जसदण विधानसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा कुंवरजी बावलिया की जीत हुई है
भाजपा के लिए 2019 चुनावों से पहले जसदण से जीतना बेहद है है क्योंकि ये मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का गढ़ है. कुंवरजी बावलिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने के कारण ही गुजरात उपचुनावों में ये जीत मिली है.
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गुजरात में विधानसभा की एक सीट का चुनाव बीजेपी और कांग्रेस का लिटमस टेस्ट साबित हुआ. पर यहां ना बीजेपी जीती ना ही कांग्रेस बल्की जीत कुंवरजी बावलिया की हुई है. पिछली 5 बार से लगातार जसदण में चुनाव जीतते आये कुंवरजी बावलिया ने इस बार भी साबित कर दिया कि जसदण में उनका दबदबा किस तरह से रहा है और रहेगा. जसदण के लोगों ने कुंवरजी बावलिया को कांग्रेस के उम्मीदवार अवसर नाकिया के सामने 19900 से ज्यादा वोट देकर विजयी बनाया है.
दरअसल, जसदण की जंग को गुजरात में लोकसभा से पहले भी इसलिये महत्वपूर्ण माना जा रहा था क्योंकि ये राजकोट रूरल की सीट है और खुद मुख्यमंत्री विजय रुपाणी का गढ़ राजकोट है. ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी यहां से हार जाती है तो उसका खामियाजा बीजेपी को लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ेगा. हालांकि, जसदण सीट ऐसी सीट है जहां ना बीजेपी और ना कांग्रेस पर कुंवरजी को यहां का शहनशाह माना जाता है. 1995 से कुंवरजी का इस पूरे इलाके में दबदबा रहा है. कुंवरजी का ये दबदबा उस वक्त भी बना रहा था जब कुवंरजी यहां कांग्रेस की सीट से चुनाव लड़ा करते थे. कुंवरजी कांग्रेस के ऐसे नेता थे जो केशुभाई पटेल और नरेंद्र मोदी की सरकार में जब सौराष्ट्र में बीजेपी कि हवा चलती थी, तब भी कांग्रेस की सीट से जीत कर आते थे. इस सीट की दिलचस्प बात यही है कि अब तक के इतिहास में बीजेपी इस सीट को सिर्फ एक ही बार जीत पायी है और वो भी उपचुनाव में. ये दूसरी बार है कि बीजेपी इस सीट से जीती है लेकिन कांग्रेस के कोली नेता कुंवरजी बावलिया के साथ के बाद.
गुजरात उपचुनावों में जसदण की पूरी पकड़ कोली नेता कुंवरजी बावलिया को ही है
इस बार उपचुनाव भी कुवंरजी बावलिया की वजह से ही हुई है. दरअसल, 2017 में जसदण की इसी सीट से कुंवरजी बावलिया कांग्रेस पार्टी की तरफ से चुनाव जीत कर आये थे. हालांकि, कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के नेतृत्व में युवा नेता को स्थान मिलने से नाराज कुंवरजी बावलिया को बीजेपी ने केबिनेट मिनिस्टर के पद का वादा कर अपने पाले में खींच लिया. इसके बाद कुंवरजी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और इसका फायदा सीधा मिला भाजपा को. भाजपा से जुड़ने के महज 1 घंटे के अंदर ही कुंवरजी को कैबिनेट मिनिस्टर भी बना दिया गया. उसके बाद अब यहां उपचुनाव हुआ है और इस बार भी जीत इसी कद्दावर नेता की हुई है. कुंवरजी बावलिया की इसी जीत के साथ अब गुजरात विधानसभा में भाजपा 100 के आंकड़े को छू पई है. इसके पहले भाजपा 2017 में 99 के आंकड़े पर ही सिमट गई थी.
कुंवरजी के भाजपा में आने के बाद जसदण उपचुनावों की ये जंग भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गई थी. भाजपा इस सीट को जीतने के बाद कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाना चाहती थी. साथ ही, कांग्रेस ये चाहती थी कि वो लोगों के बीच संदेश दे कि पार्टी बड़ी होती है न कि नेता, लेकिन ऐसा हो न सका. कुंवरजी की जीत ने साबित कर दिया कि स्थानीय स्तर पर तो नेता ही बड़ा होता है जो काम करता है. कुंवरजी जिस दिन वोट देने गए थे उन्होंने कहा था कि इस सीट पर न तो कांग्रेस की चलती है न ही भाजपा की और ये बात उनकी जीत ने साबित भी कर दी.
जसदण में कुंवरजी ने भाजपा को इतिहास की दूसरी बड़ी जीत दिलवाई है.
जसदण की सीट की राजनीति भी बेहद दिलचस्प है. यहां 40 प्रतिशत कोली वोटर हैं और कुंवरजी खुद भी इसी समुदाय से आते हैं. भाजपा के पास पुरुषोत्तम सोलंकी के बाद ऐसा कोई बड़ा कोली नेता नहीं है जो जातिवादी राजनीति में फिट हो पाए तो वहीं 30 प्रतिशत वोटर पाटीदार हैं. जबकि दूसरी जाति महज 30 प्रतिशत में आती है. हालांकि, कुंवरजी के सामने कांग्रेस ने भी कोली कार्ड ही खेला और कांग्रेस ने अवसर नाकिया को खड़ा कि जो की पेशे से एक रिक्षा ड्राइवर हैं. उन्होंने कुंवरजी को कड़ी चुनौती भी दी, लेकिन आखिर जीत कुंवरजी की ही हुई. 2017 में कुंवरजी कांग्रेस के साथ लड़े थे और 21 हजार वोटों से जीते थे और इस बार वो अपना रिकॉर्ड तोड़ पाने में नाकाम रहे, लेकिन फिर भी उनकी जीत ऐतिहासिक है.
राजनैतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि कुंवरजी बावलिया की इस जीत को लेकर भाजपा को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये कुंवरजी की खुद की जीत है न की पार्टी की. अगर लोग भाजपा के किए गए विकास को मानते होते तो 2017 में ही इसका असर दिख जाता. लेकिन इस जीत के बाद इतना जरूर है कि 5 राज्यों के चुनाव हारी भाजपा को 2019 में के इलेक्शन के पहले जीत का एक जश्न मनाने का मौका तो मिल ही गया.
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