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Updated: 26 नवम्बर, 2015 02:02 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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आतंकी हमलों के डर के बीच बराक ओबामा ने अमेरिकी लोगों को भरोसा दिया है कि उनका देश पूरी तरह से सुरक्षित है. अमेरिका में क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं. लेकिन वहां लोग डरे हुए हैं और पूछ रहे हैं कि क्या उन्हें हवाई जहाज से यात्रा करनी चाहिए. ISIS ने अमेरिका को भी धमकी दी है. लोगों को डर है कि कहीं 9/11 वाला मंजर अमेरिका को दोबारा न देखना पड़े. लेकिन ओबामा मजबूती से खड़े होकर भरोसा जता रहे हैं. सवाल अब हमसे है कि 26/11 के मुंबई हमले के सात साल बाद हम कितने तैयार है?

क्या हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैसा ही भरोसा जताने की स्थिति में है जैसा अमेरिका कह रहा है. मिल रही तमाम धमकियों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति दावे के साथ अपनी बात कह रहे हैं. फिर हम ऐसा क्यों नहीं कह सकते. अमेरिका से ज्यादा आतंकवाद हमने झेला है लेकिन क्या हम उस बुरे अनुभव से बहुत कुछ सीख पाए? 26 नवंबर, 2008 को मुंबई की सड़कों पर जो हुआ ठीक वैसी ही घटना कुछ दिनों पहले पेरिस में हुई. इसके बाद आतंकवाद को लेकर दुनिया में वैसी ही बहस चल पड़ी है जैसा हर बड़े हमले के बाद अमूमन होता है. दुनिया आतंकवाद से कैसे निपटेगी यह वैश्विक राजनीति का विषय है. लेकिन हम इससे कैसे निपटेंगे और इसके खात्मे के लिए क्या कर रहे हैं, यह तो हमारी ही जिम्मेदारी है.

26/11 के बाद हमारे यहां भी सुरक्षा व्यवस्था, इंटेलिजेंस को लेकर खूब चर्चा हुई. लेकिन क्या उस पर वाकई गंभीरता से काम हुआ है? नहीं. कुछ एक चीजों को छोड़ दें हालत लगभग वैसी ही है. मतलब, अगर हम किसी बड़े आतंकी हमले से बचे हुए हैं तो राम भरोसे ही.

सीसीटीएनएस का क्या हुआ
मुंबई हमलों के बाद 2009 में तब के गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने देश के सभी पुलिस थानों को एक डेटाबेस नेटवर्क से जोड़ने का काम शुरू किया था. इस पर 2000 करोड़ रुपये खर्च होने थे. क्राइम और क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम प्रोजेक्ट (सीसीटीएनएस) नाम के इस योजना को 2011-12 तक पूरा हो जाना था लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है. काम न केवल अधूरा है बल्कि बेहद धीमी गति से आगे बढ़ रहा है. कई राज्यों में तो इसे शुरू ही नहीं किया जा सका है.

पुलिसकर्मियों की कमी
इसके अलावा पुलिस बल की जबर्रदस्त कमी, पुराने हथियार, काम करने के रवैये और अच्छी ट्रेनिंग की कमी भी बड़ी समस्या है. पिछले साल के एक आंकड़े के अनुसार देश में प्रति एक लाख की आबादी पर केवल 106 पुलिसकर्मी तैनात हैं. जबकि संयुक्त राष्ट्र की सलाह के अनुसार इसे 222 होना चाहिए. विभिन्न राज्यों और केंद्र के बीच मतभेद के कारण नेशनल काउंटर टेररिज्म (NCTC) स्थापित करने की योजना वैसे ही ठंडे बस्ते में है. महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने जरूर फोर्स-1 जैसी कमांडो टीम की तैयारी की है लेकिन इनके अधिकार भी काफी सीमित हैं.

बॉर्डर और तट रक्षा के मामले में जरूर कुछ बेहतर काम हुए हैं. लेकिन घर के अंदर सब कुछ बिखरा पड़ा है. उसे दुरुस्त करने की जरूरत है. केवल सेना, एनएसजी या कोस्ट गार्ड ही नहीं बल्कि सभी एजेंसियों को नवीन तकनीक से लैस करना होगा. यहीं नहीं सभी सुरक्षा ऐजेंसियों के बीच तालमेल पर भी बहुत काम करने की जरूरत है.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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