एक बयान, और अचानक जेएनयू वीसी वामपंथियों की लाड़ली हो गईं
जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित (JNU VC Santishree Dhulipudi) ने एक कार्यक्रम में हिंदू धर्म के भगवानों की जाति, मनुस्मृति में महिलाओं के दर्जे और हिंदू धर्म की आलोचना करते हुए खुलकर अपनी राय रखी. और, वामपंथियों ने शांतिश्री के इस बयान को प्रचारित करना शुरू कर दिया.
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जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित को लेकर एक बार फिर से चर्चा का माहौल गर्म हो गया है. दरअसल, एक कार्यक्रम के दौरान शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने कुछ ऐसी टिप्पणियां की. जिसके बाद वामपंथी बुद्धिजीवियों के बीच उनको हाथोंहाथ लिया जाने लगा है. जबकि, शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित की कुलपति पद पर नियुक्ति के दौरान यही वामपंथी बुद्धिजीवी उन्हें ट्रोल करने से भी नहीं चूके थे.
जब शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित को वीसी बनाया गया था. तो, न केवल उनकी बौद्धिक, बल्कि वैचारिक छवि को लेकर भी इन्हीं वामपंथियों ने तमाम भ्रम फैलाने की कोशिशें की थीं. और, शांतिश्री को आरएसएस और भाजपा का एजेंट तक घोषित कर दिया था. लेकिन, अब एक बयान के बाद अचानक ही जेएनयू वीसी शांतिश्री वामपंथियों की लाडली हो गई हैं. और, अब उनकी शान में यही वामपंथी कसीदे पढ़ने लगे हैं. आइए जानते हैं शांतिश्री अपने किन बयानों की वजह से सुर्खियों में हैं...
वामपंथियों ने जेएनयू वीसी के बयान के उस हिस्से को ही सेलेक्टिव तरीके से उठाया है, जो उनके एजेंडे को सूट करता है.
जेएनयू वीसी शांतिश्री ने क्या कहा?
- शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने एक कार्यक्रम के दौरान जाति संबंधी हिंसा के बारे में बात करते हुए भगवानों की जातियों को लेकर टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि 'आप में से अधिकांश को हमारे देवताओं की उत्पत्ति को मानवशास्त्र या वैज्ञानिक लिहाज से समझना चाहिए. कोई भी देवता ब्राह्मण नहीं हैं. सबसे ऊंचा क्षत्रिय है. भगवान शिव एससी या एसटी समुदाय के होंगे. क्योंकि, वे श्मशान में गले में सांप डालकर बैठते हैं. उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी बहुत कम हैं. मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकते हैं.'
- इसी कार्यक्रम में शांतिश्री ने मनुस्मृति में महिलाओं को दिए गए दर्जे पर भी बयान दिया. उन्होंने कहा कि 'मैं सभी महिलाओं को बता दूं कि मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं शूद्र हैं. इसलिए कोई भी महिला ये दावा नहीं कर सकतीं कि वे ब्राह्मण या कुछ और हैं. आपको जाति केवल पिता या विवाह के जरिये पति से मिलती है. मुझे लगता है कि ये पीछे ले जाने वाला विचार है.'
- जेएनयू की वीसी ने कहा कि 'हिंदू कोई धर्म नहीं है, बल्कि ये जीवन जीने का तरीका है. और, अगर ये जीवन जीने का तरीका है. तो, हम आलोचना से क्यों डरते हैं? गौतम बुद्ध सबसे पहले जातिगत सामाजिक विषमता के खिलाफ खड़े हुए.'
वामपंथियों को क्यों पसंद आ रही हैं शांतिश्री की बातें?
दरअसल, वामपंथियों के लिए हिंदू धर्म से जुड़े देवी-देवताओं और प्रतीकों पर कुछ भी कहने वाले को सिर-आंखों पर बिठा लिया जाता है. तो, शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित के साथ भी यही किया जा रहा है. देखा जाए, तो आमतौर पर वामपंथियों द्वारा हिंदू धर्म के देवी-देवताओं और प्रतीकों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां ही की जाती हैं. खुद को समाज सुधारक कहने वाले पेरियार जैसे नेता इसके सबसे बेहतरीन उदाहरण हैं. पेरियार ने सच्ची रामायण जैसी टीका लिखकर देवी-देवताओं के अपमान का कोई मौका नहीं छोड़ा. तो, शांतश्री के इन बयानों पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई वामपंथी बुद्धिजीवी लहालोट होते नजर आ रहे हैं. कहा जा रहा है कि JNU की पहली महिला वाइस चांसलर शांतिश्री ने बहुत ही पते की बातें कही हैं. और, वह जेएनयू को नई ऊंचाईयों पर ले जाएंगी. लेकिन, शांतिश्री के बयान के सेलेक्टिव हिस्से को ही चर्चा का हिस्सा बनाया जा रहा है.
शांतिश्री ने यूनिफॉर्म सिविल कोड और जाति पर भी कुछ बोला है
वैसे, जेएनयू वीसी शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने इसी कार्यक्रम में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर भी कई बातें कही हैं. लेकिन, इस पर चर्चा नहीं की जा रही है. क्योंकि, इस पर बात करने से वामपंथियों को समाज को तोड़ने वाले एजेंडे को नुकसान पहुंचेगा. शांतिश्री ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किए जाने की वकालत की. उन्होंने कहा कि 'जब तक हमारे पास सामाजिक लोकतंत्र नहीं है. तब तक राजनीतिक लोकतंत्र एक मृगतृष्णा है. ऐसा नहीं हो सकता कि अल्पसंख्यकों को सभी अधिकार दे दिए जाएं और बहुसंख्यकों को वो सभी अधिकार न मिलें. कभी न कभी आपको ये इतना उल्टा पड़ जाएगा कि आप उसे संभाल नहीं पाएंगे. जेंडर जस्टिस के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना जरूरी है.'
शांतिश्री ने अपने बयान में ये भी कहा है कि 'जब सभी भगवान अलग-अलग जातियों के हैं. और, जब चीजें ऐसी हैं. तो, हम अभी भी जातियों को लेकर भेदभावों को क्यों बनाए हुए हैं, जबकि ये बहुत ही अमानवीय है.' लेकिन, उनके इस बयान को वामपंथियों द्वारा तवज्जो नहीं दी जा रही है. बल्कि, वामपंथी एजेंडा में फिट होने वाले उनके बयान के कुछ हिस्सों को ही बढ़ाया जा रहा है.
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