खालिस्तानियों के प्रति नरम रहे कनाडाई पीएम ट्रूडो के तेवर यूं ही ढीले नहीं पड़े...!
खालिस्तान और पाकिस्तान का समर्थक जगमीत सिंह कनाडा में सांसद है. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का चीफ भी है. वह पहले भी कई बार खालिस्तान के मुद्दे को लेकर कनाडा की सरकार पर दबाव बनाता रहा है. कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ऐसे अलगावदियों के प्रति नरम रहे हैं, लेकिन अब उनके सुर बदले हुए हैं.
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भारत की 'मेड इन इंडिया' कोरोना वैक्सीन की मांग दुनिया भर के देश कर रहे हैं. भारत मानवता का परिचय देकर पड़ोसी धर्म निभाते हुए कई देशों को मुफ्त में कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध करवा चुका है. अब भारत की Vaccine Diplomacy का असर काफी दूर तक नजर आने लगा है. पाकिस्तान की नजर भी 'मेड इन इंडिया' कोरोना वैक्सीन पर बनी हुई है. इन सबके बीच कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) ने भी कोविशील्ड की जरूरत को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से फोन कर बात की थी.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कनाडाई समकक्ष को कोविड-19 टीकों की आपूर्ति में मदद करने की पूरी कोशिश करने का भरोसा दिया था. भारत के लिए इसे एक बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल, बीते साल नवंबर में गुरु नानक जयंती के मौके पर जस्टिन ट्रूडो ने भारत में चल रहे आंदोलन को लेकर टिप्पणी की थी. जिस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कड़ा ऐतराज जताते हुए दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को 'गंभीर नुकसान' पहुंचने की बात कही थी. सवाल उठना लाजिमी है कि जस्टिन ट्रूडो ने आखिर क्यों किसान आंदोलन का समर्थन किया था? मोदी सरकार और ट्रूडो के बीच दूरी की क्या वजह है?
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो के बीच रिश्ते ठीक-ठाक रहे हैं.
खालिस्तान को लेकर नरम रुख ने बिगाड़े रिश्ते
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो के बीच रिश्ते ठीक-ठाक रहे हैं. कनाडा में बसे खालिस्तान समर्थकों की वजह से इन दोनों के रिश्तों में काफी खटास बनी रहती है. कनाडा के पीएम ट्रूडो पर खालिस्तानियों के प्रति नरम रुख अपनाने के आरोप लगते रहे हैं. 2018 में भारत दौरे पर आए ट्रडो का दौरा उनके लिए इसी वजह से काफी बुरा साबित हुआ था. कहा जा सकता है कि इसके पीछे कनाडा में रहने वाले खालिस्तान समर्थकों की अहम भूमिका थी.
कनाडा में सिख समुदाय का काफी प्रतिनिधित्व है और वहां कई सिख सांसद भी हैं. इनमें खालिस्तान और पाकिस्तान का समर्थक जगमीत सिंह का नाम भी शामिल है. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का चीफ होने के साथ ही जगमीत सिंह सांसद भी है. वह पहले भी कई बार खालिस्तान के मुद्दे को लेकर कनाडा की सरकार पर दबाव बनाता रहा है. हाल ही में उसने किसान आंदोलन का समर्थन करने को लेकर जस्टिन ट्रूडो समेत कई देशों से अपील भी की थी.
I am deeply concerned about the violence against farmers in IndiaThose calling to harm farmers must be held accountable and the right to peaceful protest must be protectedI am calling on Justin Trudeau to condemn the violence, immediatelyJoin me: https://t.co/lNairgWw2L pic.twitter.com/r6QvXcWwsU
— Jagmeet Singh (@theJagmeetSingh) January 29, 2021
कनाडा में बैठे खालिस्तान समर्थक भारत के आंतरिक मामलों में लगातार हस्तक्षेप करते रहते हैं. इन्होंने भारत में चल रहे किसान आंदोलन को इतिहास का सबसे बड़ा किसान आंदोलन साबित करने के भरपूर प्रयास किए हैं. माना जा रहा है कि किसान आंदोलन को लेकर विदेशी हस्तियों के ट्वीट में सामने आई 'टूलकिट' के पीछे खालिस्तानी संगठनों का हाथ है. दिल्ली पुलिस इस मामले की जांच कर रही है.
माना जा रहा था कि इसी दबाव की वजह से जस्टिन ट्रूडो ने किसान आंदोलन का समर्थन किया था. जिसके बाद दिसंबर में भारत ने कनाडाई राजनयिक को तलब कर उन्हें आपत्ति पत्र (डिमार्श) सौंपते हुए कहा था कि भारतीय किसानों से संबंधित मुद्दों पर कनाडाई प्रधानमंत्री, कुछ कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों की टिप्पणी हमारे आंतरिक मामलों में अस्वीकार्य हस्तक्षेप के समान है.
भारत की मोदी सरकार कनाडाई पीएम के इस रुख पर नाराजगी जाहिर करने नहीं चूकेगी.
कनाडा को कोविड-19 टीकों की बड़ी संख्या में जरूरत
कोविड-19 टीकों की कमी से जूझ रहे कनाडा का रुख अब किसान आंदोलन मामले पर बदल गया है. माना जा रहा है कि भारत के कोविड-19 टीके दुनिया में सबसे ज्यादा असरकारक हैं. जिसकी वजह से जस्टिन ट्रूडो के तेवर किसान आंदोलन को लेकर ढीले पड़ गए हैं. हाल ही में विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि कनाडा के पीएम ने किसान आंदोलन को लेकर भारत सरकार बातचीत से रास्ता निकालने के प्रयासों की सराहना की है. ट्रूडो सरकार कनाडा में मौजूद राजनयिकों और परिसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी. जस्टिन ट्रूडो और प्रधानमंत्री मोदी की फोन पर बात होने के बाद जारी किए गए बयानों में दोनों ही देशों ने किसान आंदोलन का जिक्र नहीं किया था.
कनाडा कोविड-19 की दूसरी लहर का सामना कर रहा है और वहां वैक्सीन की उपलब्धता न होने से टीकाकरण सही से नहीं हो पा रहा है. पौने चार करोड़ की जनसंख्या वाले कनाडा में कोरोना लगातार अपने पांव पसार रहा है. वहीं, लोग टीकाकरण न हो पाने की वजह से घरों में कैद रहने को मजबूर हैं. कनाडा ने कोरोनाकाल के दौरान अप्रैल में ही वैक्सीन खरीदने के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए थे. लेकिन, सभी कंपनियों ने कनाडा में इसे बनाने को लेकर असमर्थता जता दी थी. वहीं, किसी भी अन्य तरीके से कनाडा को अगले साल से पहले वैक्सीन मिलने की उम्मीद नहीं हैं. ऐसे में अब कनाडा के पास भारत के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचा है. कनाडा के नरम रुख को वैक्सीन डिप्लोमेसी की बड़ी जीत माना जा रहा है.
भारत की वैक्सीन कारगर, WHO ने भी की तारीफ
उत्तरी अमेरिका में स्थित देश कनाडा की अपने देश में टीकाकरण का कार्यक्रम ठीक से न करवा पाने की वजह से काफी किरकिरी हो रही है. कनाडा की जनता में पीएम ट्रूडो के प्रति रोष बढ़ता जा रहा है. वहीं, भारत में अब तक दो कोरोना वैक्सीन के निर्माण की इजाजत दी जा चुकी है. WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने भी भारतीय वैक्सीन की तारीफ करते हुए उसे सेफ बताया है. साथ ही WHO एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से विकसित गए कोरोना टीके कोविशील्ड के आपातकालीन इस्तेमाल का जल्द ही अप्रूवल दे सकता है.
भारत ने कई छोटे-छोटे देशों और अपने पड़ोसी देशों को मुफ्त में कोविशील्ड के टीकों की आपूर्ति की है. इस टीके के साइड इफेक्ट ना के बराबर हैं. विश्व के विकसित देशों में शुमार कनाडा के भारत से वैक्सीन की मांग करने पर इस टीके की ग्लोबल लेवल पर मार्केटिंग और मजबूत होगी. भारत की कोविड-19 वैक्सीन की दुनिया भर में धूम मची हुई है. भारत की 'मेड इन इंडिया' वैक्सीन पर दुनिया के 150 से ज्यादा देशों ने भरोसा जताया है. साथ ही इसे पाने की कोशिश में लगे हैं. भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी पूरी तरह से सफल होती नजर आ रही है.
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