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Updated: 11 फरवरी, 2016 03:30 PM
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इशरत जहां का नाम एक बार फिर उछला है. मंबई हमले की गवाही में डेविड हेडली द्वारा इशरत का नाम लिये जाने को किसी ने टर्निंग प्वाइंट के तौर पर देखा है तो किसी ने इशरत एनकाउंटर केस पर सवाल उठाने वालों को कठघरे में खड़ा किया है. ट्विटर पर कुछ लोगों ने इसे अवॉर्ड वापसी का एक और मौका तक सुझा डाला है.

हेडली की गुगली

जिस अंदाज में सीधे सीधे खबर आई और इशरत जहां ट्विटर पर ट्रेंड करने लगी - हकीकत उससे बिलकुल अलग रही. डेविड हेडली के हवाले से आई खबरों के मुताबिक इशरत लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम करती थी. करीब 12 साल पहले इशरत की एक पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई थी.

इशरत की मां की वकील, वृंदा ग्रोवर ने हेडली के दावे और उसकी गवाही में जिरह के तरीके पर सवाल उठाया है. उनका कहना है कि हेडली ने सीधे तौर पर नहीं ये बिलकुल नहीं बताया है कि इशरत जहां लश्कर की आत्मघाती हमलावर थी.

1. हेडली ने बताया कि लश्कर कमांडर जकीउर रहमान लखवी ने उसे भारत में लश्कर ऑपरेटिव मुजम्मिल बट के मंसूबों के बारे में बताया था जिसमें एक महिला की मौत हो गई थी.

2. जब निकम ने डिटेल में बताने को कहा तो हेडली ने कहा कि पुलिस के साथ एक एनकाउंटर में एक महिला आत्मघाती हमलावर की मौत हुई थी.

3. महिला आत्मघाती हमलावर का नाम जानने के लिए जब सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने हेडली को तीन ऑप्शंस दिये. इनमें से इशरत के नाम पर हेडली ने हामी भरी.

वृंदा का ऑब्जेक्शन

1. हेडली ने कहा कि वो लश्कर के किसी महिला आत्मघाती हमलावर को नहीं जानता. इस पर वकील कौन बनेगा करोड़पति का होस्ट बन जाता है और हेडली को ऑप्शन देता है. वृंदा पूछती हैं - ये हो क्या रहा है कोर्ट में?

2. इस आदमी (हेडली) की याद्दाश्त शानदार है लेकिन जब उसने इशरत का नाम नहीं लिया. जब हेडली ने नाम नहीं लिया तो वकील ने अमिताभ बच्चन के शो कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर ऑप्शन दे दिये.

3. वकील ने हेडली के मुंह में अपने शब्द ठूंस दिये - और अब उसे एक राजनीतिक एजेंडा बनाया जा रहा है. सरकारी वकील ने अमिताभ बच्चन के शो की तरह हेडली के सामने तीन ऑप्शन रख दिये. ये सबूत है? ये तो राजनीति है.

15 जून 2004 को अहमदाबाद के पास हुई मुठभेड़ में 19 साल की इशरत सहित चार लोगों की मौत हुई थी. तब गुजरात पुलिस का दावा था कि इशरत और उनके तीन साथी गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से अहमदाबाद पहुंचे थे, जिनके साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई और वे मारे गये.

इस एनकाउंटर को मानवाधिकार संगठनों ने फर्जी करार दिया था. जांच की मांग उठी तो जांच भी हुई. मैजिस्ट्रीरियल जांच में इसे फर्जी एनकाउंटर पाया गया. इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और बाद में मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया गया.

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