कमलनाथ का शिवराज सरकार को इंटरवल बताना किस बात का संकेत है
मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) फिर से सत्ता में लौटने का दावा कर रहे हैं और शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) सरकार को इंटरवल (Interval) बता रहे हैं - आखिर माजरा क्या है?
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लॉकडाउन में विपक्षी राजनीति के लिए बहुत गुंजाइश बची तो है नहीं. फिर भी मध्य प्रदेश में कमलनाथ (Kamal Nath) जैसे तैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को टारगेट करने की कोशिश करते जरूर हैं. कमलनाथ तीन दिन के लिए अपने इलाके छिंदवाड़ा पहुंचे हैं जिसे अब वो बेटे नकुलनाथ के हवाले कर चुके हैं. कुछ ही दिन पहले लापता वाले पोस्टर को लेकर छिंदवाड़ा चर्चा में भी रहा.
कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की बीजेपी सरकार को इंटरवल (Interval) बताया है यानी पिक्चर अभी आधी बाकी है. मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं - और कमलनाथ उसी की तैयारी में जुटे हैं जिनमें से 20 सीटें कांग्रेस के जीत लेने का दावा भी कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश की राजनीति में मौजूदा दौर को इंटरवल बता कर कमलनाथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ललकार रहे हैं?
इंटरवल के बाद क्या है
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारियों में काफी दिनों से हैं. सुना है मंत्रियों के नाम पर आलाकमान और प्रदेश बीजेपी नेतृत्व की हरी झंडी भी मिल गयी है, लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण ने पेंच फंसा दिया लगता है.
शिवराज कैबिनेट विस्तार की संभावना 31 मई से पहले ही जतायी जा रही थी, लेकिन राजभवन परिसर में रहने वाले 7 लोगों के कोरोना वायरस पॉजिटिव हो जाने के बाद नियमों के तहत इलाका कंटेनमेंट एरिया में आ गया है. केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार किसी इलाके में कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के पाये जाने पर तीन किलोमीटर का इलाका कंटेंमेंट जोन में आ जाता है. हालांकि, आधिकारिक तौर पर राजभवन के लिए ऐसी कोई घोषणा हुई नहीं है, फिर भी मंत्रियों का शपथग्रहण ऐसे में हो पाएगा, ऐसा लग नहीं रहा है.
ऐसे में शिवराज सिंह का फोकस उपचुनाव की तरफ होगा जिस पर कमलनाथ की नजर टिकी हुई है. वैसे तो शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही कोरोना वायरस की चुनौतियों और लॉकडाउन से जूझ रहे हैं, लेकिन उपचुनाव उनके लिए पहले बड़े चैलेंज होंगे. ठीक वैसे ही है जैसे नतीजे आने तक कर्नाटक में येदियुरप्पा के लिए उपचुनाव जीतना चुनौती बना रहा. शिवराज सिंह चौहान की सरकार का भविष्य भी उपचुनाव के साथ ही जुड़ा हुआ है.
कमलनाथ का बयान भी यही बता रहा है कि 24 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव उनके लिए कितना मायने रखते हैं. शिवराज सिंह चौहान के शपथग्रहण के वक्त से ही कमलनाथ हमलावर रहे हैं और ये स्वाभाविक भी है. जिस तरह से कमलनाथ को कुर्सी गंवानी पड़ी वो राजनीति करने वाले किसी भी शख्स के लिए बड़ा झटका होता है. कमलनाथ ऐसे वक्त छिंदवाड़ा पहुंचे हैं जब कुछ ही दिन पहले उनके सांसद बेटे नकुलनाथ के लापता होने के पोस्टर लगे हुए थे - और पाये जाने पर 21 हजार रुपये के इनाम देने की बात भी लिखी गयी थी. बाद में काउंटर करने के लिए सिंधिया के लापता होने के पोस्टर भी लगाये गये - और 5100 रुपये के इनाम की घोषणा की गयी.
छिंदवाड़ा में लगे नेताओं को लापता बताने वाले इनामी पोस्टर
छिंदवाड़ा में ही कमलनाथ ने कहा कि अभी तो इंटरवल हुआ है और हम जल्द ही फिर सरकार में लौटेंगे. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भी कमलनाथ ने बड़ी ही कड़ी प्रतिक्रिया दी थी. सीधे सीधे शब्दों में जो कहा था उसे सूबे की क्षत्रपों के प्रभाव वाली राजनीति में काफी महत्वपूर्ण माना गया था.
तब कमलनाथ ने कहा था - आज के बात कल आता है और कल के परसों भी आता है. ये तो साफ है कि कमलनाथ ने अपनी वही बात अलग लहजे में दोहरायी है, लेकिन अभी तक कमलनाथ को कोई भी कमाल दिखाने का मौका भी तो नहीं मिला है. कमलनाथ जो भी करिश्मा दिखा सकते हैं वो सिर्फ उपचुनाव में ही देखने को मिल सकता है.
कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद से एक बात तो साफ है कि वो पूरा समय मध्य प्रदेश की राजनीति पर ही देते आ रहे हैं - और शिवराज सिंह चौहान को घेरने का कोई मौका छोड़ते नहीं हैं. मौका न भी मिले तो निकालने की कोशिश भी करते हैं और लॉकडाउन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर शिवराज सिंह चौहान पर एक साथ प्रहार करते हैं. कांग्रेस नेतृत्व की ही तरह कमलनाथ का भी आरोप रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार ने बगैर किसी योजना और संसाधन के ही लॉकडाउन लगा दिया - और शिवराज सरकार को किसी की परवाह ही नहीं है. कमलनाथ की करामात अब तक देखने को भले न मिली हो, लेकिन विरोध की निरंतरता के साथ साथ एक दावेदारी भी कि कमलनाथ सत्ता में लौटेंगे ही. लौटेंगे भी जल्दी ही, ऐसा ही मैसेज लगातार देने की कोशिश होती रही है. इंटरवल की बात भी उसी कड़ी में एक नया रिमाइंडर है.
इस ट्वीट को सँभाल कर रखना-
15 अगस्त 2020 को कमलनाथ जी मप्र के मुख्यमंत्री के तौर पर ध्वजारोहण करेंगे और परेड की सलामी लेंगे।
ये बेहद अल्प विश्राम है।
— MP Congress (@INCMP) March 20, 2020
अब सवाल यही है कि अगर ये इंटरवल है तो क्या वास्तव में मध्य प्रदेश की राजनीति में वैसा ही कुछ होने वाला है जैसा फिल्मों में इंटरवल के बाद एक्शन और तमाम ट्विस्ट देखने को मिलते हैं?
उपचुनाव जीतने का दावा किस आधार पर
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन करने के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके 22 विधायकों और दो खाली सीटों पर उपचुनाव की न तो कोई तारीख आयी है और न ही कोई तात्कालिक संभावना दिखायी दे रही है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपने तरीके से तैयारियों में कसर बाकी नहीं रख रहे हैं. सिंधिया के सामने भी ताजा चुनौती समर्थक विधायकों को मंत्री बनवाने की चुनौती रही - अब ये सुनिश्चित करना है कि बीजेपी सभी को टिकट भी दे दे.
वैसे सिंधिया की चुनौती इतने भर से ही खत्म नहीं हो जाती कि बीजेपी टिकट दे दे क्योंकि बीजेपी का टिकट कोई जीत की गारंटी तो है नहीं. बीजेपी खुद चुनाव हार चुके नेताओं की बगावत की आशंका से जूझ रही है. अगर बीजेपी सिंधिया के साथ आये नेताओं को टिकट दे देती है तो वे कहां जाएंगे?
कमलनाथ की नजर भी बीजेपी के ऐसे ही बागियों पर टिकी हुई है. बीच बीच में तो कमलनाथ के लोगों की तरफ से बीजेपी के कई बागी नेताओं के कांग्रेस के संपर्क में होने का दावा भी किया जाता रहा है. कमलनाथ की कोशिश होगी कि कैसे ज्यादा से ज्यादा बागियों को कांग्रेस में लाया जा सके.
हाल फिलहाल उपचुनावों के लिए कमलनाथ की ओर से चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद लेने की भी चर्चा रही. अभी तक न तो प्रशांत किशोर और न ही कमलनाथ की तरफ से किसी ने भी चुनाव प्रचार के बारे में ऐसी कोई जानकारी दी है. जहां तक प्रशांत किशोर की बात है तो लगता नहीं कि वो कुछ सीटों पर उपचुनाव के प्रचार की कमान संभालना चाहेंगे. प्रशांत किशोर अभी तक पूरा ही ठेका लेते हैं. वैसे महाराष्ट्र चुनाव के दौरान उनकी टीम के कुछ लोग IPAC के बैनर तले आदित्य ठाकरे के लिए काम जरूर कर रहे थे. अब ऐसी कोई व्यवस्था बने तो संभव भी है.
उपचुनावों को लेकर एक आम अवधारणा रही है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, नतीजे उसी के पक्ष में जाते हैं. कर्नाटक के नतीजे ताजा मिसाल हैं, लेकिन 2019 के चुनावों से पहले राजस्थान और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों में सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था.
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