नड्डा ने गलत नंबर डायल कर दिया - राहुल गांधी सिर्फ सवाल पूछेंगे, जवाब नहीं देंगे
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) को जो भी अपेक्षा रही हो, असल बात तो ये है कि राहुल गांधी सिर्फ सवाल पूछने के शौकीन हैं - किसी तरह की जवाबदेही में यकीन नहीं रखते. रक्षा समिति (Defence Committee) तो नमूना भर है.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को बीजेपी ने घेरा बड़े मौके से है. भारत-चीन विवाद के बीच, दरअसल, राहुल गांधी के तीखे सवालों और सीधे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट किये जाने से बीजेपी नेतृत्व बचाव तो कर रहा था, लेकिन जवाबी हमले के लिए सही और सटीक मौका नहीं मिल रहा था. NSA अजीत डोभाल ने कांग्रेस नेता के खिलाफ बीजेपी नेतृत्व को ये मौका भी उपलब्ध करा ही दिया. ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली दंगों के मामले में और धारा 370 खत्म किये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के मामले में. दोनों मामलों में कांग्रेस नेतृत्व काफी आक्रामक रहा.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने राहुल गांधी को रक्षा मामलों की समिति (Defence Committee) के बहाने कठघरे में खड़ा करने के लिए मौका तो सही चुना, लेकिन लगता है जैसे गलत नंबर डायल कर दिया हो. जेपी नड्डा ने राहुल गांधी की समिति की बैठकों से दूर रहने को लेकर सवाल उठाया है - असल सवाल तो ये है कि इसमें नया क्या है? जवाबदेही और जिम्मेदारियों के मामले में वैसे भी राहुल गांधी इतने गंभीर रहे ही कब हैं जो ऐसी बैठकों में बीजेपी नेता को उनकी मौजूदगी की बड़ी अपेक्षा रही!
राहुल गांधी खुद एक पहेली हैं, सवालों से उनको फर्क नहीं पड़ता
गलवान घाटी में चीन के सरहद से फौज को पीछे हटाने की खबरों के बीच राहुल गांधी को बीजेपी ने निशाने पर लिया है - और इसका बीड़ा भी खुद बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने उठाया है. बीजेपी अध्यक्ष नड्डा का कहना है कि वायनाड से कांग्रेस सांसद रक्षा मामलों की संसद की स्थायी समिति की एक भी मीटिंग में शामिल नहीं हुए, लेकिन देश का मनोबल गिराने और सशस्त्र बलों के शौर्य पर लगताार सवाल उठा रहे हैं. नड्डा की सलाह है कि एक जिम्मेदार विपक्षी नेता को ऐसा नहीं करना चाहिये.
Rahul Gandhi does not attend a single meeting of Standing Committee on Defence. But sadly, he continues to demoralise the nation, question the valour of our armed forces and do everything that a responsible opposition leader should not do.
— Jagat Prakash Nadda (@JPNadda) July 6, 2020
नड्डा के सवालों पर पूरी कांग्रेस राहुल गांधी के बचाव में उतर आयी है. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा पूछ रहे हैं कि क्या राहुल गांधी मीटिंग में गये होते तो चीन ने जो कुछ किया वैसा करने का दुस्साहस नहीं करता? गजब का बचाव है. सलाह भी दे रहे हैं - 'प्रधानमंत्री मोदी को इस मौके का फायदा उठाना चाहिये... राष्ट्र को संबोधित करना चाहिये, देश को विश्वास में लेना चाहिये, देश से माफी मांगनी चाहिये....कहें कि हां मुझसे गलती हो गई. मैंने आपको गुमराह किया या वो कोई दूसरे शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं कि अपने आकलन में मैं गलत था.' उड़ी हमले के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ऐसी ही सलाह दे रहे थे - प्रधानमंत्री जी पाकिस्तान के मुंह पर सबूत दे मारिये टाइप! वो भी अदा गजब की ही थी. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तो एक-एक करके 8 ट्वीट किया है - और अलग अलग तरीके से बीजेपी नेतृत्व और मोदी सरकार से सवाल पूछा है. कई ट्वीट में कुछ आंकड़े भी हैं -
8/8Dear Nadda Ji, Above all, pl answer.
Select news channels are running that Chinese forces are withdrawing from P-14 & our territory in Galwan Valley. If correct,we welcome & salute our forces.
But PM said no one ever occupied our territory. Did he then mislead the Nation? https://t.co/71tgK3c0J1
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) July 6, 2020
रणदीप सुरजेवाला का ये ट्वीट प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान को लेकर है जो वो सर्वदलीय बैठक में दिये थे - चीन हमारी सीमा के अंदर नहीं घुसा. बाद में प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर PMO की तरफ से सफाई भी पेश करनी पड़ी थी क्योंकि कांग्रेस नेताओं के साथ साथ कई एक्सपर्ट भी बयान पर सवाल खड़े कर रहे थे.
ये सवाल-जवाब तो चलता ही रहेगा. वैसे नड्डा ने देखा जाये तो एक तरीके से नैतिकता का सवाल उठाया है. नड्डा के मुताबिक राहुल गांधी को ऐसे सवाल पूछने का नैतिक अधिकार नहीं बनता.
निश्चित तौर पर राहुल गांधी अगर डिफेंस कमेटी की बैठकों में गये होते या कमेटी के स्टडी टूर पर भी चले गये होते तो नड्डा को सवाल पूछने का मौका नहीं मिलता - सवाल ये है कि क्या नड्डा को कभी लगा है कि राहुल गांधी ऐसी बातों की परवाह भी करते हैं? सिर्फ राहुल गांधी की ही कौन कहे, कमेटी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी भी कभी किसी मीटिंग में नहीं शामिल हुए हैं. सिंघवी बतौर राज्य सभा सदस्य डिफेंस कमेटी के सदस्य हैं.
राहुल गांधी बस सवाल पूछते हैं, पूछे जाने वाले सवालों की परवाह नहीं करते
राहुल गांधी से ऐसी अपेक्षा कैसे की जाये जब वो खुद कहते कुछ और करते कुछ और ही हैं. राहुल गांधी जिस बात के लिए मणिशंकर अय्यर के खिलाफ एक्शन लेते हैं या जिस तरह के बयान के लिए राहुल गांधी, राजस्थान कांग्रेस के सीनियर नेता सीपी जोशी से माफी मंगवाते हैं - वैसी बातें तो वो अक्सर ही करते रहते हैं.
राहुल गांधी दूसरे नेताओं को नसीहत देते हुए कहते हैं कि वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं उनके बारे में ऐसी बातें ठीक नहीं. फिर भी 2019 के आम चुनाव के दौरान पूरे वक्त नारे लगाते हैं - चौकीदार चोर है. देखा देखी हाल फिलहाल कई नेताओं के बयान आये - चौकीदार चाइनीज है.
राहुल गांधी के मन में हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री के प्रति कितना सम्मान है, ज्यादा दिन नहीं हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी देखने को मिला था - मोदी को युवा डंडे मारेंगे. अच्छी बाद है अंदर जो सम्मान का भाव है वो इसी बहाने बाहर आ जाता है.
जेपी नड्डा ऐसे राहुल गांधी से ऐसे सवाल और उस पर जवाब की अपेक्षा कैसे रखते हैं जो संसद में भाषण देने के बाद उसी हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री के गले पड़ जाते हैं और पूरे हिंदुस्तान के सामने आंख भी मारते हैं - वो खुद ही साफ कर देते हैं कि उनके लिए हिंदुस्तान का प्रधानमंत्री क्या मायने रखता है!
ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी सत्ता बदल जाने के बाद ऐसा कर रहे हैं. सरकार कांग्रेस की हो या फिर बीजेपी की, प्रधानमंत्री पद को लेकर राहुल गांधी का सम्मान भाव एक जैसा ही नजर आता है. वो अचानक से आते हैं और कैबिनेट की मंजूरी मिली होने के बाद एक ऑर्डिनेंस की कॉपी सरेआम फाड़ डालते हैं - वो भी तब जब देश का प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर होता है.
जिस नेता के मन में हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री के प्रति ऐसा सम्मान भाव हो उससे भला कैसी नैतिकता की उम्मीद की जा सकती है?
सब पसंद है, सिवा दस्तखत करने के
अमर उजाला अखबार की एक रिपोर्ट से उन कयासों को विराम लगता नजर आ रहा है जिसमें राहुल गांधी के फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने की बात चल रही है. रिपोर्ट से समझ आ रहा है कि राहुल गांधी के फिर से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी न संभालने की जिद के चलते सोनिया गांधी को ही अभी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम करते रहना पड़ेगा जब तक कि कोई स्थाई इंतजाम नहीं हो जाता.
असल बात तो ये है कि राहुल गांधी सिर्फ सवाल पूछने के शौकीन हैं - किसी तरह की जवाबदेही में यकीन नहीं रखते - कतई नहीं. वो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठना चाहते, लेकिन वे सारे काम करना चाहते हैं जो बतौर कांग्रेस अध्यक्ष किया जाता है, सिवा जरूरी फैसले लेने के और कागजों पर दस्तखत की जिम्मेदारी निभाने के!
राहुल गांधी खुद को कांग्रेस के सिपाही और वायनाड से सांसद के तौर पर पेश करते हैं, कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने से कतराते हैं. ये भी वही जानें कि प्रधानमंत्री मोदी पर हमले या सवाल अभिव्यक्ति की आजादी के हक से पूछते हैं या विपक्ष के नेता की तरह. वैसे कांग्रेस के पास तो विपक्ष के नेता का पद भी नहीं है - और ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है.
और तो और राहुल गांधी को लेकर खबरें आ रही हैं कि वो बिहार विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन पर भी बात कर रहे हैं. बिहार कांग्रेस के नेताओं से हाल ही में उनकी लंबी बातचीत हुई है. साफ साफ बोल दिया है कि गठबंधन तभी होगा जब कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. राहुल गांधी ने महागठबंधन से इतर भी चुनावी गठबंधन के विकल्प तलाशने की बात बिहार कांग्रेस के नेताओं से कही है.
ये सब राहुल गांधी कर तो रहे हैं लेकिन न तो वो बिहार के प्रभारी हैं और न ही ऐसे किसी पद पर. हां, दो महत्वपूर्ण बातें उनके साथ जरूर जुड़ी हुई हैं - वो कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे हैं और कुछ समय के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वायनाड को छोड़ दिया जाये तो कोई और कांग्रेस सांसद ऐसी हिमाकत कर सकता है? करीब करीब वैसे ही जैसे देश में लगी इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी को याद किया जाता है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ साफ कह दिया था कि बाहर बयानबाजी करने से क्या फायदा - राहुल गांधी संसद सत्र में आयें 1962 से आज तक के बीच जो हुआ उस पर दो-दो हाथ हो जाये.
कहना और समझना मुश्किल है राहुल गांधी को ये चैलेंज मंजूर भी होगा या नहीं. ये तो नहीं कहा जा सकता कि संसद को भी राहुल गांधी डिफेंस कमेटी की बैठकों की तरह ही लेते हैं, लेकिन 16वीं लोक सभा के सांसदों की संसदीय दायित्वों पर तैयार एक रिपोर्ट में राहुल गांधी फिसड्डी पाये गये थे.
बतौर अमेठी सांसद लोक सभा में राहुल गांधी की 52 फीसदी मौजूदगी दर्ज की गयी थी और ₹ 25 करोड़ के MPLAD फंड में से ₹ 19.6 करोड़ अपने इलाके में खर्च भी किये थे. इंडिया टुडे की इस रिपोर्ट में देश भर के 416 सांसदों में राहुल गांधी को 387वां स्थान हासिल हुआ था - क्योंकि इसे तैयार करने में संसद में प्रदर्शन को भी आधार बनाया गया था. मसलन, निर्धानित प्रश्न काल के दौरान सवाल पूछना या प्राइवेट मेंबर बिल लाना - ये सब भी रैंकिंग में ध्यान में रखे गये थे.
अमेठी न सही, इस बार वायनाड ही सही, राहुल गांधी सांसद तो हैं, लेकिन अब भी राहुल गांधी चीन के मुद्दे पर संसद में अमित शाह से दो-दो हाथ करने जाएंगे या नहीं - ये भी शायद ही किसी को मालूम या अंदाजा हो.
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