जम्मू-कश्मीर में चुनाव लायक माहौल तो बन गया - क्षेत्रीय दलों का रुख क्या रहेगा?
जम्मू-कश्मीर को लेकर अच्छी खबर ये है कि 2023 में ही विधानसभा के चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Polls) कराये जा सकते हैं. अमित शाह (Amit Shah) के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी हाजिरी लगा रहे हैं, लेकिन ये देखना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा कि घाटी के क्षेत्रीय दलों का क्या रुख रहता है?
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जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Polls) के संकेत ऐसे वक्त मिले हैं जब भारत जोड़ो यात्रा के साथ राहुल गांधी (Rahul Gandhi) केंद्र शासित क्षेत्र में दाखिल होने वाले हैं. हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी जम्मू कश्मीर के दौरे पर गये हुए थे - और वहां के सुरक्षा इंतजामों पर एक हाई लेवल मीटिंग भी की थी.
अमित शाह के दौरे के ठीक पहले राजौरी में आतंकवादी हमला हुआ था. अपने दौरे को लेकर अमित शाह का कहना रहा, राजौरी के आतंकी हमलों के पीड़ित परिवारों के दुख में सहभागी बनना उद्देश्य था, लेकिन खराब मौसम के कारण मैं वहां नहीं जा पाया... सभी परिवारों के साथ फोन पर बात हुई और उनके दुख में शामिल होने का प्रयास किया.
अमित शाह (Amit Shah) ने आतंकवादी हमले के शिकार सभी परिवारों के हौसले को पूरे देश के लिए मिसाल बताया और बोले, इतने बड़े हादसे के बाद भी डट कर लड़ने का मनोबल बनाए रखना बहुत बड़ी बात है.
अब तक तो जम्मू-कश्मीर से कांग्रेस को खुशी देने वाली खबरें आती रहीं, लेकिन राहुल गांधी के पहुंचने से पार्टी को एक और झटका लगा है. कांग्रेस की प्रवक्ता दीपिका पुष्कर नाथ ने इस्तीफा दे दिया है. दीपिका से पहले पंजाब में मनप्रीत बादल ने कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर लिया है.
दीपिका पुष्कर नाथ की नाराजगी सीधे राहुल गांधी से है. बताते हैं कि दीपिका पुष्कर नाथ सहित कांग्रेस के कई नेता डोगरा स्वाभिमान संगठन पार्टी के नेता चौधरी लाल सिंह को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के बुलावे से नाराज हैं. लाल सिंह को 2018 के कठुआ बलात्कार और हत्या केस के आरोपियों का सपोर्ट करने के लिए इस्तीफा देने पड़ा था. लाल सिंह, महबूबा मुफ्ती सरकार में बीजेपी कोटे से मंत्री हुआ करते थे.
ऐसे में जबकि गुलाम नबी आजाद को छोड़ कर कांग्रेस में लौटने वाले नेताओं की खबरों पर कांग्रेस फूले नहीं समा रही थी, दीपिका पुष्कर नाथ ने इस्तीफे के जरिये आईना दिखाने की कोशिश की है. दीपिका ने सोशल मीडिया पर अपनी तकलीफ शेयर करते हुए लिखा है कि वो वैचारिक आधार पर पार्टी छोड़ रही हैं. दीपिका का कहती हैं, चौधरी लाल सिंह आठ साल की खानाबदोश लड़की के बलात्कारियों का बेशर्मी से बचाव कर रहे थे.
आपको ये भी याद होगा कि किस तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कठुआ रेप के विरोध में दिल्ली में इंडिया गेट पर कैंडल प्रोटेस्ट किया था. नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी लाल सिंह के भारत यात्रा में शामिल होने पर नाखुशी जतायी है. उमर अब्दुल्ला का कहना है कि भारत जोड़ो यात्रा को नेताओं के लिए पाक-साफ साबित करने का मौका नहीं दिया जाना चाहिये. हालांकि, अब ये भी चर्चा है कि लाल सिंह को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल करने के फैसले से कांग्रेस कदम पीछे खींच सकती है.
अब्दुल्ला परिवार की नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती दोनों ही भारत जोड़ो यात्रा का सपोर्ट कर चुके हैं. 30 जनवरी को भारत जोड़ो यात्रा का समापन समारोह है जिसमें देश भर से 23 विपक्षी दलों के नेताओं को न्योता भेजा गया है.
कांग्रेस के लिए मौका तो अच्छा है, विपक्षी दलों के साथ होने वाली रैली में चुनावी तड़का भी लगाया जा सकता है - लेकिन क्या फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी चुनावों में हिस्सा लेने का मन बना चुकी हैं?
घाटी में चुनाव की संभावना कब लगती है?
2023 में सबसे पहले होने जा रहे चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है. त्रिपुरा में 16 फरवरी और नगालैंड-मेघालय में 27 फरवरी को वोटिंग होने जा रही है - और तीनों राज्यों की विधानसभा चुनावों के नतीजे एक साथ 2 मार्च को आएंगे.
जम्मू-कश्मीर में चुनावी माहौल बनने लगा है
तीन राज्यों के बाद कर्नाटक में भी चुनाव की घड़ी आ जाएगी. साल के आखिर में पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में एक साथ ही चुनाव होने की संभावना है - लेकिन 2024 के आम चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने ये संकेत भी दिया है कि केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव कराये जा सकते हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार कहते हैं, 'सभी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है... जम्मू-कश्मीर में मौसम और सुरक्षा के हालात को ध्यान में रखकर चुनाव होगा... क्षेत्रीय पार्टियां भी पिछले कई महीनों से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव करने की मांग कर रही हैं.'
क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव कराये जाने की मांग तो कर रही हैं, लेकिन उनकी डिमांड है कि पहले पुरानी व्यवस्था बहाल की जाये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए जब जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दलों का प्रतिनिधिमंडल बुलाया गया था, तब भी ज्यादातर नेताओं की एक ही मांग थी. पहले जम्मू-कश्मीर में पूर्ण राज्य के स्टेटस की बहाली और फिर चुनाव.
केंद्र की बीजेपी सरकार ने तब जो कहा था, अब भी वही स्टैंड कायम है. पहले चुनाव फिर, राज्य के दर्जे की बहाली - और अब चुनाव आयोग की तरफ से मिले संकेत के बाद तो ये पक्का भी हो गया लगता है.
जम्मू कश्मीर में कर्नाटक के साथ अप्रैल-मई में भी चुनाव कराये जा सकते हैं. या फिर कर्नाटक चुनाव खत्म होने के बाद भी ऐसा हो सकता है. क्योंकि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए सुरक्षा इंतजाम भी एक चुनौती होंगे. 2019 के आम चुनाव में देखा ही जा चुका है कि किस तरह एक बार में एक छोटे से इलाके में वोटिंग करायी जा रही थी.
और चूंकि साल के आखिर में पांच राज्यों में चुनाव होने ही हैं, ये भी हो सकता है कि अगस्त-सितंबर में चुनाव कराये जायें. अगस्त के महीने में ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर उसे केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था.
चुनावी हलचल तो शुरू हो ही चुकी है
जम्मू-कश्मीर में चुनाव के संकेत मिलते ही माहौल के रुझान आने लगे हैं. ये इसलिए भी हो रहा है क्योंकि हाल ही में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने भारत के साथ संबंध सुधारने की ख्वाहिश का इजहार किया है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का कहना है कि दोनों के देशों के बीच हुए जंग से हासिल क्या हुआ?
और जैसे ही पाकिस्तान की तरफ से ऐसी कोई हलचल होती है, जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दलों में भी सुगबुगाहट शुरू हो जाती है. तभी तो जम्मू-कश्मीर की हालत को लेकर फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती दोनों के ही बयान आ चुके हैं.
न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, फारूक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान का नाम तो नहीं लिया, लेकिन ये जरूर कहा कि जब तक हम अपने पड़ोसी से बात नहीं करते और इसका सही समाधान नहीं निकालते, आतंकवाद खत्म नहीं होने वाला है.
महबूबा मुफ्ती ने इस बार फारूक अब्दुल्ला से थोड़ी अलग लाइन ली है. मीडिया से बातचीत में महबूबा मुफ्ती कहती हैं, जम्मू-कश्मीर में सुलह के अलावा कोई रास्ता नहीं है... लेकिन इसके लिए शुरुआती कदम राज्य से जो कुछ भी छीन लिया गया है, उसकी बहाली ही होगा.'
ऐसे विचार और खुल कर भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में सुनने को मिल सकता है. कांग्रेस भी जम्मू-कश्मीर में पहले पुराना स्टेटस और फिर चुनाव के कंसेप्ट की पक्षधर रही है. प्रधानमंत्री से मिलने वाले कश्मीरी प्रतिनिधिमंडल में तब कांग्रेस की तरफ से गुलाम नबी आजाद शामिल हुए थे, और वो भी क्षेत्रीय दलों की डिमांड के साथ ही खड़े रहे.
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के विरोध में तो राहुल गांधी भी रहे हैं. और कई बार कांग्रेस नेताओं की तरफ ये भी दावा किया जा चुका है कि पार्टी के सत्ता में आने पर पूरी तरह पुरानी स्थिति बहाल कर दी जाएगी. हालांकि, ये बात आई गयी जैसी होकर रह गयी है. मौका देख कर ऐसा बयान देने के बाद कांग्रेस नेता चुप्पी साध लेते रहे हैं.
कश्मीरी राजनीतिक दलों का क्या रुख होगा
उमर अब्दुल्ला तो पहले ही कह चुके थे, नवंबर, 2022 में उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने भी बड़गाम में मीडिया से बातचीत में वही बात दोहरायी थी, 'उमर अब्दुल्ला पहले ही कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल होने तक वह चुनाव नहीं लड़ेंगे.'
जरूरी नहीं कि उमर अब्दुल्ला आगे भी अपने इसी स्टैंड पर टिके रहें, क्योंकि 2018 के स्थानीय निकाय चुनावों के बहिष्कार पर वो अफसोस भी जता चुके हैं. बाद में एक इंटरव्यू में उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि 2018 का नेशनल कांफ्रेंस का वो फैसला गलत था, और वो उससे सबक ले चुके हैं.
जम्मू-कश्मीर के यूनियन टेरिटरी बनने के बाद हुए डीडीसी चुनाव सिर्फ क्षेत्रीय दलों के लिए ही नहीं बल्कि बीजेपी के लिए भी जोश बढ़ाने वाले नतीजे दिये थे. चुनावों में असली बाजी तो सात राजनीतिक दलों वाले गुपकार गठबंधन को लगी थी, लेकिन जम्मू के साथ साथ कश्मीर में कमल का खिल उठना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी रही.
गुपकार सम्मेलन के बाद बने गठबंधन में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपल्स मूवमेंट के साथ ही सीपीआई और सीपीएम शामिल हैं - फिर तो सवाल ये भी है कि क्या बीजेपी के खिलाफ यही गठबंधन विधानसभा चुनावों में भी उतरने वाला है? फिर तो ये भी सवाल होगा कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी या वो भी गुपकार गठबंधन के मिल कर चुनाव लड़ने की सूरत में उसी में शामिल हो जाएगी?
डीडीसी चुनावों में गुपकार गठबंधन की जीत पर उमर अब्दुल्ला का कहना रहा कि चुनाव ने उस प्रोपेगेंडा को खारिज कर दिया है जिसमें बीजेपी कहा करती है कि जम्मू कश्मीर के लोग धारा 370 को हटाए जाने से खुश हैं.
तभी उमर अब्दुल्ला ने बीजेपी को हकीकत स्वीकार करने और झूठ बोलना बंद करने की भी सलाह दी थी. चुनाव नतीजों पर बात करते हुए उमर अब्दुल्ला ने पूरी भड़ास निकाली थी, कुछ लोग जो खुद को जम्मू-कश्मीर का एक्सपर्ट मानते थे, कहा करते थे कि नेशनल कॉफ्रेंस और पीडीपी मिट गई है... ये लोग जिंदा नहीं होंगे... ये लोग खानदानी नेता हैं... लोग इनके साथ नहीं हैं, लेकिन नतीजों से ये सारी धारणाएं धराशाई हो गई हैं.
और तभी उमर अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी के भी हिस्सा लेने के संकेत दिये थे, 'बीजेपी को थाली में जीत परोसने का सबसे आसान तरीका है कि हम उनसे कहें कि तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक कि राज्य का दर्जा बहाल नहीं हो जाता... फिर वे राज्य का दर्जा बहाल नहीं करेंगे और चाहेंगे कि हम चुनाव में लड़ने के लिए मैदान में उतरें ही नहीं.'
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