क्या मोदी अब तक के सबसे सफल 'विदेश मंत्री' हैं?
मोदी से पहले ऐसा तो कभी नहीं देखा गया कि कोई नेता बिल, बुश या रोनाल्ड कह कर किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को संबोधित किया हो.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने पहले ही भाषण में योग के लिए भी एक दिन निश्चित किए जाने का प्रस्ताव रखा. 75 दिन के रिकॉर्ड वक्त में ही इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई - और आज से ठीक एक महीने बाद अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाना है.
भारतीय संस्कृति और समृद्धि को दुनिया के नक्शे पर मान्यता दिलाने की मोदी की ये पहली कोशिश कामयाब रही. वैसे संयुक्त राष्ट्र के अलावा ज्यादातर मौकों पर मोदी को हिंदी में बातचीत करते और भाषण देते देखा गया, लेकिन साल भर बीतते बीतते चीन में उन्हें अंग्रेजी में बोलते सुना गया - इतना फर्क जरूर आया है.
विदेश नीति और उपलब्धियां
1. दुनिया के मुल्कों से आपसी रिश्तों और कूटनीति पर खास जोर होगा इस बात के संकेत तो मोदी के शपथग्रहण के वक्त ही मिल गए थे जब सार्क देशों के सभी नेताओं को न्योता भेज कर बुलाया गया. खास बात ये रही कि रिश्तों में तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी आए - और उनके साथ भी मोदी की खास मुलाकात भी हुई. हालांकि, वैसी गर्मजोशी बाद में बरकरार नहीं रह पाई.
2. यमन में विद्रोह के धमाकों के बीच पहुंच कर भारतीयों की सुरक्षित वापसी मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि रही. आर्मी चीफ रह चुके विदेश राज्य मंत्री ने ग्राउंड जीरो पहुंच कर राहत अभियान को सुपरवाइज किया. भारत की सक्रियता और विशेषज्ञता को देखते हुए दुनिया के 26 देशों ने भारत से मदद की गुहार लगाई - और फिर भारत ने उन देशों के नागरिकों को भी सफलतापूर्वक सुरक्षित निकाला. ये बात अलग है कि उसी दौरान मीडिया को लेकर अपने 'प्रेस्टिट्युट' वाले बयान को लेकर वीके सिंह विवादों में रहे.
3. पिछले महीने जब नेपाल में भूकंप आया तो प्रधानमंत्री ने खुद पहल करते हुए न सिर्फ मदद की पेशकश की बल्कि राहत दल भी फौरन रवाना कर दिया. राहत और बचाव में भारतीय टीम ने बेहतरीन काम किया. बस आखिरी दौर को छोड़ कर जब नेपाल की सेना और मीडिया विरोध पर उतर आए.
4. ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में भी मोदी ने भारत की मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई जहां 100 डॉलर की शुरुआती पूंजी के साथ ब्रिक्स बैंक की स्थापना को लेकर समझौता हुआ. इस समझौते के तहत बैंक का मुख्यालय शंघाई में और पहला अध्यक्ष चुनने का अधिकार भारत को मिला. अब तो आईसीआईसीआई बैंक के गैर-कार्यकारी चेयरमैन केवी कामत को ब्रिक्स बैंक का प्रमुख भी नियुक्त किया जा चुका है.
5. प्रधानमंत्री ने अब 'लुक ईस्ट' की जगह 'एक्ट ईस्ट' की पहल की है और इसे विदेश नीति का अहम हिस्सा बताया है. प्रधानमंत्री के मुताबिक सरकार अब ईस्ट के देशों से संबंधों को बेहतर करने के लिए हर जरूरी कदम उठायेगी.
6. हाल फिलहाल बांग्लादेश के साथ समझौता भी बेहद अहम रहा जिसे संसद की भी मंजूरी मिल गई. असल में दोनों मुल्कों की सीमा में कुछ ऐसे इलाके मौजूद हैं जो दूसरे के हिस्से में आते हैं. समझौते के बाद अब इन इलाकों में बसे करीब पचास हज़ार लोगों को हक होगा कि वे दोनों में से किसी एक देश के नागरिक के तौर पर रहना चाहते हैं.
कुछ विवाद, कुछ नाकामियां
7. पाकिस्तान से रिश्तों में कई उतार चढ़ाव देखे गए. पाकिस्तानी उच्चायुक्त से जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की मुलाकात को लेकर दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बातचीत रोक दी गई. दिल्ली में पाक दूतावास के कार्यक्रम में विदेश राज्य मंत्री के 'ड्यूटी और डिस्गस्ट' वाले ट्वीट पर बवाल भी हुआ. पाकिस्तान में दाऊद की मौजूदगी पर मोदी मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों के विरोधाभासी बयानों पर सरकार की खासी फजीहत हुई. फिर गृह मंत्री राजनाथ सिंह को सफाई देनी पड़ी जिसमें उन्होंने कहा कि दाऊद पाकिस्तान में ही है और हम उसे लाकर ही रहेंगे. हालांकि, पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने बयान दिया कि दाऊद पाकिस्तान में नहीं है.
8. पाकिस्तान के साथ रिश्ते के अलावा चीन के साथ भी सीमा विवाद जस का तस बना हुआ है. मोदी की चीन यात्रा के दौरान ही वहां के टीवी चैनल द्वारा भारत का गलत नक्शा दिखाया गया जिसमें जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश वाला हिस्सा नदारद रहा. चीन द्वारा पाकिस्तान में 46 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश पर तो भारत की ओर से आपत्ति जताई गई थी, लेकिन नक्शे को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया.
9. प्रधानमंत्री के उस बयान पर भी कड़ी प्रतिक्रिया हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले देश की छवि 'स्कैम इंडिया' की बन गई थी और अब वो उसे 'स्किल इंडिया' का रूप देने की कोशिश में जुटे हैं.
10. प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान पर सोशल मीडिया पर काफी आलोचना हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले लोगों को शर्मिंदगी होती थी जबकि अब भारतीय होने पर हर किसी को गर्व होता है.
'रिफॉर्मर इन चीफ' |
मोदी के धुआंधार विदेश दौरों को लेकर एक आम धारणा बनने लगी थी कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से ज्यादा तो प्रधानमंत्री मोदी ही दुनिया में छाए रहते हैं. लेकिन तथ्य बिलकुल अलग हैं. सुषमा स्वराज पिछले एक साल में जहां 21 देशों की आधिकारिक यात्राओं में 59 दिन गुजारे, वहीं मोदी सिर्फ 17 देशों की यात्रा किए और 54 दिन बाहर रहे. पाकिस्तान और चीन से थोड़ा आगे बढ़ें तो जहां तक अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों की बात है तो न्यूक्लियर डील को लेकर दोनों देशों में करीबी आई - लेकिन मोदी सरकार में इसे बराबरी का दर्जा जैसा दिखा.
बात जो भी. चुनावों में मोदी को मिले प्रचंड बहुमत के हिसाब से उनकी सत्ता के इस 20 फीसदी हिस्से के आकलन के अलग अलग पैमाने हो सकते हैं. एक्सपर्ट की अपनी राय हो सकती है. सरकार और विपक्ष के अपने अपने दावे हो सकते हैं. जनता इनका अपनी अपेक्षाओं और उम्मीदों के लिहाज से हिसाब-किताब कर अलग से कर सकती है.
पहले तुम, पहले तुम |
एक बात तो माननी पड़ेगी - मोदी से पहले ऐसा तो कभी नहीं देखा गया कि कोई नेता बिल, बुश या रोनाल्ड कह कर किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को संबोधित किया हो. मोदी के 'बराक' कहने की तकनीकी वजह अपनी जगह है, लेकिन जिस तरह मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को दोस्त की तरह ट्रीट किया और 'बराक' कह कर संबोधित किया उसे यूं ही नकारा नहीं जा सकता. पक्ष, विपक्ष और पूर्वाग्रहों की बात और है. शायद यही वजह है कि टाइम मैगजीन में अपने लेख में दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को 'रिफॉर्मर इन चीफ' के खिताब से नवाजा है.
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