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Updated: 10 सितम्बर, 2020 11:37 AM
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ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) का बीजेपी में इम्तिहान तो कायदे से अभी शुरू भी नहीं हुआ है. अभी तो सिर्फ तैयारी चल रही है. तैयारी तो जोरशोर से चल रही है, लेकिन उसमें लोचा नजर आने लगा है. नतीजे तो इम्तिहान के बाद ही आएंगे. लिहाजा बीजेपी को पहले से ही रणनीति बदलनी पड़ी है. मध्य प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही होने वाले हैं - और इनमें से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल इलाके की हैं. ग्वालियर-चंबल इलाका सिंधिया परिवार का बरसों पुराना गढ़ है.

जिन इलाकों में उपचुनाव होना है वहां से बीजेपी को फीडबैक मिल रहा है कि पार्टी कार्यकर्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के बीच खुद को काफी असहज महसूस कर रहे हैं - और यही वजह है कि सिंधिया को पीछे कर पार्टी ने मोर्चे पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) को भेजा है और सिंधिया को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के साथ चुनाव प्रचार से जोड़ दिया है - सवाल ये है कि क्या सिंधिया खुद बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच एडजस्ट नहीं कर पा रहे हैं या फिर बीजेपी कार्यकर्ता सिंधिया को नहीं पचा पा रहे हैं.

सिंधिया को लेकर बीजेपी ने बदली रणनीति

बीजेपी ने मध्य प्रदेश उपचुनावों को लेकर बड़ा बदलाव ये किया है कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया सिर्फ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही चुनावी क्षेत्रों का दौरा करेंगे. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सिंधिया और शिवराज के ये दौरे भी तभी हो पाएंगे जब केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच माकूल माहौल तैयार कर चुके होंगे.

बीजेपी की डिजिटल रैली में अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की दिल खोल कर तारीफ की थी और तारीफों के मामले में तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी होड़ लगा ली थी, लेकिन ये सब सिर्फ ऊपर की बातें साबित हो रही हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं की शंकाओं का समाधान नहीं हो पा रहा था.

बीजेपी को लगातार फीडबैक मिल रहा था कि पार्टी कार्यकर्ताओं का जब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ आमना सामना हो रहा है तो वे काफी संकोच महसूस कर रहे हैं. हो भी क्यों न जो कार्यकर्ता बरसों से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के खिलाफ नारेबाजी और चुनाव मुहिम चलाते आ रहे हों, उनके लिए ये सब कितना मुश्किल हो सकता है वे ही समझ सकते हैं. ऐसी ही मुश्किलें 2015 में बिहार चुनाव के दौरान जेडीयू और आरजेडी कार्यकर्ताओं को हुई थी - और 2019 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी और बीएसपी कार्यकर्ताओं की भी. सच तो ये है कि जहां कहीं भी ऐसे बेमेल गठबंधन होते हैं या विरोधी दलों के नेता पाला बदलते हैं, कार्यकर्ताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होती है. अक्सर यही चुनौतियां भारी भी पड़ती हैं और चीजें कभी वो शक्ल नहीं ले पातीं जैसी उम्मीद होती है. फिलहाल मध्य प्रदेश में बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा ही हो रहा है, जाहिर है कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में जाने वाले कार्यकर्ताओं का भी यही हाल हो रहा होगा.

अगस्त, 2020 में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश का तूफानी दौरा किया था - ग्वालियर-चंबल से लेकर इंदौर तक. जगह जगह वो सीनियर बीजेपी नेताओं से लेकर बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं से भी मिले, लेकिन लगता है वो उनके मन की बात नहीं पढ़ पाये और उसके हिसाब से उनका डर भी नहीं खत्म कर पाये.

jyotiraditya scindiaग्वालियर के वीनस हाल में अपने समर्थकों और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया

हाल ही में बीजेपी के ही कई नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी में आ जाने के बाद अपना हाल कश्मीरी पंडितों जैसा बताया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से तो शिवराज सिंह चौहान को भी ऐसे ताने सुनने को मिल रहे हैं कि कुर्सी के लालच में वो समझौता कर चुके हैं. अब दूसरों को क्या पता कि शिवराज सिंह चौहान कैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के गले में हाथ डाल कर मुस्कुराते हैं. ये सिंधिया ही तो हैं जिनकी जिद के चलते वो मुख्यमंत्री होकर भी अपने कैबिनेट में चार से ज्यादा अपने मन के मंत्री तक नहीं बना पाये. वैसे शिवराज सिंह ऐसे अकेले नेता नहीं रहे बल्कि नरोत्तम मिश्रा से लेकर वीडी शर्मा और नरेंद्र सिंह तोमर तक सभी के लिए हाल एक जैसा ही रहा. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने तो बोल भी दिया कि उनकी सिफारिशों को किसी ने तवज्जो नहीं दी. सिंधिया की हाल की नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ अकेले हुई मुलाकात ने तो क्षेत्रीय बीजेपी नेताओं का डर और भी बढ़ा दिया था.

बहरहाल, अब तय ये हुआ है कि जहां कहीं भी ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव प्रचार के लिए जाएंगे बीजेपी कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाने के लिए वो शिवराज सिंह चौहान के साथ ही जाएंगे. दोनों स्टार प्रचारकों के इलाके में पहुंचने से पहले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ साथ प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा भी जगह जगह कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उनसे बातचीत कर रहे हैं और उनके मन में जो सवाल हैं, दूर करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं.

नरेंद्र सिंह तोमर मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं. 2008 और 2013 का विधानसभा चुनाव बीजेपी नरेंद्र सिंह तोमर की ही अगुवाई में लड़ी थी. माना जाता है कि नरेंद्र सिंह तोमर का जमीनी नेटवर्क काफी तगड़ा है और बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ वो सीधे कनेक्ट रहते हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिये बीजेपी में आये वीडी शर्मा को संघ में भी भरोसेमंद माना जाता है.

बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच पहुंच कर नरेंद्र सिंह तोमर समझाते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अब बीजेपी के परिवार का ही हिस्सा हैं - और वे लोग भी जनता के बीच सिर उठाकर तभी चल सकेंगे जब उनको सेवा का मौका मिलेगा और ये मौका भी तभी मिलेगा जब पार्टी की सरकार होगी.

नरोत्तम मिश्रा क्यों नदारद हैं

नरोत्तम मिश्रा भी नरेंद्र सिंह तोमर की तरह मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में माने जाते हैं. फिलहाल नरोत्तम मिश्रा बीजेपी की शिवराज सिंह सरकार में गृह मंत्री हैं. शिवराज सिंह की सरकार बनवाने में नरोत्तम मिश्रा की भी बड़ी भूमिका रही है. कांग्रेस के बागी विधायकों को सबसे पहले नरोत्तम मिश्रा के ही संपर्क में देखा गया था.

ग्वालियर में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी नेता के तौर पर पेश किया जा रहा था तो शिवराज सिंह चौहान सहित सारे नेताओं की मौजूदगी के बावजूद लोगों को नरोत्तम मिश्रा की कमी खल रही थी. बाद में भी जब सिंधिया को पीछे कर तोमर और वीडी शर्मा को बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच समझाने के लिए भेजा गया तो भी नरोत्तम मिश्रा को सीन से गायब पाया गया. क्या नरोत्तम मिश्रा की ग्वालियर-चंबल इलाके से गैर-मौजूदगी किसी तरीके से ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओें की नाराजगी से जुड़ी हुई हो सकती है?

ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस नेता के रूप में दबदबा रहा है तो नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा का बीजेपी नेताओं के तौर पर. ऐसे में नरोत्तम मिश्रा का मोर्चे से दूर होना एक स्वाभाविक सा सवाल और चर्चा का विषय बन रहा है.

नरोत्तम मिश्रा से जुड़ी चर्चाओं को प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा सीधे सीधे खारिज करते हैं. कहते हैं, पार्टी जिसे जहां का जो काम सौंपती है, वो उसे वहां पहुंच कर पूरा करता है. नरोत्तम मिश्रा को भी सफाई देनी पड़ी है. नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि जिस कार्यक्रम को लेकर सवाल उठ रहा है उसमें भी वो हजारों कार्यकर्ताओं के बीच मौजूद थे - और अब भी जहां पार्टी भेज रही है वहां का काम कर रहा हूं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की बीजेपी में हैसियत को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत ने एक ट्वीट किया है. कांग्रेस नेता ने बीजेपी का ही एक पोस्टर शेयर करते हुए कटाक्ष किया है - क्योंकि पोस्टर में सिंधिया की एक छोटी सी तस्वीर लगी हुई है जो शिवराज सिंह के साथ नहीं है. मानते हैं कि ये पोस्टर बीजेपी की कोई आधिकारिक प्रचार सामग्री का हिस्सा नहीं है, लेकिन उपचुनाव के दौरान सिंधिया को उनके कद के हिसाब से पोस्टर में जगह तो मिलनी ही चाहिये थी.

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