियों को निशाना बना सकते क्यों नहीं इस रूट को फूलप्रूफ सुरक्षा प्रदान की गयी. क्या इसे पुलिस की चूक नहीं मानेंगे?
कई समीक्षक अलग-अलग ढंग से इस घटना का आकलन कर रहे हैं. कुछ का कहना है कि ये हमला किसी बड़े खतरे का सूचक है. लश्कर और हिज्बुल के आतंकवादी बौखलाए हुए हैं और किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की जुगाड़ में लगे हुए हैं. अमरनाथ यात्रियों पर हमला तो महज चेतावनी है. कुछ कहते हैं इसी तरह आतंकवादी कावड़ यात्रा को भी निशाना बना सकते हैं.
बीते कुछ सालों में आतंकियों ने अमरनाथ यात्रा को निशाना नहीं बनाया. पहली बार इस यात्रा को निशाना 1993 में बनाया गया था. अगस्त 2000 में आतंकियों ने पहलगाम में अमरनाथ यात्रियों पर हमला किया था. इस हमले में 17 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी और कुल 25 लोग मारे गए थे. 1996 में आतंकवादियों ने ये वादा किया था कि अमरनाथ यात्रा पर कभी हमला नहीं करेंगे और इसका उलंघन भी कभी कभार ही हुआ है. कश्मीर में जब 2008 से 2010 तक और 2016 में विरोध प्रदर्शन चरम पर था, हाल के दिनों में जब आतंकी, पत्थरबाज़ी और सुरक्षाकर्मियों पर हमले की घटनाएं चरम पर हैं तब भी अमरनाथ यात्रा को निशाना नहीं बनाया गया और इसीलिए ताज़ा हमले को नए ख़तरे का संकेत माना जा रहा है.
केंद्र सरकार की ओर से भी अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के बड़े-बड़े दावे किए गए थे. कहा गया था कि सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता. इंटेलिजेंस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि यात्रियों पर हमला हो सकता है. अब देखना ये हैं की सरकार आने वाले समय में आतंकवादियों की नयी चुनौती का सामना किस तरह करते हैं.
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