अमेरिका में बात बस इतनी है, जो लड़ा वही बाइडेन!
अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनावों (US Election results) में जो बिडेन (Joe Biden) ने डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को हरा दिया है. बहुत जल्द ही अमेरिका के राष्ट्रपति की शपथ लेने वाले बाइडेन के जीवन को यदि हम देखें तो मिलता है कि बचपन से लेकर आजतक बाइडेन ने तमाम तरह की चुनौतियों का सामना किया है.
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रुकने की भूल बन न सकी हार का सबब
चलने की धुन ने राह को आसान कर दिया
(आलोक श्रीवास्तव)
जब ज़िंदगी खेल के मैदान से बाहर फेंकने का निश्चय कर ले तो मैच विनिंग सिक्सर वाली वॉल बनना बेहतर विकल्प होता है. हमारे मुल्क में हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहने का चलन चला है. लेकिन जिसे जीतने के लिए हर बार कई कई तरह की हार के गलियारों से गुज़रना पड़ा हो उसको परिभाषित करना शायद अभी बाकी है. लेकिन एक वैसा चेहरा जो बाइडेन (Joe Biden) का ज़रूर होता है. सिर्फ राष्ट्रपति की जीत से मत आंकिए 78 साल के जो बाइडेन को ये उनके व्यक्तित्व के प्रति पूरी तरह न्याय नहीं होगा. बचपन में हकलाते थे लेकिन हीन भावना को फुटबॉल की किक बनाकर उड़ाना उन्होनें तभी सीख लिया था. और शायद इसीलिए वो फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी भी रहे. ज़रा सोचिए जो व्यक्ति सिर्फ 29 साल की उम्र में अमेरिकी इतिहास का सबसे कम उम्र का सीनेटर बनने की खुशियों को संजो रहा हो.
आज बिडेन जहां हैं वहां तक पहुंचना उनके लिए हरगिज भी आसान नहीं था
उसी साल एक दुर्घटना में वो अपनी पत्नी और बेटी नाओमी को हमेशा के लिए खो देता है. बाइडेन ने कहा था तब उस दौर में वो ये अच्छी तरह समझ चुके थे कि कोई आत्महत्या क्यों कर लेता है. बेटे ब्यू और हंटर छोटे थे उनकी ज़िम्मेदारी निभानी थी लेकिन उससे बड़ी ज़िम्मेदारी उस प्यार की जिसने उन्हें सीनेटर बनाया था.
हां डेलावेयर के अपने घर में सोते बच्चों के माथे पर गुडनाइट किस करने के लिए रोज़ रात 150 किमी वापस ज़रूर लौटते थे. बाइडेन पूरी ताकत से अपने काम में जुट गए. लेकिन इम्तिहान अभी बाकी थे. 1988 में दो बार जानलेवा दौरे पड़े. बाइडेन उनसे तो उबर गए लेकिन चेहरे की मसल्स को लकवा मार गया. लेकिन आज देखिए मुस्कुराहट ने सारी मुश्किलों को कैसे ढंक रखा है.
ओबामा के बाद बाइडेन को राष्ट्रपति पद का सबसे तगड़ा डेमोक्रेटिक उम्मीदवार माना जा रहा था. ये तय भी हो चुका था लेकिन 2015 में बेटे ब्यू की कैंसर से मौत हो गई. बाइडेन ने भारी मन से लगभग लगभग राजनीति छोड़ ही दी, अपना नाम वापस ले लिया. उम्र के 73वें पड़ाव पर ये दारुण दुख था. लेकिन इसी दुख की बुनियाद में दूसरे बेटे हंटर को कोकीन की लत के चलते नौसेना से निकाल दिया जाना भी था.
राष्ट्र ने पुकारा तो बाइडेन ने फिर से अपनी पार्टी का झंडा थामा और अमेरिकी चुनावी इतिहास के 100 साल से ज़्यादा की रिकॉर्ड तोड़ विजय हासिल की. औपचारिक घोषणाएं शेष हैं लेकिन ये सत्य है कि वो अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति हैं.1972 में जब सीनेटर बने थे तब एक भारतीय ने उन्हें चिट्ठी लिखी थी बाइडेन फ्रॉम मुंबई, वो व्यक्ति जो को आज भी याद है. जो लोग अपना अतीत नहीं भूलते वर्तमान उन्हें बेहतर भविष्य ज़रूर देता है.
तूफानों से डरकर नौका पार नहीं होती
मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती
(सोहन लाल दि्वेदी)
सच है..सब सच है
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