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Updated: 20 नवम्बर, 2019 08:27 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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झारखंड में भ्रष्टाचार (Corruption) के मुद्दे पर विपक्षी दल BJP को घेरने लगे हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने दोनों राज्यों में भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने की बात कही थी. 2019 के आम चुनाव में भी यही दावा किया गया था. सीनियर बीजेपी नेता सरयू राय की बगावत को विपक्ष खूब हवा दे रहा है - और सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ ही हथियार बनाने की कोशिश होने लगी है.

मौके की नजाकत को पहले से भी तौल रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कूद पड़े हैं. पहले तो नीतीश कुमार की पार्टी JDU सिर्फ अलग चुनाव ही लड़ रही थी, अब तो सरयू राय का जोर-शोर से सपोर्ट भी करने लगी है. सरयू राय ने कह दिया है कि नीतीश कुमार से दोस्ती के चलते ही बीजेपी ने टिकट काटा है - तो क्या नीतीश कुमार समर्थन में खड़े होकर दोस्ती निभा रहे हैं - या फिर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ दुश्मनी निभाने के लिए सरयू राय को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं?

सरयू राय को BJP अहमियत क्यों नहीं दे रही है

झारखंड में BJP को लेकर माहौल तो महाराष्ट्र और हरियाणा से बिलकुल अलग है. कम से कम अभी तो ऐसा ही लगता है. चूंकि 2014 में तीनों राज्यों में साथ चुनाव हुए थे - और इस बार महाराष्ट्र और हरियाणा में कम सीटें मिलना बीजेपी के लिए मुसीबत बन पड़ा है, इसीलिए बार बार तीनों की तुलना हो रही है.

महाराष्ट्र में अब तक सरकार भले न बन पायी हो या हरियाणा में कैसे बनी, ये अलग सवाल हो सकते हैं - लेकिन झारखंड में चुनाव के पहले का माहौल तो बिलकुल अलग है. महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही राज्यों में लड़ाई एकतरफा लग रही थी और कहीं कोई विवाद नहीं था.

करप्शन को लेकर जीरो टॉलरेंस सरकार देने का दावा करने वाले बीजेपी नेतृत्व को विपक्ष भ्रष्टाचार (Corruption) पर ही घेरने लगा है. महाराष्ट्र और हरियाणा में तो बीजेपी ही कांग्रेस और एनसीपी पर भ्रष्टाचार को लेकर दबाव बनाये हुए थी. हरियाणा में तो कांग्रेस पर बीजेपी का इस कदर दबाव रहा कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो चुनाव प्रचार से पूरी तरह दूरी ही बना ली. वैसे झारखंड में दूसरे चरण के कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में प्रियंका गांधी का भी नाम है, पहली सूची से नाम गायब रहने पर बताया गया कि वो, दरअसल, यूपी 2020 पर फोकस कर रही हैं.

झारखंड में बीजेपी से बगावत करने वाले सरयू राय खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. टिकट बंटवारे में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी बीजेपी घिरने लगी है. झारखंड के मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने तो सरयू राय की बगावत को ‘भ्रष्टाचार बनाम ईमानदारी की लड़ाई’ का नाम दे दिया है - और उसी हिसाब से राजनीतिक समीकरण भी बनने लगे हैं.

nitish kumar releases saryu rai bookक्या वास्तव में सरयू राय को नीतीश से दोस्ती भारी पड़ी?

बिहार में बीजेपी के साथ सत्ता में साझीदार जेडीयू नेता राजीव रंजन सिंह कहते हैं, 'JDU ने सरयू राय का समर्थन करने का निर्णय लिया है, जिहोंने निर्दलीय कैंडिडेट के रूप में नामांकन भरा है. हमारे संभावित उम्मीदवार ने जमशेदपुर ईस्ट सीट से अपना नाम वापस ले लिया है.'

जब राजीव रंजन सिंह से पूछा जाता है कि क्या नीतीश कुमार सरयू राय के लिए चुनाव प्रचार भी करेंगे, राजीव रंजन का जवाब होता है - 'यदि राय आग्रह करेंगे तो...'

सवाल है कि झारखंड में सरयू राय को नीतीश के समर्थन से BJP को नफा नुकसान क्या है?

जनाधार तो नीतीश कुमार का बिहार में भी बहुत नहीं है, लेकिन सुशासन वाली अपनी छवि के चलते बाकियों पर भारी पड़ते हैं. इतने भारी कि बीजेपी को भी नीतीश के बराबर कद का कोई नेता नहीं मिलता. झारखंड में तो नीतीश कुमार सिर्फ दबाव बढ़ाने के लिए चुनावी राजनीति कर रहे हैं. खास बात ये है कि नीतीश की ही तरह NDA का एक और सहयोगी दल राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी चुनाव मैदान में उतर चुकी है.

हो सकता है विपक्ष को लगता हो कि बीजेपी ने सरयू राय को टिकट न देकर बहुत बड़ा जोखिम उठाया है. ऐसे में जबकि महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी झटका खा चुकी हो, अमित शाह कोई बड़ी राजनीतिक भूल करेंगे समझ से परे है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जमीन से जुड़े लोकप्रिय नेता श्यामदेव रॉय चौधरी दादा का बनारस की शहर दक्षिणी सीट से टिकट काट कर एक नये नेता को थमा दिया. दादा के समर्थकों ने खूब बवाल किया. संघ को भी डर लगने लगा. संघ के कहने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डेरा डालना पड़ा. जब मोदी काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे थे तो श्यामदेव रॉय चौधरी किनारे खड़े थे. मोदी उनकी तरफ बढ़े और हाथ पकड़ कर मंदिर के अंदर ले गये. फिर कुछ भी नहीं हुआ. कुछ देर के लिए चर्चा रही कि दादा को राज्यपाल बनाया जाएगा. बाकियों की तरह वो भी महज एक चर्चा रही.

सरयू राय को लेकर सुदेश महतो ने भी खुल कर कुछ नहीं कहा है. सुदेश महतो की पार्टी आजसू ने बीजेपी के साथ चुनावी गठबंधन तोड़ दिया है. सुदेश महतो कह रहे हैं कि सरयू राय को अपना रूख स्पष्ट करना चाहिये और तभी उनकी पार्टी AJSU उनका समर्थन करेगी.

नीतीश को सरयू से क्या हासिल हो सकता है?

नीतीश कुमार के बीजेपी नेतृत्व को लेकर बदले की आग में झुलसने के एक-दो नहीं कई कारण हैं. 2015 के चुनाव में महागठबंधन की सरकार का मुख्यमंत्री बनने के डेढ़ साल बाद ही नीतीश कुमार ने एनडीए में दोबारी एंट्री ले ली - लेकिन उसके बाद से कदम कदम पर उन्हें घुटन होने लगी. नयी घुटन महागठबंधन जैसी तो नहीं लेकिन बहुत अलग भी नहीं रही.

आम चुनाव में बीजेपी ने नीतीश की पार्टी जेडीयू को सीटें तो बराबर दे दी, लेकिन पूरे बिहार में ऐसा माहौल बनाया कि नीतीश अपना मैनिफेस्टो तक नहीं ला सके. जब सरकार बनने लगी तो कैबिनेट में महज एक सीट का ऑफर मिला तो साफ मना कर दिया. हां, कुछ ही दिन बाद बिहार कैबिनेट में फेरबदल की तो बीजेपी को दूर ही रहने का संदेश दिया.

तीन तलाक और धारा 370 के मुद्दे पर तो नीतीश कुमार बीजेपी की सियासी चाल में ऐसे उलझे कि चुपचाप वो सब करते गये जो बिलकुल मंजूर नहीं था. मजबूरी ही ऐसी रही. नीतीश कुमार को एक ऐसे मौके की तलाश रही जब वो फ्रंटफुट पर लौटकर कोई मजबूत शॉट खेल सकें. तभी महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजे और झारखंड में सरयू राय की बगावत में मौका मिल गया.

नीतीश कुमार ने हाल में हरियाणा में बीजेपी को मजबूर और महाराष्ट्र में शिवसेना की जिद के आगे बेबस देखा और धीरे धीरे उनकी हिम्मत बढ़ने लगी. नीतीश को ये तो लगता ही होगा कि जब उद्धव ठाकरे बीजेपी नेतृत्व को इस कदर छका सकते हैं तो वो खुद को खेल के माहिर खिलाड़ी जाने जाते हैं. नीतीश को अब बीजेपी की हर कमजोरी का फायदा 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उठाना है.

सवाल है कि नीतीश कुमार झारखंड में बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं?

जमीनी स्तर पर शायद मामूली भी नहीं, लेकिन दबाव और शोर की सियासत में कुछ कुछ वैसे ही जैसे 2015 में नीतीश के खिलाफ बीजेपी जीतनराम मांझी का कंधा पा गयी थी. चुनाव से पहले मांझी के जरिये बीजेपी ने नीतीश को तब जितना भी डैमेज किया हो, बाद में तो बिलकुल भी नहीं कर पायी. सरयू राय के मामले में भी नीतीश कुमार को ऐसा ही फायदा मिलने वाला है.

चूंकि सरयू राय खुद कह रहे हैं कि 2017 में नीतीश कुमार ने उनकी किताब 'समय का लेख' का विमोचन किया था, इसलिए नाराज अमित शाह ने उनका टिकट काट दिया. वैसे सरयू राय मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ लगातार हमलावर रहे. उन पर मंत्री रहते हुए भी कैबिनेट की बैठकों में न जाने के आरोप भी लगे. ऐसे कई मौके आये जब सरयू राय ने बीजेपी सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. बीजेपी नेतृत्व की लगातार इन गतिविधियों पर नजर बनी रही.

जब टिकट बंटवारा होने लगा तो सरयू राय के पक्ष में तीन फैक्टर खड़े हो गये. एक, रघुवर दास का विरोध. दो, अमित शाह की नापंसदगी. तीन, नीतीश कुमार से दोस्ती.

अब लगता ये भले हो कि सरयू राय से नीतीश कुमार अपने कॉलेज के दिनों की दोस्ती निभा रहे हैं, असल बात तो ये है कि अपने मिशन 2020 की राह में वो अमित शाह के खिलाफ बंदूक चलाने के लिए एक मजबूत कंधा पा गये हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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