जाट आरक्षण आंदोलन का नया अल्टीमेटम
हमारी सरकारें आरक्षण की नई मांगों से खौफ भी खाती हैं और उनकी पूरी कोशिश इनकी मनमानियों पर सवाल उठाने के बजाये चुप बैठ जाने या समझौता करने की होती है. जाट आन्दोलन को लेकर भी यही हुआ है.
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जाट आरक्षण आंदोलन फिलहाल आगामी तीन अप्रैल तक के लिए टल गया है. इसी के साथ ही जाट नेताओं ने हरियाणा सरकार को एक नयी डेडलाइन देते हुए कहा है कि वह 31 मार्च तक चलने वाले विधानसभा के मौजूदा सत्र में आरक्षण विधेयक पारित करें. अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक ने उम्मीद जतायी है कि सरकार उनके सुझावों पर गौर करेगी लेकिन अगर सरकार 31 मार्च तक आरक्षण विधेयक पारित नहीं करती तो वे तीन अप्रैल को दिल्ली में अपनी बैठक में अपनी आगे की रणनीति के बारे में फैसला करेंगे.
इससे पहले जाट नेताओं द्वारा हरियाणा सरकार को 17 मार्च तक दी गयी अल्टीमेटम की समय सीमा समाप्त होने से एक बार फिर आंदोलन की आशंका बन गयी थी और जाटों की तरफ से यह चेतावनी आने लगी थी कि अगर उनकी आरक्षण की मांग पूरी नहीं की गयी तो वे फिर से आंदोलन करेंगें और इस बार अगर जाट समुदाय के लोग बाहर निकले तो अपनी सभी माँगो को पूरा करवाकर ही घर वापस लौटेंगे.
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इसके बाद हरियाणा सरकार द्वारा आनन-फानन में इस नयी बन रही स्थिति पर काबू पाने के लिए जाट नेताओं में बातचीत के एक नए दौर की शुरुवात की गयी. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी जाट नेताओं से मिले हैं. दरअसल राजनीति में सारा खेल टाइमिंग का होता है, इस समय विधानसभा चल रही है और जाट नेताओं का पूरा जोर इसी पर है कि राज्य सरकार उनके समुदाय के आरक्षण के लिए विधानसभा के मौजूदा बजट सत्र में एक विधेयक पेश करे, फिलहाल इसलिए यह दबाव बनाया जा रहा है. पिछली बार हुए बेकाबू जाट आन्दोलन पर नियंत्रण ना पा सकने की वजह से सवालों के घेरे में आई केंद्र और राज्य की दोनों सरकारें चौकन्नी नजर आना चाहती हैं. शायद इसीलिए पिछली बार की तरह इस बार जाट आरक्षण की आग पूरे राज्य में न फैले इसके लिए पहले से ही पूरी तैयारी कर ली गयी थी. इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार कितनी चौकन्नी थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा हरियाणा सरकार को बाकायदा आगाह किया गया कि इस बार हालात को किसी भी कीमत पर बेकाबू ना होने दिया जाए. केंद्र सरकार द्वारा अर्धसैनिक बलों की 80 कंपनियां भी हरियाणा भेजी गयीं. पिछले महीने जाट आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा ने 30 लोग मारे गये थे और इस दौरान हुई व्यापक, लूटपाट और बलात्कार की घटनाओं के पूरे देश शर्मशार हुआ था.
हरियाणा में करीब 20 साल बाद गैर जाट बिरादरी का कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बना है. कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस हिंसक और आक्रमक आन्दोलन का एक निशाना जाट लैंड के गैर जाट मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी हो सकते हैं. पिछली बार शायद उन्हें भी इसका अंदाजा नहीं रहा होगा कि आंदोलन इतना बड़ा और हिंसक हो जाएगा क्योंकि पिछले महीने जो कुछ भी हुआ है उसे हर कोई खट्टर सरकार की विफलता के तौर पर भी देख रहा है.सदियों पहले समुह बनाकर खेती करने वाली और वर्तमान समय में सामाजिक और राजनीतिक रूप से संगठित जाट समुदाय की हरियाणा में करीब 30 प्रतिशत आबादी है. यह लोग ओबीसी कैटेगरी में आरक्षण की मांग कर रहे हैं. लेकिन उनके द्वारा आंदोलन के नाम जो कुछ भी किया गया है उसे किसी भी कीमत पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है. आंदोलोनों का लक्ष्य देश और समाज का हित होता है लेकिन यहां आन्दोलन के नाम जिस तरह से अराजकता को अंजाम दिया गया है उससे किसी का हित नहीं हुआ है.
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हमारे देश में प्रभावशाली समुदायों द्वारा आरक्षण के लिए हिंसक संघर्ष नयी समस्या के तौर पर सामने आये हैं, नवउदारीकरण और बेलगाम पूँजीवाद के इस दौर में जो समुदाय शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ गए हैं. वे अब आन्दोलन की मांग करने लगे हैं, जैसे कि गुजरात में पटेल राजस्थान में गुर्जर और हरियाणा में जाट समुदाय. इस परिघटना से आरक्षण के मुद्दे पर एक नई तरह के बहस शुरू हुई है जो सदियों से छुआछात और उत्पीड़न के आधार पर आरक्षण पाने वाले समुदायों के विमर्श से अलग है. प्रभावशाली समुदायों के ये तथाकथित आन्दोलन एक तरह से आरक्षण और स्वयं आन्दोलन की नयी परिभाषायें भी तय रहे हैं.
हमारी सरकारें आरक्षण की इन नई मांगों से खौफ भी खाती हैं और उनकी पूरी कोशिश इनकी मनमानियों पर सवाल उठाने के बजाये चुप बैठ जाने या समझौता करने की होती है. जाट आन्दोलन को लेकर भी यही हुआ है, जिसकी शुरुवात 2006 में गाजियाबाद में आयोजित एक जाट महासम्मेलन से हुई थी. पिछली कांग्रेस सरकार ने 2012 में स्पेशल बैकवर्ड क्लास (एसबीसी) के तहत जाट, जट सिख, रोड, बिश्नोई और त्यागी समुदाय को आरक्षण दे भी दिया था लकिन चूंकि हरियाणा में 67 प्रतिशत आरक्षण पहले से ही लागू है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के आदेश रद्द कर दिया. खट्टर सरकार द्वारा भी सितंबर 2015 में जाटों सहित पांच जातियों को आरक्षण देने की एक अधिसूचना जारी की गयी थी जिसे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद वापस लेना पड़ा था. अब जाट आन्दोलनकारी हरियाणा सरकार पर नया रास्ता तलाशने का दबाव बना रहे हैं और उनकी पूरी कोशिश है कि इसके लिए हरियाणा सरकार 31 मार्च तक चलने वाले विधान सभा के मौजूदा बजट सत्र में विधेयक पारित कराये.
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बीजीपी के जाट नेता हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का इस सम्बन्ध में एक बयान आया है कि विधेयक का मसौदा तैयार करने में समय लग रहा है क्योंकि सरकार सुनिश्चित करना चाहती है कि नया कानून किसी कानूनी पचड़े में नहीं फंस जाए, लेकिन वे इसे मौजूदा बजट सत्र में ही पेश करने की पूरी कोशिश करेंगें. संभव है कि आने वाले दिनों में जाट आरक्षण आन्दोलन का कोई समाधान निकल आये लेकिन क्या वह वास्तव में समाधान ही होगा? या इसके द्वारा दूसरे आंदोलोनों को अपनी मंजिल पाने का रास्ता मिल जाएगा.
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