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Updated: 24 फरवरी, 2023 07:36 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया है. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है कि कमलनाथ पार्टी का चेहरा होंगे. पहले भी इस तरह का मैसेज पार्टी की ओर से दिया जा चुका है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी कमलनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ने जा रही है.इसी के साथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के विरोधी दल के नेता और भाजपा अपनी अपनी तलवारें भांजनी शुरू कर दी है. वैसे कमलनाथ को ऐसे राज्य में अपने नेतृत्व के लिए वस्तुतः कोई चुनौती नहीं मिली है, जहां कांग्रेस गुटबाजी के लिए कुख्यात है. कुछ साल पहले आपसी कलह इतनी बुरी थी कि राज्य की प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) को अलग-अलग पार्टी नेता अलग-अलग प्रवक्ता रहे थे.

अब, राज्य कांग्रेस इकाई के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नियमित रूप से कमलनाथ को भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं और ऐसे ही कई पोस्टर राज्य में समय-समय पर सामने आते रहे हैं. मध्य प्रदेश कांग्रेस से जुड़े सूत्रों ने बताया कि पिछले साल भोपाल में पीसीसी कार्यालय में आयोजित एक अनौपचारिक बैठक में कमलनाथ को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करने का फैसला लिया गया था. हालांकि, इस निर्णय को आलाकमान द्वारा अनुमोदित किया जाना बाकी है.

Kamalnathकांग्रेस की ओर से फिर सीएम का चेहरा बने कमलनाथ.

गौरतलब है कि छिंदवाड़ा के पारिवारिक गढ़ से 76-वर्षीय कमलनाथ 9 लोकसभा चुनावों में जीत और दिसंबर 2018 और मार्च 2020 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में एक अल्पकालिक कार्यकाल के बाद, कमलनाथ ने खुद को मध्य प्रदेश में कांग्रेस के शीर्ष नेता के रूप में स्थापित किया है. वरिष्ठता में उनके करीब आने वाले एकमात्र अन्य नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं.ग्वालियर के पूर्ववर्ती शाही परिवार के वंशज, ज्योतिरादित्य सिंधिया जो 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री पद के शीर्ष दावेदार थे, अब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार में मंत्री हैं. मार्च 2020 में सिंधिया ने 22 कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में जाने के बाद 15 महीने पुराने कमलनाथ प्रशासन की सरकार को गिरा दिया था, जिनमें से सभी उनके प्रबल समर्थक थे.

इस बात को समझते हुए कि कमलनाथ एक वरिष्ठ नेता हैं, एक पूर्व राज्य पीसीसी प्रमुख ने बताया कि पीसीसी प्रमुख के रूप में कमलनाथ की वर्तमान स्थिति उन्हें कांग्रेस नेताओं के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने की दौड़ में बढ़त देती है.

नाम न बताने की शर्त पर कांग्रेस के एक नेता बताते है , वह (कमलनाथ) सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं. आज जैसी स्थिति है, हमें उनके नेतृत्व में काम करना है क्योंकि आलाकमान को उन पर भरोसा है और हमें यह आभास दिया गया है कि वे हमारे नेता होंगे. हम सभी ने मिलकर काम करने का फैसला किया है क्योंकि हमारा एजेंडा सत्ता में वापस आना है. अन्य मुद्दों को बाद में सुलझाया जा सकता है.दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश के प्रभारी कांग्रेस महासचिव जेपी अग्रवाल ने पिछले महीने कहा था कि पार्टी ने अभी तक राज्य में अपने सीएम चेहरे को अंतिम रूप नहीं दिया है.अग्रवाल ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को बराबरी पर रखते हुए मीडिया से कहा था, एक प्रक्रिया है जिसका कांग्रेस पार्टी वर्षों से पालन कर रही है. प्रक्रिया भी शुरू नहीं हुई है. एक बार जब टिकट बांट दिए जाते हैं और चुनाव लड़ा जाता है, तो यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उस समय पार्टी (राष्ट्रीय) के अध्यक्ष, कार्यकारिणी और स्थानीय नेता क्या सोचते हैं.

वैसे इस समय पुनर्गठित पीसीसी टीम कमलनाथ के समर्थकों से भरी हुई है. 2018 में कमल कमलनाथ के नाम का पीसीसी प्रमुख के रूप में प्रस्ताव रखने के साथ ही, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के चार कार्यकारी पीसीसी अध्यक्ष रहे थे. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पांच साल बाद कमल कमलनाथ को खुली छूट मिल गई और वे चार कार्यकारी अध्यक्ष अब कमल कमलनाथ की अध्यक्षता वाली राजनीतिक मामलों की समिति के सदस्य हैं.समिति में उनके बेटे नकुल नाथ, दिग्विजय सिंह, मप्र विधानसभा में विपक्ष के नेता गोविंद सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, सुरेश पचौरी और अरुण यादव सहित अन्य शामिल हैं.जिला स्तर पर पार्टी के शीर्ष पदों के लिए चल रहे कुछ नामों को लेकर विरोध की सुगबुगाहट के बाद, अग्रवाल ने पिछले महीने कहा था कि कोई सूची अंतिम नहीं है.

राजनीतिक गलियारों में यह सर्वविदित है कि कमल कमलनाथ हमेशा नेहरू-गांधी परिवार के करीबी रहे हैं और अक्सर उन्हें अन्य राज्यों में संकट के समय पार्टी के संकटमोचन की भूमिका निभाने के लिए कहा जाता है.राज्य कांग्रेस के एक नेता ने दावा किया,जब सोनिया गांधी ने उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए बुलाया, तो मैं उनके साथ था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया.उन्होंने कहा, उनकी निगाहें एमपी पर है. जिस तरह से उनकी सरकार गिर गई, उससे उन्हें दुख हुआ क्योंकि इससे एक राजनीतिक प्रबंधक के रूप में उनकी छवि खराब हुई. लेकिन वह अडिग हैं और फिर से सरकार बनाने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे. कमल कमलनाथ ने कई मौकों पर आखिरी बार विधानसभा चुनाव लड़ने का इरादा जताया है.संयोग से, यही तर्क कमलनाथ खेमे ने 2018 के विधानसभा चुनावों में दिया था, जब वह 72 बरस के होने वाले थे.

मध्य प्रदेश के ही एक राजनीतिक टिप्पणीकार का कहना था कि, कमलनाथ मध्य प्रदेश में एक सर्वोच्च कांग्रेस प्राधिकारी हैं और उन्होंने खुद को राज्य के अलावा कहीं और नहीं देखने की शर्त रखी है. वह कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं, मेलजोल बढ़ा रहे हैं, उनकी वरिष्ठता को देखते हुए आलाकमान उन्हें भविष्य के सीएम घोषित करने वाले पोस्टरों के बारे में बताने के लिए नहीं कहेगा.हालांकि, उन्होंने कहा, इस तरह का अधिकार पार्टी के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि लोगों का दम घुटने लगता है और बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं. कमलनाथ ने भले ही कई चुनाव लड़े और जीते हों, लेकिन उनके पास पूरे चुनाव की निगरानी के लिए स्थानीय समीकरणों और परिस्थितियों का व्यावहारिक अनुभव नहीं है. अगर वह किसी और के अनुभव पर भरोसा करते हैं तो उन्हें (जीत का) श्रेय नहीं मिलेगा.

नाम की घोषणा आते ही मध्य प्रदेश कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है. वेबकास्टिंग पार्टी की घटनाओं और कमलनाथ के भाषणों से लेकर, भाजपा नेताओं की टिप्पणियों का खंडन करने और राज्य में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की आलोचना करने के लिए मीम्स और डॉक्यूमेंट्री पोस्ट करने तक, पार्टी आक्रामक रही है.

कांग्रेस का दावा है कि उसकी राज्य इकाई के मध्य प्रदेश भाजपा की तुलना में ट्विटर पर ज्यादा फॉलोवर्स हैं. हालांकि, राज्य भाजपा के आधिकारिक हैंडल के भी इतने ही फॉलोवर्स हैं. जब सोशल मीडिया पर प्रेसेंस की बात आती है तो पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई सभी राज्य कांग्रेस इकाइयों से आगे निकल जाती है. भोपाल के एक स्वतंत्र सोशल मीडिया वॉचर के अनुसार, एमपी कांग्रेस आईटी सेल ने अपने ट्वीट्स को ट्रेंड करने के लिए समय देना सीखा. मीडिया पर नज़र रखने वाले ने कहा कि कैडर नियमित रूप से वर्तमान कथा के अनुरूप अपनी डीपी बदलते रहते हैं.हालांकि, नरेंद्र सलूजा, जो पिछले साल के अंत तक कमलनाथ के मीडिया कन्वेनर थे और अब राज्य भाजपा के प्रवक्ता हैं, उन्होंने दावा किया कि कमलनाथ के चारों ओर आभा चली गई है.सलूजा ने कहा, 2018 में हर कोई उनसे खौफ में था और उन्हें प्रबंधन गुरु मानता था, लेकिन वह अपनी ही सरकार को बचाने में नाकाम रहे. पिछले कुछ वर्षों में उनके साथ काम करने के बाद, राज्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं को उनके स्वभाव के बारे में पता चल गया है.मध्य प्रदेश में सिंधिया और उनके समर्थकों द्वारा कांग्रेस का साथ छोड़ने से सिलसिला नहीं रुका, बल्कि यह और बढ़ने लगा, सलूजा ने दावा किया कि यह एक संकेत था कि पार्टी कार्यकर्ता कमलनाथ पर भरोसा नहीं करते थे.तीन साल पहले कांग्रेस से अलग हुए भाजपा के एक नेता ने जोर देकर कहा कि विपक्षी पार्टी केवल वस्तुतः सक्रिय है, जमीन पर नहीं. उन्होंने अपने कैडरों के मनोबल को बढ़ाने के लिए एक धारणा बनाई हो सकती है, लेकिन जमीन पर बहुत कम है. इसके पास न तो बुनियादी ढांचा है, न ही कर्मचारी.

पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने यह कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया है कि चुनाव परिणाम आने के बाद ही मुख्यमंत्री का चयन होगा. असंतोष के इस दौर की शुरुआत प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा के साथ हुई. पूर्व मंत्री एवं विधायक जीतू पटवारी नई कार्यकारिणी में कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं होने से नाराज हैं.वे कह रहे हैं कि उनकी इस पद पर नियुक्ति राष्ट्रीय नेतृत्व ने की, इसलिए वे पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे. इस पर भाजपा भी कटाक्ष करने से नहीं चूकी, कहा गया कि कांग्रेस में सर्कस चल रहा है. अरुण यादव के बयान को उनके आपसी संबंधों के हिसाब से भी देखा जा रहा है. यादव और कमल कमलनाथ के बीच तनातनी लंबे समय से चल रही है. खंडवा लोकसभा का उपचुनाव यादव लड़ना चाहते थे, लेकिन कमल कमलनाथ ने उन्हें टिकट नहीं दिया था.

कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर एक और नया बवाल खड़ा कर दिया है . एक कांग्रेसी नेता का अपना नाम न छापने पर बताया कि अभी चल रहे तीन राज्यों के चुनाव को छोड़ दें तो इस साल सात और विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. क्या कांग्रेस बाकी राज्यों में भी मध्य प्रदेश की तरह मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करेगी? राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी मध्य प्रदेश के साथ ही विधानसभा चुनाव होना है और दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है. पिछली बार कांग्रेस इन तीनों राज्यों में जीती थी और तब भी मध्य प्रदेश को छोड़ कर बाकी दोनों राज्यों में चेहरा घोषित नहीं था. इस बार कांग्रेस को फैसला करना है कि वह अशोक गहलोत और भूपेश बघेल का चेहरा दिखाती है या नहीं.अगले तीन महीने में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और वहां दो शीर्ष नेताओं- प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और विधायक दल के नेता सिद्धरमैया के बीच खींचतान चल रही है. राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर्नाटक के ही हैं. वहां क्या कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व के नाम पर लड़ेगी? तेलंगाना में भी साल के अंत में चुनाव होने वाला है. वहां भी पार्टी को तय करना है कि वह चेहरा घोषित करती है या नहीं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी को लेकर प्रदेश ईकाई में बड़ा विरोध है. यहां तक की पार्टी के एक कार्यकारी अध्यक्ष भी बागी हो रहे हैं. हालांकि वहां पार्टी के लिए कोई खास संभावना नहीं है. बहरहाल, अगर कांग्रेस मध्य प्रदेश में चेहर घोषित करके चुनाव लड़ने जाती है तो बाकी राज्यों में भी यह मुद्दा बनेगा.

लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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