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Updated: 14 जनवरी, 2016 10:00 PM
गौरव चितरंजन सावंत
गौरव चितरंजन सावंत
  @gaurav.c.sawant
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ढाका में पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी के सरेंडर की पेंटिंग देशभर के लगभग सभी आर्मी मेस में गौरव का प्रतीक है. टेलीविजन के दौर से पहले मेरे जैसे फौजी बच्चों के लिए यह एंटरटेंनमेंट के साथ-साथ एक अहम क्विज कॉम्पटीशन भी था जिसमें पेंटिंग में मौजूद ज्यादा से ज्यादा अफसरों का नाम बताना होता था. इस कॉम्पटीशन में अफसरों के नाम से पहले लगे अक्षर जैसे लेफ्टिनेंट जनरल JFR जैकब में JFR का मतलब बताने पर बोनस प्वाइंट मिलता था.

‘जैकब फर्ज रफैल जैकब’ बताने पर इनाम के तौर पर हमें एक अतिरिक्त कोला ड्रिंक मिलता था. लिहाजा जब 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर फतह और बांग्लादेश के जन्म की 1996 में सिल्वर जुबली मनाई जा रही थी, तब दिल्ली के सोम विहार में लेफ्टिनेंट जनरल JFR जैकब से मुलाकात भी किसी इनाम से कम नहीं थी.

उस वक्त मैं इंडियन एक्सप्रेस के लिए रिपोर्टिंग कर रहा था और हमारे संपादक शेखर गुप्ता ने मुझे 1971 की फतह के हीरो फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का इंटरव्यू करने के बाद लेफ्टिनेंट जनरल JFR जैकब का इंटरव्यू करने के लिए भेजा.

इस इंटरव्यू को 30 मिनट में खत्म होना था लेकिन यह तीन घंटे से भी ज्यादा समय तक चला. इस विषय पर मेरी रुचि को देखते हुए जनरल ने मुझे कई बारीकियों से अवगत कराया. कैसे उनके अपने प्लान और आर्मी हेडक्वार्टर से आ रहे निर्देश में अहम अंतर आ रहा था. उन्होंने अपने पास से ईस्ट पाकिस्तान का एक मटमैला नक्शा निकाला और समझाया कि कैसे आर्मी हेडक्वार्टर चाह रहा था कि वह चटगांव और खुलना पोर्ट पर कब्जा कर लें जबकि उनका खुद का मानना था कि यह कदम समय और प्रयास की महज बर्बादी होगी. जनरल ने बताया, ‘मेरा प्लान सभी शहरों और कंटोनमेंट से बचते हुए सीधे ढाका पर हमला करने का था.’

इसके बाद उन्होंने अपनी सोच को विस्तार से समझाया. ‘मैं और सैम दोस्त थे. हमारे बीच प्रोफेश्नल मतभेद जरूर थे लेकिन सैम यह बात अच्छी तरह जानते थे कि पूरे ईस्टर्न कमांड में अगर कोई नतीजा दे सकता है तो वह मैं ही था’. बतौर नौजवान पत्रकार मैं उनकी बातों से इतना विस्मृत था कि मुझे परवाह ही नहीं थी कि जनरल शालीनता दिखा रहे हैं या नहीं. ‘पैंतरों से लड़ाई तो जीती जा सकती है लेकिन सिर्फ रणनीति से ही युद्ध जीता जा सकता है.’ कहते हुए जनरल ने अपनी बात पूरी की.

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 ढाका में सरेंडर के कागजात पर साइन करते पाक सेना के जनरल नियाजी, दाहिने हाथ पर JFR जैकब

लेफ्टिनेंट जनरल JFR जैकब ने अपने दोस्त फील्ड मार्शल मानेकशॉ के बारे में बड़े सम्मानपूर्वक जिक्र करते हुए बताया कि राजनीतिक और प्रशासनिक दबावों के विरोध में वह पूरी ताकत से साथ खड़े हो जाते थे लेकिन उनमें बारीकियों को समझने का कौशल नहीं था. ‘वे कहते थे जैक स्वीटी, यू हैंडल इट. जस्ट एन्श्योर, वी विन’ इंटरव्यू के दौरान जनरल ने मुझे बताया.

हालांकि JFR जैकब अपने आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल JS औरोरा के बारे में ज्यादा सम्मानजनक राय नहीं रखते थे, या कह लें मुझे ऐसा लगा. अपनी सभी कहानियों में जीत का पूरा श्रेय वह खुद ले रहे थे और यह दावा कर रहे थे कि ढाका में लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी को सरेंडर करने के लिए उन्होंने ही मजबूर कर दिया था.

सभी कहानियां बड़ी रोचक थीं. ‘विश्व युद्ध के समय से ही सेना की रणनीति सड़क के किनारे चलने की रही है और मैंने खुद दूसरे विश्व युद्ध में लड़ते वक्त इस रणनीति को देखा है. लेकिन मेरी रणनीति सड़कों से बचते हुए सभी कंटोनमेंट, सैनिक छावनी बन चुके शहरों और अन्य सैन्य ठिकानों को छोड़ते हुए सीधे ढाका पहुंचने की थी.' जनरल ने पूरे गर्व के साथ बताया कि यही हमने किया.

लगभग दबी हुई जुबान से जनरल ने मुझे यह भी बताया कि उन्होंने किस तरह मुक्ति बाहिनी के मुक्ति योद्धाओं को ट्रेनिंग देने में अहम किरदार निभाया. ‘बंगाली लोग बड़े प्रतिबद्ध लड़ाके थे. पाकिस्तानी सेना की प्रताड़ना, बलात्कार और कत्लेआम से नाराज होकर पूरे प्रतिशोध के साथ उन्होंने उनकी सप्लाई लाइन पर निशाना साधा. इन लड़ाकों के कारण कई जगह पाकिस्तानी सेना अपने गढ़ में ही कैद रही और लड़ने के लिए बाहर नहीं निकल सकी. इससे ढाका कूच करने की हमारी कोशिश और आसान हो गई’, ये कहते हुए जनरल गरज रहे थे. जनरल ने यह भी बताया कि बांग्लादेश में कत्लेआम के लिए जिम्मेदार लेफ्टिनेंट जनरल टीका खान कुछ समय के लिए उनका शागिर्द भी रहा है.

लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी के सरेंडर करने की कहानी भी बड़ी रोचक है. ईस्ट और वेस्ट पाकिस्तान के बीच कम्युनिकेशन लाइन पूरी तरह कट जाने के कारण पाकिस्तानी सेना को इस इस बात पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि भारतीय सेना ढाका के बाहर तक पहुंच चुकी है. जनरल ने बताया, ‘नियाजी के पास उस वक्त भी 30,000 सैनिक थे और हमारे पास महज 3,000 सैनिक थे जिनके गोला-बारूद खत्म होने की कगार पर थे. इसके बावजूद जब मेरा हेलिकॉप्टर ढाका में उतरा- मैं केवल एक स्टाफ अफसर के साथ उनके ऑफिस में घुसा और उनके पास सरेंडर के लिए सिर्फ 30 मिनट हैं, तभी मैं उनकी सुरक्षा की गारंटी दे सकूंगा. वह युद्ध विराम चाह रहे थे लिए मैंने ढाका के रेस कोर्स पर उन्हें पब्लिक में सरेंडर करने का दबाव बनाया’.

लेफ्टिनेंट जनरल जैकब ने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी की आंखें उस वक्त आंसुओं से भर उठी जब वह सरेंडर के कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हुए. ‘वह 30 मिनट मेरे लिए भी मुश्किलों भरा रहा जब मैं उनके ऑफिस के बाहर खड़ा था. जनरल नियाजी ने बाद में मुझसे कहा कि मैंने उन्हें मुक्ति बाहिनी का डर दिखाकर ब्लैकमेल किया कि वह उन्हें प्रताणित करेगी. जबकि मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा था.’ जनरल यह बताते हुए हंस रहे थे.

लेफ्टिनेंट जनरल JFR जैकब को 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को सरेंडर कराने और बांग्लादेश के जन्म में मदद करने के साथ-साथ एक महान राष्ट्रभक्त के तौर पर हमेशा सप्रेम याद किया जाएगा.

लेखक

गौरव चितरंजन सावंत गौरव चितरंजन सावंत @gaurav.c.sawant

लेखक इंडिया टुडे टेलीविजन में एडिटर (स्ट्रैटेजिक अफेयर्स) हैं.

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