Jharkhand Political Crisis: हेमंत सोरेन के पास अभी भी खुले हैं कई विकल्प
झारखंड (Jharkhand Political Crisis) के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की विधानसभा सदस्यता पर तलवार लटक रही है. क्योंकि, चुनाव आयोग की रिपोर्ट पर राज्यपाल रमेश बैस ने एक्शन लेने की अनुशंसा कर दी है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि अगर हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी जाती है, तो उनके पास क्या विकल्प हैं?
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खदान लीज मामले में अपने पद का दुरुपयोग करने के दोषी पाये गये हैं. चुनाव आयोग ने खनन पट्टे के आवंटन मामले की रिपोर्ट राज्यपाल रमेश बैस को सौंपी थी. बताया जा रहा है कि राज्यपाल ने इस रिपोर्ट के मिलने के बाद झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा कर दी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो राज्यपाल रमेश बैस ने गेंद चुनाव आयोग के पाले में डाल दी है. और, अब चुनाव आयोग ही हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की अधिसूचना जारी करेगा. संभव है कि जल्द ही इसकी घोषणा कर दी जाएगी.
वैसे, विधानसभा सदस्यता पर लटकती तलवार के बावजूद झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि सब कुछ उनके कंट्रोल में है. बीते दिनों हेमंत सोरेन ने यूपीए में शामिल विधायकों के साथ मुलाकातों के बाद लतरातू डैम में पिकनिक भी मनाई. बता दें कि 82 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में यूपीए विधायकों की संख्या 51 है. यूपीए में जेएमएम के 30 और कांग्रेस के 18 विधायक शामिल हैं. इनके इतर आरजेडी के एक, एनसीसी और एंग्लो इंडियन के 1-1 विधायकों का समर्थन सोरेन सरकार के पास है. इसी के साथ यूपीए सरकार को भाकपा-माले के एक विधायक का भी समर्थन है.
आसान शब्दों में कहा जाए, तो झारखंड की यूपीए सरकार को अस्थिर करना मुश्किल है. क्योंकि, बहुमत के लिए केवल 42 का आंकड़ा ही जरूरी है. जबकि, हेमंत सोरेन के समर्थन में 51 विधायक लामबंद हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि अगर हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी जाती है, तो उनके पास क्या विकल्प हैं?
हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता के साथ उनके सीएम पद पर भी तलवार लटक रही है.
हेमंत सोरेन के पास क्या हैं विकल्प?
- फिलहाल सबकी नजरें चुनाव आयोग की ओर से जारी होने वाले आदेश पर ही टिकी हुई हैं. और, अगर चुनाव आयोग हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने का फैसला लिया जाता है. तो, वह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर फिर से सीएम पद पर काबिज हो सकते हैं. इसके लिए हेमंत सोरेन को बस 6 महीने के अंदर दोबारा चुनाव जीतना होगा. ऐसा करते ही झारखंड की यूपीए सरकार में सोरेन का मुख्यमंत्री पद बरकरार रहेगा. लेकिन, खबर है कि झारखंड में मतदाता पुनरीक्षण का कार्यक्रम चल रहा है. तो, 6 महीने के अंदर चुनाव जीतना संभव नहीं होगा.
- अगर चुनाव आयोग की ओर से हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने के साथ ही उनके दोबारा चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी जाती है. तो, वह इस मामले में कानूनी राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं. जहां से संभव है कि हेमंत सोरेन को फौरी राहत मिल जाए. और, उनका मुख्यमंत्री पद बरकरार रहे. हां, अगर सुप्रीम कोर्ट से कोई तत्काल राहत नहीं मिलती है. तो, यूपीए सरकार पर कोई खतरा नहीं होगा. लेकिन, हेमंत सोरेन की कुर्सी छिन जाएगी.
- वैसे, सुप्रीम कोर्ट से कानूनी राहत न मिलने की स्थिति में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) यूपीए गठबंधन का सबसे बड़ा दल होगा. तो, हेमंत सोरेन इस नाते जेएमएम के ही किसी विश्वासपात्र नेता को सीएम बनवा सकते हैं. या फिर वह अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम की कुर्सी पर स्थापित कर सकते हैं. ये ठीक वैसे ही होगा, जैसे बिहार में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले में चार्जशीट दाखिल होने के बाद राबड़ी देवी को सीएम बनाया गया था.
मध्यावधि चुनाव हुए, तो क्या होगा?
झारखंड में अगर यूपीए सरकार अस्थिर होती है या ऑपरेशन लोटस सफल होता है. तो, मध्यावधि चुनाव होने का खतरा पैदा हो जाएगा. इस स्थिति में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ जेएमएम को चुनाव जितवाना आसान नहीं होगा. खैर, देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता के लेकर क्या और कितना कड़ा फैसला लेता है.
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