गुमनामी बाबा ही थे नेताजी, राज से उठेगा पर्दा?
जनवरी 1946 में महात्मा गांधी ने भरोसा जताया था कि नेताजी जिंदा हैं और सही समय आने पर वापस आएंगे. 'नेहरू को सुभाष चंद्र बोस का एक पत्र मिला था जिसमें उन्होंने...
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भारतीय इतिहास के सबसे अनसुलझे और चर्चित जिस राज से 68 साल बाद भी पर्दा नहीं उठ पाया है वह एक बार फिर सुर्खियों में हैं. यह राज है महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की मौत का.
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में रहने वाले गुमनामी बाबा के बारे में कहा जाता है कि वे नेताजी ही थे. अब यूपी सरकार गुमनामी बाबा का म्यूजियम बनाने जा रही है तो यह मुद्दा फिर चर्चा में है.
आइए जानें क्यों उन गुमनामी बाबा को नेताजी कहा जा रहा है और कैसे देश के इस सबसे बड़े राज से पर्दा उठ सकता है-
1945 में नहीं हुई थी नेताजी की मौत?
भले ही यह कहा जाता हो कि नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को ताइवान में हुए एक विमान हादसे में हुई थी. लेकिन इस तथ्य पर हमेशा से विवाद रहा है. इस मामले की जांच के लिए गठित मुखर्जी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में ताइवन विमान हादसे में नेताजी की मौत की बात को खारिज कर दिया था.
गांधी जी भी मानते थे कि नेताजी जिंदा हैं?
जनवरी 1946 में महात्मा गांधी ने भरोसा जताया था कि नेताजी जिंदा थे और सही समय आने पर वापस आएंगे. कुछ लोगों के मुताबिक नेहरू को सुभाष चंद्र बोस का एक पत्र मिला था जिसमें लिखा था कि वह रूस में हैं और भारत भागना चाहते हैं. वह चितरल होकर भारत पहुंचेंगे, जहां शरत बोस का एक बेटा उन्हें रिसीव करेगा.
अंग्रेज भी करते हैं पुष्टिः नेताजी की कथित मौत के पांच दिन बाद 23 अगस्त 1945 को वाइसरॉय की एक्जिक्युटिव काउंसिल के होम मेंबर सर एफ मूडी ने सर ई जेकिंस को लिखा था कि वह बोस को युद्ध अपराधी मानने के बारे में निर्णय लेने और इससे होने वाले परिणामों का सामना करने पर निर्णय लेने के बारे में सोच रहे हैं.
क्या गुमनामी बाबा ही नेताजी थे?
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में एक योगी रहते थे जिन्हें पहले भगवानजी और बाद में गुमनामी बाबा कहा जाने लगा. मुखर्जी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फैजाबाद के भगवानजी या गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में काफी समानताएं थीं. 1945 से पहले नेताजी से मिल चुके उन लोगों ने जो कि बाद में गुमनामी बाबा से भी मिले, ने माना था कि वही नेताजी थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 जनवरी (नेताजी का जन्मदिन) और दुर्गा पूजा के दिन कुछ स्वतंत्रता सेनानी, आजाद हिंद फौज के कुछ पूर्व सदस्य और राजनीतिज्ञ गुमनामी बाबा से मिलने आते थे.
7 सितंबर 1963 को लीला रॉय ने नेताजी के करीबी दोस्त दिलीप रॉय को गुमनामी बाबा के निर्देश पर एक पत्र लिखा था, 'मैं आपके दोस्त के बारे में कुछ बताना चाहती हूं, वह जीवित हैं और भारत में हैं.' 1970 में लीला की मौत से गुमनामी बाबा को बहुत झटका लगा था और अपने एक पत्र में उन्होंने लीला को श्रद्धांजलि दी थी. हैंड राइटिंग एक्सपर्ट डॉ. बी लाल ने गुमनामी बाबा द्वारा लिखे इस पत्र का मिलान नेताजी की हैंड राइटिंग से किया और पाया कि दोनों हूबहू एक जैसी ही थीं.
राम भवन में जाने से पहले छह महीने तक ब्रह्मकुंड में रहने वाले गुमनामी बाबा के बारे में गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड साहिब के प्रमुख ज्ञानी गुरजीत सिंह खालसा ने कहा कि रात के अंधेरे में गुमनामी बाबा से मिलने सेना, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी आते रहते थे.
क्या है गुमनामी बाबा की कहानीः.
यह रहस्मयी संन्यासी स्टालिन की मौत के दो साल बाद 1955 में लखनऊ के आलमबाग के श्रृंगार नगर इलाके में पहुंचे थे. शुरू में उन्हें भगवानजी कहा जाता था जो बाद में गुमनामी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए.
भगवानजी या गुमनामी बाबा दो साल तक श्रृंगार नगर में रिश्तेदार के यहां किराए के घर में गुमनामी में रहे. 1957 में वह भारत-नेपाल सीमा पर स्थित नीमसार चले गए. पहली बार अप्रैल 1962 में नेताजी के सहयोगी रहे अतुल सेन ने उनसे मुलाकात की और उन्हें पहचाना. इसके बाद से दुर्गा पूजा और नेताजी के जन्मदिन (23 जनवरी) पर पश्चिम बंगाल से कई लोग उनसे मिलने आने लगे. लेकिन वह चौकन्ने रहे और अक्सर अपना ठिकाना बदलते रहे.
इन बातों से रहस्य गहरायाः
17 सितंबर 1985 को रात में 9 बजकर 45 मिनट पर भगवानजी या गुमनामी बाबा की मौत हृदयगति रुक जाने से हुई. 19 सितंबर को शाम 4 बजे फैजाबाद के गुप्तार घाट पर सरयू नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया. लेकिन किसी को भी उनका चेहरा नहीं देखने दिया गया. उस अंतिम संस्कार में मौजूद रहे डॉ. पी बनर्जी ने बाद में बताया कि जिनका अंतिम संस्कार किया गया वह गुमनामी बाबा नहीं थे.
इसमें एक और रहस्य है. एक माचिस में जिसमें गुमनामी बाबा के सात दांत थे, को जांच के लिए कोलकाता की सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी और हैदराबाद की एक लैब में भेजा गया था. लेकिन हैदराबाद की लैब ने अधूरी रिपोर्ट दी तो कोलकाता की लैब ने निगेटिव रिपोर्ट दी. लेकिन नेताजी पर रिसर्च करने वाले अनुज धर इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था. इस डीएनए सैंपल की जांच करने वाले एक्सपर्ट मुखर्जी आयोग के सामने पेश नहीं होना चाहते लेकिन बार-बार समन भेजे जाने के बाद वे जांच में शामिल हुए.
नेताजी की भतीजी लतिका बोस द्वारा दायर याचिका की जांच के दौरान गुमनामी बाबा के घर की तलाशी में पाया गया कि उन्हें नेताजी और आजाद हिंद फौज से जुड़ी कई चीजें और साहित्य मिले. वहां नेताजी के कई पारिवारिक फोटो और उनकी मौत के लिए बने जांच आयोग की रिपोर्ट्स भी मिलीं.
अब जबकि यूपी सरकार गुमनामी बाबा से जुड़ी चीजों को सहेजने के लिए एक म्यूजियम स्थापित कर रही है और कोर्ट ने गुमनामी बाबा की पहचान की जांच के लिए आयोग गठित करने को कहा है तो उम्मीद है कि इस जांच से उस राज से पर्दा उठेगा जिसके बारे में हम सब जानना चाहते हैं.
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