मजबूरी का नाम है जनता परिवार
जनता दल से टूटकर अलग हुईं कई पार्टियां अरसे बाद फिर जनता परिवार की छतरी के नीचे एकजुट हुई हैं. कई सेक्यूलर कहलाने वाले राजनीतिक दल एक साथ आए हैं. लेकिन...
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जनता दल से टूटकर अलग हुईं कई पार्टियां अरसे बाद फिर जनता परिवार की छतरी के नीचे एकजुट हुई हैं. कई सेक्यूलर कहलाने वाले राजनीतिक दल एक साथ आए हैं. अब देखना है कि ये पार्टी देश की राजनीति को एक नई दिशा देगी या सिर्फ निजी महत्वाकांक्षाओं को परवान चढ़ाने का एक जरिया बन कर रह जाएगी.
एक विशाल गठबंधन
जनता परिवार में समाजवादी पार्टी, जनता दल (सेक्यूलर), राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड), इंडियन नेशनल लोक दल और समाजवादी जनता दल शामिल है.
दुश्मन बने दोस्त!
एक पार्टी की शक्ल में मोदी को चुनौती दे रहे इन नेताओं के बीच अचानक प्यार उमड़ा है. कम से कम इनके पुराने बयानों को देखकर तो ऐसा ही लगता है.
लालू कांग्रेस की कठपुतली है. वे जेल से बाहर है इसलिए कांग्रेस के पैर चाट रहे हैं.- मुलायम सिंह (दिसंबर 2013)
"नीतीश ने एनडीए के साथ साजिश करके मुझे जेल में डाला और अब मेरी पार्टी छीनना चाहता है."- लालू यादव (फरवरी 2014)
"हमें राज्य में जंगलराज उखाड़ फेंक कर मंगल राज लाना होगा." - नीतीश कुमार (2005) 1990 से 2005 तक के राबड़ी देवी के कार्यकाल पर हमला करते हुए.
"अगर देवगौड़ा धरतीपुत्र हैं तो हम क्या हवा के हैं?"- लालू यादव (मार्च 1998)
स्वार्थ की दोस्ती है ये गठबंधन!
इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. लालू और नीतीश दोनों की नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी है. मुलायम सिंह केंद्र की राजनीति में अपना दबदबा चाहते हैं और अखिलेश को राज्य की कमान सौंपना उनका पहला मकसद है. देवेगौड़ा ने भी अपनी पार्टी की कमान बेटे को सौंप दी है और वे उसे पूरा वक्त देना चाहते हैं.
मजबूरी का नाम जनता दल
मुलायम सिंह को इस नए दल को नेता चुन लिया गया है क्योंकि उनके पास सीटें हैं. लेकिन अभी भी कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है. मसलन, फिलहाल तो लालू और नीतीश साथ हैं लेकिन चुनावों के बाद क्या होगा कोई नहीं जानता? क्या देवेगौड़ा हमेशा की तरह दूसरा दांव खेलेंगे? एक नए दल के लिए क्या वाकई सभी पार्टियां अपना निशान और पहचान कुर्बान करने के लिए तैयार हैं?
एक दूसरे की राह में रोड़ा नहीं
लालू-मुलायम पहले से ही एक दूसरे की राह का रोड़ा नहीं है. मतलब यूपी की कमान मुलायम और बिहार की नीतीश-लालू के पास रहेगी. समाजवादी पार्टी, जेडी(यू) और आरजेडी की कर्नाटक में कोई भूमिका नहीं है और न ही जेडी(एस) की उत्तर भारत में. मतलब जेडी (एस) को कर्नाटक में किसी प्रकार की चुनौती नहीं है. वहीं INLD के हरियाणा पर भी किसी का कोई प्रभाव नहीं है.
केंद्र पर नहीं है कोई असर
संसद में जनता परिवार की स्थिति पर नजर डालें तो लोकसभा में 15 सीटें और राज्यसभा में 30 सीटें इनके पास हैं. इन सीटों के दम पर लोकसभा और राज्यसभा में जनता परिवार शायद ही कोई प्रभाव डाल पाए लेकिन राजनीति के एक बड़े एक धुरंधरों का गठबंधन आम जनता को संशय में ज़रूर डाल सकता है.
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