अपनी 'एक्टिविस्ट छवि' के कारण ही बार-बार घिरते हैं केजरीवाल!
एक्टिविस्ट से नेता बनने तक का सफर केजरीवाल ने भले ही पूरा कर लिया है. लेकिन एक्टिविस्ट वाली छवि रह रहकर उनके सामने आ जाती है. और फिर वो उसी अंदाज में बहने लगते हैं.
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ज्यादा दिन नहीं हुए जब दिल्ली पुलिस से अरविंद केजरीवाल की तू-तू..मैं..मैं हर रोज सुर्खियों में होती थी. दिल्ली पुलिस को लेकर केजरीवाल और उनके मंत्रियों की ओर से जो भी आरोप लगाए जाते, पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी उसका जवाब देने स्वयं मीडिया के सामने प्रकट हो जाते. कड़वाहट यहां तक बढ़ी कि दिल्ली सरकार ने बस्सी द्वारा एक घर खरीदने की प्रक्रिया में हुई कथित हेराफेरी को लेकर पुलिस कमिश्नर के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज कराने का मन बना लिया. जाहिर है इस पूरे मामले में केजरीवाल की 'एक्टिविस्ट छवि' ने ज्यादा आग लगाई. शायद इसलिए वह हर मामले में सिस्टम से टकराव करते नजर आने लगते हैं. और यही कारण भी है कि वे हर बार घिरते नजर आते हैं. खैर, अब लगता है कि ये पूरी कहानी सीबीआई बनाम केजरीवाल में तब्दील हो चली है.
छापे के बाद ट्वीट पर घिरे केजरीवाल
दिल्ली सचिवालय पर छापे के बाद केजरीवाल ने एक के बाद एक ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को निशाने पर लिया. वह ये कहने से भी नहीं चूके कि सीबीआई के ही किसी अधिकारी ने उन्हें बताया है कि जांच एजेंसी को यह निर्देश दिए गए हैं कि वो विरोधी पार्टियों को निशाने पर लें. यही नहीं जो नियंत्रण से बाहर जाने की कोशिश करें उनकी कहानी ही खत्म कर दी जाए.
A CBI officer told me yest that CBI has been asked to target all opp parties n finish those who don't fall in line https://t.co/CU5FoTtPq5
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) December 18, 2015
अब इस ट्वीट के बाद सीबीआई ने भी चुनौती दी है कि केजरीवाल उस अधिकारी के नाम का खुलासा करें. केजरीवाल शायद इस सवाल का जवाब न दें. लेकिन घिरते वहीं नजर आ रहे हैं. एक्टिविस्ट से नेता बनने तक का सफर केजरीवाल ने भले ही पूरा कर लिया है. लेकिन एक्टिविस्ट वाली छवि रह रहकर उनके सामने आ जाती है. और फिर वो उसी अंदाज में बहने लगते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केजरीवाल ने जिस अंदाज में आरोप लगाए वो भी तो एक एक्टिविस्ट की ही झलक थी.
वैसे सीबीआई का रूख भी हैरान करता है. उसे केजरीवाल के आरोपों का जवाब देने की जरूरत क्यों पड़ रही है. क्योंकि सीबीआई पर पहले भी हमले हुए हैं. लेकिन जांच एजेंसी इस मामले में पलटकर जवाब दे रही है. अमूमन, एक जांच एजेंसी ऐसा करती नहीं.
बहरहाल, याद कीजिए..अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल जब जनलोकपाल बिल के मुद्दे पर सीएम की कुर्सी छोड़ी तो सभी के निशाने पर आ गए थे. दिल्ली की जनता से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों ने उनके इस कदम को 'राजनीतिक आत्मत्या' करार दिया. लेकिन केजरीवाल किस्मत के धनी निकले. दिल्ली ने उन्हें फिर मौका दिया. लेकिन क्या ये मौका उन्हें हर बार मिलेगा? केजरीवाल बार-बार क्यों भूल जाते हैं कि वे अब नेतागिरी के प्रोफेशन में आ चुके हैं. उन्हें तो लड़ना छोड़...अब सिस्टम सुधारने की बात करनी चाहिए. केजरीवाल तो इसी इरादे से राजनीति में आए थे ना..!
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