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Updated: 24 फरवरी, 2022 05:35 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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काली दुल्हन (kali dulhan) का मेकअप किया गया हो...इसे रंगभेद कहें या नस्लभेद इतना तो साफ हो गया है कि बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया (Satish Poonia) की दिमागी सोच का स्तर क्या है? सबसे पहली बात तो यह है कि किसी लड़की के रंग का काला होना शर्म की बात नहीं है, बुराई तो ऐसे लोगों में है जो उसके काले होने को उसकी बहुत बड़ी कमी बताते हैं.

जो किसी महिला के रंग का मजाक बनाते हैं. जो सांवली लड़की को उसके रंग की वजह से अपमानित करते हैं, उसे नीचा दिखाते हैं. किसी काली रंग वाली लड़की को यह एहसास दिलाया जाता है कि वह पूर्ण नहीं है. वह बदसूरत है और वह प्रतिष्ठित सामाजिक दायरे से बाहर है.

जमाने बदल गए, राजनीति बदल गई, सरकारें बदल गईं लेकिन कुछ नेताओं की सोच महिलाओं को लेकर इतनी सड़ी हुई है कि बार-बार औरत पर निशाना साधते हुए वे कुछ ना कुछ उल्टा बोल ही देते हैं. चाहें वह बालात्कार को लेकर हो, पहनावे को लेकर हो या फिर शारीरिक बनावट को लेकर.

दरअसल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से कांग्रेस सरकार का चौथा बजट पेश कर दिया गया. इसके बाद राजस्थान बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी नेता सतीश पूनिया ने जो कहा है वह किसी भी महिला के दिल पर लगे एक घाव की तरह है. उन्होंने बजट को खराब बताने के लिए कहा कि "बजट में सिर्फ लीतापोती की गई है, ऐसा लगता है कि किसी काली दुल्हन को ब्यूटी पार्लर पर ले जाकर उसका अच्छे से श्रृंगार कर पेश कर दिया हो ताकि वह गोरी लग सके'. इससे ज्यादा इस बजट में मुझे कुछ नहीं लगता."

kali dulhan statement, rajasthan budget 2022, bjp state president satish poonia statementपूनिया ने अपनी राजनीति चमकाने के चक्कर में इन बेटियों के आत्मविश्वास को झकझोर कर रख दिया...

इस नेता महाशय के अनुसार, यह बजट उस दुल्हन की तरह है जिसका रंग काला है और खुद को सुंदर दिखना के लिए मेकअप लगाती है. इनकी नजर में ना वो दुल्हन अच्छी है और ना ही यह बजट...

पूनिया जी हम लड़कियों को बस यही पूछना था कि क्या बजट को बेकार बताने के लिए आपको कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिला? नेताओं के पास तो शब्दों का भंडार होता है. इन्हें क्यों लगता है कि काली दुल्हन सुंदर नहीं होती या फिर उसे अपनी शादी वाले दिन मेकअप लगाने का अधिकार नहीं है? बजट इन्हें खराब लगा तो किसी और चीज से तुलना करते...

खैर, ऐसे लोगों के लिए महिलाएं भी एक चीज ही तो हैं. एक वस्तु हैं जिसे ये अपने पैरामीटर पर फिट करने की कोशिश करते रहते हैं. लगता है इनके खानदान में दूर-दूर तक सभी लोग गोरे हैं. जो ऐसी बातें बाहर वालों के लिए करता है सोचिए वो अपने घर की महिलाओं के साथ किस तरह का व्यवहार करता होगा?

बजट का उदाहरण काली दुल्हन पर बेतुका टिप्पणी करने वाले नेता अपने भाषण में भेदभाव न करने की बात करते हैं. इनके भाषण में सभी लोग एक समान होते हैं. रंगभेद और नस्लभेद के खिलाफ बातें करने वाले महिलाओं को उनके लुक को लेकर नीचा दिखाते हैं. कल्पना कीजिए जिन काली या सांवली लड़कियों ने इनकी बातें सुनी होंगी उन्हें कैसा महसूस हुआ होगा. पूनिया ने तो अपनी राजनीति चमकाने के चक्कर में इन बेटियों का आत्मविश्वास ही तोड़ दिया...

लेकिन ये हार नहीं मानेंगी, क्योंकि ये आज के जमाने में जीती हैं जहां सांवला, गोरा, काला, मोटा, पतला जैसी बातें बौनी होती दिख रही हैं. ऐसी बातें बोलकर कोई भी इन लड़कियों को हरा नहीं सकता. वे खुद से प्यार करना जानती हैं और उन्हें पता है कि वो जैसी भी हैं बेहद खूबसूरत हैं.

काला होने का यह मतलब नहीं है कि वे मेकअप न करें, खुद को प्यार से आइने में न निहारें, वे खुश न रहें, वे खुद का ख्लाल न रखें. उन्हें पता है उनका रंग-रूप अपने आप में खास है. उनका आत्मविश्वास सिर्फ उनके बाहरी दिखावे पर नहीं टिका, वे खुद से लबरेज हैं और ऐसी बातें करने वालों पर हमलावर भी, वे लड़ना भी जानती हैं और दुनिया जीतना भी...

आप खुद देख लीजिए कि शर्म का कितना पानी अभी बचा है?

आप माने या ना माने जिन लोगों का रंग गोरा होता है वे बड़ी ही आसानी से किसी के काले रंग पर ज्ञान दे सकते हैं लेकिन सफर तो कई काली लड़कियों को बचपन से ही करना पड़ता है. जब घरवाले बचपन में हल्दी, मलाई और चंदन के उबलट लगाने की सलाह देते हैं. जब स्कूल में गोरी लड़की को राधा का किरदार मिल जाता है और जब कॉलेज में उसे एवरेज से कम माना जाता है...

इनसब से लड़ते हुए, सबका सामना करते हुए वह खुद को समेटती है और अपनी दुनिया की क्वीन बन जाती है. वह अपने सपने पूरे करती है क्योंकि उसे अपने रंग पर नाज है.

ये काली महिलाएं अपनी दुनिया को संभाल लेंगी, पहले सतीश पूनिया बताएं कि क्या काली औरतें इंसान नहीं होतीं? क्या काली दुल्हनों के सपने नहीं होते? क्या काली लड़कियों के दिल नहीं धड़कते...सबसे अहम क्या काले रंग वालों को जीने का हक नहीं है?

काले पुरुष पर भी किसी को टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन महिलाओं को तो कई कुछ भी कहकर बड़ी ही आसानी से निकल जाता है. सिर्फ माफी मांग ली और बात खत्म... असल में जुबान से वही निकलता है जो दिल में होता है...

ऐसे नेताओं की सोच पर भी हमें शर्म आती है. आपकी इस बारे में क्या राय है, क्या काली महिलाएं इस दुनिया के लिए बुरी हैं? जो बार-बार यह मुद्दा सामने आकर टकरा जाता है...

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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