जस्टिस रंजन गोगोई CJI बन गए हैं - यानी अब लोकतंत्र खतरे से बाहर है
जस्टिस रंजन गोगोई देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश बन चुके हैं. पहले तो हालत ये रही कि उनकी नियुक्ति को लेकर ही आशंकाएं जतायी जा रही थीं, लेकिन वे गलत साबित हुईं. सवाल ये है कि जजों की प्रेस कांफ्रेंस का इस नियुक्ति में कितना रोल रहा?
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जस्टिस रंजन गोगोई को तो देश का अगला मुख्य न्यायाधीश बनना ही था, लेकिन एक बड़ा लोचा था. ये था - कहीं जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद केंद्र की मोदी सरकार कोई रोड़ा अटका कर किसी और को उस कुर्सी पर न बिठा दे.
जजों की प्रेस कांफ्रेंस की अगुवाई करने वाले जस्टिस जे. चेलमेशवर ने तो यहां तक कह डाला था कि अगर जस्टिस गोगोई को CJI नहीं बनाया गया तो समझना चाहिये जिस बात को लेकर आशंका जतायी गयी थी वो सच साबित होंगी. जस्टिस गोगोई भी जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ के साथ जजों की उस टोली का हिस्सा थे जिसने पहली बार मीडिया के जरिये लोगों के बीच आकर अपनी बात रखी - 'लोकतंत्र खतरे में है बचा लीजिए.'
लोकतंत्र को लंबी उम्र लगे...
अब जबकि जस्टिस रंजन गोगोई देश के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ले चुके हैं, मान कर चलना चाहिये - लोकतंत्र बच गया. जस्टिस गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 3 अक्टूबर को पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी.
Watch LIVE: Swearing-in-Ceremony of the Chief Justice of India Shri Justice Ranjan Gogoi at Rashtrapati Bhavan https://t.co/3kLEElsSBv
— President of India (@rashtrapatibhvn) October 3, 2018
सुप्रीम कोर्ट की सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने ही ट्विटर पर जस्टिस गोगोई के मुख्य न्यायाधीश बनने की खबर ब्रेक की थी -
Now unofficially known recommendation ready to go on 2nd September , Ranjan Gogoi will be the next CJI https://t.co/xzAbD6Flzm
— indira jaising (@IJaising) August 28, 2018
चाहे जैसे भी हो. मोदी सरकार ने जस्टिस चेलमेश्वर और उनके जैसे बाकियों की आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया है. फिर तो किसी को कोई शक शुबहा नहीं रहना चाहिये कि लोकतंत्र को कोई खतरा है, कम से कम इस मामले में.
लोकतंत्र अब खतरे से बाहर है!
हो सकता है सवालों से बचने के लिए ही सही, लेकिन फिलहाल मोदी सरकार ने उन सभी का मुंह बंद कर दिया है जिन्हें न्यायपालिका में व्याप्त कथित दुर्व्यवस्था से लोकतंत्र को खतरा महसूस हो रहा था. बाकी मामलों में राजनीति की पूरी गुंजाइष तो आगे भी बनी ही रहेगी.
साथियों के साथ जस्टिस रंजन गोगोई ने भी उठाया सवाल
दिल्ली में जजों की प्रेस कांफ्रेंस 12 जनवरी 2018 को हुई थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के तौर तरीके और ज्यूडिशियरी की स्वतंत्रता पर सवाल उठाये गये थे. चारों जजों की ओर से चीफ जस्टिस को एक चिट्ठी भी लिखी थी जिसमें कई मुद्दे उठाये गये थे.
बाद में हॉर्वर्ड क्लब इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस चेलमेश्वर ने उसे 'रोष और सरोकार' का हिस्सा बताया था. उसी वक्त जस्टिस चेलमेश्वर से जस्टिस गोगोई को लेकर भी एक सवाल पूछा गया था. जस्टिस चेलमेश्वर मुख्य न्यायाधीश के बाद सबसे सीनियर थे और इसी साल जून में रिटायर हो गये.
जस्टिस चेलमेश्वर से पूछा गया सवाल था - क्या आपको आशंका है कि जस्टिस गोगोई को अगले सीजेआई के रूप में प्रमोट नहीं किया जाएगा? जस्टिस चेलमेश्वर का जवाब था - "उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा और अगर ऐसा होता है तो ये साबित हो जाएगा कि 12 जनवरी की प्रेस कांफ्रेंस में हमने जो कहा था वो सही था."
‘मैं ज्योतिषी नहीं हूं …’ ये कहते हुए जस्टिस चेलमेश्वर ने उसी वक्त एक बड़ा ऐलान भी किया - "मैं ऑन रिकॉर्ड ये बात कह रहा हूं कि 22 जून को अपनी सेवानिवृत्ति के बाद मैं सरकार से कोई नियुक्ति नहीं मांगूगा."
जस्टिस चेलमेश्वर ने ज्यूडिशियरी को उम्मीद का अंतिम गढ़ बताया और कहा कि उसे अपने नैतिक और संस्थागत फायदों को बचाये रखने के लिए हरदम पवित्र, स्वतंत्र और क्रांतिकारी बने रहना चाहिये.
जस्टिस रंजन गोगोई के चीफ जस्टिस बन जाने के साथ ही ये भी साबित हो रहा है कि जस्टिस चेलमेश्वर की सारी आशंकाएं गलत साबित हुईं. अगर वो ज्योतिषी होते या ऐसी कोई भविष्यवाणी किये होते तो उसकी की व्याख्या इसी परिप्रेक्ष्य में की जाती.
जस्टिस गोगोई के चर्चित फैसले
अक्सर विवादों और उनकी बदौलत सुर्खियों में रहने वाले जस्टिस मार्कंडेय काटजू को अवमानना को नोटिस भेजने वाले जस्टिस गोगोई ही थे. 2016 में सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर जज को नोटिस भेजने के साथ ही जस्टिस गोगोई भी तुरंत ही सुर्खियों में छा गये.
जब जस्टिस काटजू से मंगवाई माफी
दरअसल, जस्टिस काटजू ने एक फेसबुक पोस्ट में सौम्या रेप और मर्डर केस में सुनाये गये सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की थी - क्योंकि आरोपी को रेप का तो दोषी माना गया था, लेकिन हत्या का नहीं। जिस बेंच ने फैसला सुनाया था जस्टिस गोगोई ही उसकी अध्यक्षता कर रहे थे. नोटिस के बाद जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश होना पड़ा और उनके फेसबुक पोस्ट के लिए माफी मांगते ही मामला वहीं खत्म हो गया.
कोलकाता हाई कोर्ट के जस्टिस कर्णन को छह महीने कैद की सजा, अमिताभ बच्चन आयकर केस और चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को संपत्ति, शिक्षा और कोर्ट में लंबित मुकदमों का ब्योरा भी देने जैसे ऑर्डर जस्टिस गोगोई के कलम से ही आये हैं.
हाल फिलहाल सबसे ज्यादा चर्चित NRC का आदेश भी जस्टिस गोगोई ने ही सुनाया था - और उसी आधार पर असम में एनआरसी तैयार किया जा रहा है.
जस्टिस गोगोई को कितना जानते हैं आप
असम के रहने वाले जस्टिस गोगोई नॉर्थ ईस्ट से आने वाले देश के पहले मुख्य न्यायाधीश हैं. 2 अक्टूबर को रिटायर हो चुके पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद वो सबसे सीनियर थे और परंपरागत नियमों के तहत ही उनकी नियुक्ति हुई है.
1978 में एक वकील के तौर पर प्रैक्टिस शुरू करने वाले जस्टिस गोगोई को 28 फरवरी 2001 को गुवाहाटी हाईकोर्ट का जज बनाया गया था. करीब नौ महीने बाद 9 सितंबर 2010 को उनका तबादला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में हो गया. 12 फरवरी 2011 वो हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन गये.
23 अप्रैल 2012 को वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और - 13 महीने से कुछ ज्यादा के कार्यकाल के बाद 17 नवंबर 2019 को जस्टिस गोगोई रिटायर हो जाएंगे.
सबसे दिलचस्प बात, जस्टिस गोगोई के पास - न घर है, न कार और न ही कोई कर्ज. जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस रंजन गोगोई, दोनों ने ही अपनी संपत्तियों की घोषणा 2012 में कर दी थी.
कुछ सवाल तो अब भी हैं
केंद्र की मोदी सरकार ने अगले चीफ जस्टिस की नियुक्ति पर उठने वाले संभावित सवालों का एक ही कदम से जवाब दे तो दिया है, फिर भी कुछ सवाल ऐसे हैं जो परिस्थितजन्य लगते हैं.
मसलन - क्या जस्टिस चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट के कामकाज से जुड़ी बातें सार्वजनिक तौर पर साझा नहीं की होतीं तो भी ऐसा ही होता?
क्या जस्टिस चेलमेश्वर के साथी जजों के साथ प्रेस कांफ्रेंस करने की एक बड़ी वजह ये भी रही?
क्या जस्टिस चेलमेश्वर को लगने लगा था कि जस्टिस गोगोई का हक मारकर किसी और को चीफ जस्टिस की कुर्सी पर बिठाया जा सकता है?
क्या जस्टिस चेलमेश्वर के साथ मीडिया के जरिये देश के लोगों के बीच अपनी आवाज उठाने को लेकर जस्टिस गोगोई के राजी होने की भी ऐसी ही वजह रही होगी?
क्या जस्टिस चेलमेश्वर ने सरकार पर न सिर्फ नैतिक दबाव बनाया बल्कि सरकार को ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया जहां सारी जवाबदेही सिर्फ और सिर्फ सरकार की बनती है?
तो क्या जस्टिस गोगोई के प्रमोशन और नियुक्ति में किसी तरह की अड़चन महसूस की जा रही थी और एक ही झटके सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा कर रास्ते में आने वाली सारी बाधाएं दूर कर दी गयीं?
फिर क्या समझा जाये कि पहले से ही तमाम मुद्दों को लेकर निशाने पर रही केंद्र सरकार ने भारी दबाव में मजबूरन जस्टिस रंजन गोगोई को चीफ जस्टिस बनाने का फैसला किया?
चीफ मिनिस्टर नहीं, बेटा चीफ जस्टिस जरूर बनेगा
जस्टिस गोगोई के पिता केशब चंद्र गोगोई असम में कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं और 1982 में वो मुख्यमंत्री भी बने. डिब्रूगढ़ विधानसभा सीट की नुमाइंदगी करने वाले केशब चंद्र गोगोई का 5 अगस्त 1998 को निधन हुआ था. हाल ही में एक गुवाहाटी में एक किताब के रिलीज के मौके पर एक इंटरेस्टिंग प्रसंग की खूब चर्चा रही.
सच हुई बेटे को लकेर भविष्यवाणी
वाकया उन दिनों का है जब जस्टिस रंजन गोगोई वकालत कर रहे थे. एक बार असम के कानून मंत्री अब्दुल मुजीब मजूमदार ने उनके पिता केशब गोगोई से पूछा - क्या आपका बेटा भी राजनीति में आएगा और असम का चीफ मिनिस्टर बनेगा?
तब जस्टिस रंजन गोगोई के पिता ने शानदार जवाब दिया था - मेरा बेटा राजनीति नहीं ज्वाइन करेगा और इसलिए चीफ मिनिस्टर नहीं बनेगा, लेकिन वो इतना काबिल है कि एक दिन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जरूर बनेगा. जब जस्टिस गोगोई पद और गोपनीयता की शपथ ले रहे थे, हो सकता है ये लाइन एक पल के लिए ही सही उनके कानों में सुनाई पड़ रही होगी - 'पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा...'
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