कंगना रनौत प्रकरण बाल ठाकरे के विष बीज का ही तो फल है!
'कंगना रनौत के खिलाफ जो कुछ हुआ, ऐसा नहीं है कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की आत्मा कहीं रो रही होगी बल्कि सच तो यह है कि ख़ुश हो रही होगी. इसलिए कि बेटा उद्धव उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रहा है.'
-
Total Shares
अभिनेत्री कंगना रानौत का दफ़्तर तोड़ने पर शिवसेना और महाराष्ट्र के मुखिया उद्धव ठाकरे को कोसते हुए लोगों की टिप्पणियां पढ़ रहा हूँ. तंज हैं, शेर के घर गीदड़ पैदा हुआ, बाला साहेब हिन्दू ह्रदय सम्राट थे मगर औलाद बाबर निकली, ठाकरे तो एक ही था अब केवल ठीकरे बचे और बाला साहेब की आत्मा बेटे का आचरण देख रो रही होगी...आदि.
मैं नहीं समझता कि शिवसेना के संस्थापक पितृलोकवासी बाल ठाकरे की आत्मा रो रही होगी बल्कि सच तो यह है कि ख़ुश हो रही होगी. इसलिए कि बेटा उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रहा है. आकंठ घमंड, दादागिरी, गुंडागर्दी, प्रतिशोध, वसूली, मनमानी, गालीगलौज और महाराष्ट्र को अपनी जायदाद समझने के ही संस्कार तो बाल ठाकरे ने जीवन भर अपने बेटे को दिए हैं. अपने पिता के आचरण और व्यवहार से उद्धव ने यही तो सीखा है कि किस तरह धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा, भूषा की मौकापरस्त सियासत करना है. यही सीख उद्धव अपने बेटे आदित्य को दे रहे हैं. मतलब जैसा बाप वैसे बेटे, जैसा पाट वैसे ही पटिये हैं. बाल ठाकरे ने जो बीज बोए ये उसी के विषैले फल हैं.
कंगना रनौत के खिलाफ जिस रणनीति के तहत उद्धव ठाकरे और शिवसेना ने कार्रवाई की है, वह हूबहू बाल ठाकरे के नक्शेकदम पर है.
कौन नहीं जानता कि बाल ठाकरे ने जीते जी केवल जहर ही उगला. वे जितने अच्छे कार्टूनिस्ट और वक्ता थे उतने ही चालाक और महत्वाकांक्षी अभि'नेता' भी थे. पत्रकारिता के घाट पर बरसों बैठ अपने भाई के साथ कूची और कलम चलाते हुए उन्होंने समझ लिया था कि बुरे से भगवान भी डरता है और भय से ही प्रीत होती है. ताज़ वाला बादशाह बनने के लिए हजार पापड़ बेलना पड़ते हैं मगर बेताज़ बादशाह बनने के लिए केवल डर ही काफ़ी है.
शिवसेना का इतिहास देख लीजिए सिवाय डराने, धमकाने, तोड़ने, फोड़ने, गालियाँ बकने के सिवाय दूसरा व्यक्तित्व व कृतित्व न मिलेगा. न रीति, न नीति, न चरित्र, न निर्माण. केवल और केवल व्यक्ति पूजा और बाकी सबके लिए डंडे. जो 'मातोश्री' में दुम न हिलाए, 'व्यक्ति' के वचन को शासन न माने या ज़रा भी गुर्राए उसके पिछवाड़े पर लात!
पता नहीं लोग किसलिए बाल ठाकरे को हिंदू ह्रदय सम्राट कहते हैं! पूरी ज़िंदगी बाल ठाकरे ने मराठी मानुष के नाम पर पूरे महाराष्ट्र को मूर्ख बनाया, अपने मतलब साधे. कभी मद्रासियों को मारा तो कभी गुजरातियों को, कभी बिहारियों के सिर फोड़े तो कभी उत्तरप्रदेश के मेहनतकशों को लतियाया. मत भूलिए 1966 में शिवसेना की स्थापना के बाद उसके अत्याचारों, भेदभाव और लात-ठूसों से आहत हुए लोगों में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा हिंदू ही थे. इसलिए कि बाल ठाकरे का उसूल था, मारपीट बुरी नहीं है बल्कि 'नेचुरल जस्टिस' है.
बाल ठाकरे ने संविधान, देश, समाज, राजनीति, लोकतंत्र सबकी मर्यादा को ताक पर रखकर स्वयंभू जस्टिस चौधरी बनने के लिए ही शिवसेना बनाई और सेना में चुन-चुनकर वे ही लोग भरे जो मारपीट को न्याय मानने में यक़ीन करते थे और एक से एक गाली बुनने और बकने में अव्वल थे. उदाहरण के लिए नारायण राणे का नाम ही पर्याप्त है जो मनोहर जोशी के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना के दूसरे मुख्यमंत्री रहे. बताया जाता है राणे राजनीति में आने से पहले चेम्बूर में हन्या नर्या गिरोह के सदस्य थे. वे मुर्गी चोरी के लिए बदनाम थे और मुर्गी चोरी में पकड़े जाने पर शिवसेना नेता लीलाधर डाके ने उन्हें पुलिस से बचाया था. डाके ही राणे को शिवसेना में लाए थे. जब साल 2005 में उद्धव को पार्टी में तवज्जो मिलने से नाराज़ होकर राणे ने शिवसेना छोड़ी तो शिवसैनिकों ने राणे को मुर्गी चोर कह-कहकर ही चिढ़ाया था. आशय है शिवसेना में जो वाणी का जितना बड़ा तूतड़ा था और करतूत का जितना काला, वहीं तेजी से आगे बढ़ा, ऊपर चढ़ा. महाराष्ट्र के सारे बदनाम और गुंडे ही शिवसैनिक बने. सब्जी बेचने वाले छगन भुजबल से लेकर वानखेड़े स्टेडियम की पिच उखाड़ने वाले शिशिर शिंदे तक.
शिवसेना के गठन के बाद साल 66 में बाल ठाकरे का पहला भाषण कम्युनिस्टों के खिलाफ था. जिसके जरिये शिवसेना पूंजीपतियों की प्रिय बनी. धनवानों ने अपनी फैक्ट्रियों में हड़तालें रुकवाने के लिए शिवसेना की मदद ली और बदले में ठाकरे ने उनसे मोटा माल लिया. लार्सेन एंड टुब्रो, पार्ले बॉटलिंग प्लांट, मानेकलाल में शिवसेना ने कामगारों को इसी दौर में तोड़ लिया था. इस हद तक ये आगे बढ़े कि 1974 में जॉर्ज फर्नान्डीज़ की रेलवे हड़ताल तक को नकार दिया था. वह भी तब जब जॉर्ज फर्नान्डीज़ ठाकरे के पारिवारिक मित्र हुआ करते थे!
याद कीजिए तब परेल की दलवी बिल्डिंग में कम्युनिस्ट पार्टी का मुख्यालय हुआ करता था. जहाँ शिवसेना ने दिसम्बर 1967 में बिल्डिंग पर हमला कर भयानक तोड़-फोड़ मचाकर कार्यकर्ताओं को बुरी तरह पीटा था. तब बाल ठाकरे ने कहा था कि कुछ मित्रों के ऑफिस थे उसमें, नहीं तो इरादा बिल्डिंग को जलाने का था. इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी से विधायक कृष्णा देसाई की हत्या कर दी गई थी. आज़ादी के बाद मुंबई में ये पहली राजनीतिक हत्या थी और इस घटना ने सबको सन्न कर दिया था.
बाल ठाकरे वही थे जिन्होंने इंदिरा गांधी के आपातकाल का समर्थन किया था और देश के लिए एक हिटलर की जरूरत बताई थी. बाल ठाकरे वहीं थे जिन्होंने मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त जीआर खैरनार द्वारा तुड़वाई जा रही दाऊद इब्राहीम की इमारतों की तुड़ाई पर रोक लगवाई थी. तर्क दिया था कि दाऊद शिवसेना को दान देता है और एक शिवसैनिक है! वे बाल ठाकरे ही थे जो बात भारतीय संस्कृति की करते थे लेकिन साल 1996 में अंधेरी स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में माइकल जैक्सन का कार्यक्रम कराया था. इसके लिए शिव उद्योग सेना बनवाई थी और जैक्सन नाइट के नाम पर सेना की झोली भरी थी. कम लोगों को याद होगा कि लगभग इसी समय बम्बई को मुंबई बनाया गया था और मुंबई आए जैक्सन जब बाल ठाकरे से मिलने पहुँचे तो उन्होंने मातोश्री के शौचालय का इस्तेमाल किया था. उस शौचालय का वर्षों तक किसी ने इस्तेमाल नहीं किया. वह एक स्मारक की तरह स्थापित व चर्चित रहा!
शिवसेना की चित्रपट सेना भी है क्योंकि मुंबई फ़िल्म नगरी है. फ़िल्म में ग्लैमर है और ग्लैमर में धन. बाल ठाकरे सालों तक मातोश्री में दिलीपकुमार को बुलाकर साथ बीयर पीते रहे मगर पाकिस्तान ने दिलीपकुमार को निशान-ए-इम्तियाज से नवाजा तो देशभक्ति के नाम पर दोस्ती तोड़ ली. सम्भवतः वह साल 2008 था, जब जया बच्चन ने एक समारोह में इतना भर कहा था कि 'हम हिंदी भाषी हैं इसलिए हिंदी बोलेंगे!' इस गुनाह पर शिवसेना के गुंडों ने अमिताभ के घर हंगामा खड़ा कर दिया था. इतना कि उस समय बीमार और अस्पताल में भर्ती अमिताभ ने अस्पताल में ही प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर शिवसेना से माफ़ी माँगी थी.
शिवसेना का कोई चरित्र नहीं है. वह देश की राजनीति में एक लाइलाज कोढ़ है. आज नहीं, अतीत में अनेक बार वह कांग्रेस से गठजोड़ कर अपने हित साधती आई हैं. जो लोग बाल ठाकरे को हिंदू ह्रदय सम्राट कहते हैं उन्हें शायद पता न हो कि ठाकरे मुस्लिम लीग तक के साथ से न चूके. साल 1970 में आईएमएल नेता गुलाम मोहम्मद बनातवाला के साथ मंच साझा करते बाल ठाकरे न लजाए थे और न ही अपना मेयर बनवाने के लिए लीग से गठबंधन करते हिचकिचाए थे.
हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जनता भुलक्कड़ है और हिंदुओं का दुर्भाग्य है कि वे भोले और भावुक हैं. राजनीति वेश्या है जो किसी से परहेज़ नहीं करती. आज जिस भाजपा को शिवसेना से कष्ट है वह हिंदुत्व के नाम पर कोई 25 साल उसी शिवसेना के साथ पङ्गत जीमती रही जिसे आज तानाशाह कहकर खुद बड़ी पाक साफ बन रही है. जिस तरह भाजपा ने हिंदुत्व के नारे से अपनी राजनीति चमकाई उसी तरह शिवसेना ने अपनी बेलगाम जुबान और अमर्यादित आचरण से महाराष्ट्र को छला है.
आज कंगना के पक्ष में इसलिए किसी के बोल नहीं निकल रहे कि बोलते ही शिवसेना के बुलडोजर उसके घर की तरफ बढ़ चलेंगे. अमिताभ हो या खान. शिवसेना के लिए हिंदू-मुसलमान से फ़र्क नहीं पड़ता. जो उसके प्रति मुखर है वह 'हरामखोर' माना जायेगा. उसे महाराष्ट्र में रहने का अधिकार न होगा. वह पुरुष हो या महिला. बारह बरस पुरानी जया बच्चन हो या आज की कंगना. तब राज ठाकरे थे, आज उद्धव के 'गुलाम' संजय राउत हैं.
सम्भवतः आठ माह पहले की बात है वडाला टीटी के एक हीरामणि तिवारी ने फेसबुक पर उद्धव सरकार के ख़िलाफ़ कुछ लिख क्या दिया था, सेना के गुंडों ने उसे पीट-पीट कर भूत ही नहीं बनाया था बल्कि गंजा तक कर डाला था. कंगना बोली तो घर टूटा न! मतलब आप सेना के तौर तरीकों पर कुछ बोल नहीं सकते क्योंकि शिवसेना बेकाबू थी और हैं. बोलोगे तो पिटोगे, मूंडे जाओगो या घर ज़मीदोज़ होगा.
उम्मीद की जाना चाहिए कि महाराष्ट्र में ख़ास होकर भी आम जनता की प्रतीक कंगना की बद्ददुआ फलेगी, 'उद्धव तूने मेरा घर तोड़ा है, तेरा घमंड टूटेगा!'
आपकी राय