मझधार में मांझी की राजनीति!
मांझी को एनडीए सरकार में न ओहदा मिला है और न ही उनकी कोई पूछ ही है. अपनी सियासी नैया को मझधार से पार लगाने के लिए मांझी अब नीतीश और लालू का सहारा लेने का मन बना चुके हैं.
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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी अपने विचित्र बयानों से आये दिन चर्चा में बने रहतें हैं. गौरतलब है कि बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से जीतम राम मांझी ने एक के बाद एक ऐसे बयान दिए जो चौकानें वाले और जिसे माना गया कि वह मुख्यमंत्री पद की गरिमा खिलाफ थे. अगर हम कहें कि ये विवादित बोल ही मांझी को भारत की सियासत में पहचान दिलाएगी तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी. ये उनके बिगड़े बोल ही थे कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था. यहाँ तक कि जनता दल यूनाइटेड से भी उनकी छुट्टी कर दी गई.
बिहार की राजनीति में हम देख चुकें हैं कि कैसे एक दूसरे के धुर विरोधी रहे लालू और नीतीश गठबंधन कर बिहार में सत्ता पर काबिज़ हुए. उसके बाद से ही मांझी के सितारे गर्दिश में चल रहें है. मुख्यमंत्री का पद जाने के बाद से मांझी बिहार की राजनीति में हाशिये पर चले गये. बिहार की राजनीति में मांझी की वर्तमान स्थिति क्या है यह बात किसी से छिपी नहीं हैं. मांझी ने विधानसभा चुनाव में जैसे-तैसे दो सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ एक सीट ही जीत पाए थे. उनकी पार्टी अन्य सीटों पर बुरी तरह से हार गई थी. अपनी चार दिन के लिए चमकी सियासत के भरोसे बड़े पद पर आसीन होने की मुगालत पाल चुके मांझी को हर तरफ से निराशा हाथ लग रही है.
जीतन राम मांझी |
मांझी ने एक ताज़ा बयान देकर पुनः सबको चौका दिया. अपने हर बयान में नीतीश पर तानाशाही और तरह–तरह के आरोप लगाने वाले मांझी के तेवर अब ढीले पड़ गये हैं. अपने एक हालिया बयान में मांझी ने कहा है कि नीतीश मेरे राजनीतिक जन्मदाता हैं. राजनीति में उन्हें मंत्री से मुख्यमंत्री बनाने वाले नीतीश ही हैं. मांझी ने स्पष्ट कहा कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, जहां कुछ भी हो सकता है. जब लालू-नीतीश एक हो सकते हैं तो मेरा तो दोनों के साथ वैसा कोई मतभेद भी नहीं रहा है. मांझी के इस बयान के निहतार्थ को समझें तो इसमें कई बातें निकलकर सामने आतीं हैं. मांझी फिलहाल एनडीए का हिस्सा हैं और इस समय केंद्रीय मंत्रीमंडल का विस्तार होना है, जिसकी चर्चा राजनीतिक हलकों मंस ज्यादा है.
राजनीति में हर कोई सत्तासीन होना चाहता हैं. हर एक की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा होती है जीतन राम मांझी के ताज़ा बयान भी राजनीतिक लोभ से प्रेरित हैं. मांझी की सियासी नैया अब मझधार में है, जिसे पार लगाने के लिए लगता है मांझी अब नीतीश और लालू का सहारा लेने का मन बना चुके हैं. खैर, अभी जो खबर आ रही है. उसमें केंदीय मंत्रीमंडल में मांझी को शामिल करने की चर्चा दूर-दूर तक कहीं नहीं है. ऐसे में इस बयान के जरिये मांझी ने कहीं न कहीं यह संकेत दिया है कि अगर उन्हें केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह नहीं दी गई तो उनके पास और भी विकल्प हैं. अब उनके इस बयान को बीजेपी और मोदी सरकार कितनी गंभीरता से लेती है ये तो बाद की बात होगी किंतु देर से ही सही मांझी ने इस सच को स्वीकार तो किया है कि उनके राजनीतिक जन्मदाता नीतीश कुमार ही हैं.
दरअसल इस बयान के कई पहलू हैं. एक बात जगजाहिर है कि मांझी को एनडीए सरकार में कोई ओहदा नही मिला है और न ही सियासी गलियारे में उनकी कोई पूछ ही है. इस वक्त राजनीति में नई छत तलाश रहें मांझी की मुश्किले अभी कम होती नजर नहीं आ रही है. अगले एक दो दिनों में मंत्रीमंडल विस्तार में किसको क्या मिला है यह स्पष्ट हो जायेगा. बहरहाल, इस बयान के बाद से अटकलें लगाई जा रहीं है कि मांझी एनडीए का साथ छोड़ पुनः नीतीश के साथ चले जाएंगे. ऐसा होता भी है तो ये ताज्जुब की बात नही होगी.
गौर से विचार करें तो इस बात की कोई संभावना नज़र नहीं आती कि मांझी की इस गीदड़ भपकी से घबराकर मोदी सरकार द्वारा उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दे दी जाएगी. ऐसा होने का कोई तुक नज़र नहीं आता. पहली बात ये कि इस वक़्त एनडीए के पास तो पूर्ण बहुमत है ही, अकेले भाजपा भी पूर्ण बहुमत में है. इसलिए स्थिति ऐसी नहीं है कि उसे कोई साथ छोड़ने की बात कहकर ब्लैकमेल कर सके. दूसरी बाच कि मांझी की स्थिति ऐसी भी नहीं है कि उनके जाने से सरकार को कोई दिक्कत महसूस हो. मांझी भाजपा के लिए केवल बिहार चुनाव तक महत्वपूर्ण थे. चुनाव बीत चुका है और उसमें भी मांझी भाजपा को कोई विशेष लाभ नहीं दिला सके. मगर एक पहलू यह भी है कि मांझी ऐसा कुछ करने वाले ही नहीं है. ये सब सिर्फ दिखावा है.
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