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Updated: 06 मार्च, 2016 05:31 PM
आदर्श तिवारी
आदर्श तिवारी
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देशद्रोह जैसे संगीन आरोपो से घिरे जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट ने छह माह की अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने जेएनयू में हुए देश विरोधी घटनाओं पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए अपने 23 पेज के फैसले में कन्हैया समेत जेएनयू के प्रोफेसरों को कड़ी फटकार लगाई है. अपने फैसले में कोर्ट ने कई बातों का जिक्र किया है, जिसपर गौर करने के बजाय वामपंथियों ने कन्हैया का महिमामंडन करना शुरू कर दिया है.

कोर्ट ने अपने फैसले में देश विरोधी नारे लगाने वालों के लिए कहा कि एक तरह का इंफेक्शन छात्रों में फैल रहा है. इसे बीमारी बनने से पहले रोकना होगा. एंटी बायोटिक से इंफेक्शन कंट्रोल न हो तो दूसरे चरण का इलाज शुरू किया जाता है. ऑपरेशन की भी जरूरत पड़ती है. उम्मीद है न्यायिक हिरासत में कन्हैया ने ये सोचा होगा कि आखिर ऐसी घटनाएं हुई क्यों? कोर्ट के द्वारा कही गई इन बातों से स्पष्ट होता है कि कोर्ट इस मसले पर गंभीर एवं सजग है. इस संयमित निर्णय में कोर्ट ने कन्हैया के घर की माली हालत का भी जिक्र किया तो वहीं एक छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में भी कन्हैया को उसकी जिम्मेदारीयों से भी अवगत कराया.

भारतीय लोकतंत्र एक उदार लोकतंत्र है. यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती भी है. हमे इस उदारता का सम्मान करना चाहिए. पंरतु जमानत के बाद से इस उदारता का अनुचित लाभ उठाने में वामपंथियो ने तनिक भी देर नहीं लगाई. खैर,शर्तों के साथ मिली जमानत पर जश्न और कन्हैया की जीत के नारे लगाने वाले ये भूल रहें हैं कि कोर्ट ने कन्हैया को अभी क्लीनचिट नहीं दी है. न ही कन्हैया को देशद्रोह के आरोपों से मुक्त किया है. कोर्ट के फैसले पर आत्ममंथन करने के बजाय कन्हैया कुमार को हीरो बनाने का ठेका हमारे वामपंथी बुद्धिजीवियों ने लिया है. ये अपने आप में दर्शता है कि इस विचारधारा के लोग अंतरिम जमानत के मायने को समझने में असमर्थ हैं अथवा अपने बौद्धिक अहंकार के आगे संविधान को दरकिनार कर रहें हैं. इसमें मीडिया के लोग तथा तथाकथित बुद्दिजीवी वर्ग कन्हैया को नायक बनाने की नाकाम कोशिश करने में लगे हुए हैं.

दरअसल विमर्श का मुद्दा ये होना चाहिए कि छात्रों को संक्रमण से कैसे बचाना है? मगर लाल सलामी वाले इस विमर्श में दिलचस्पी दिखाने के बजाय कन्हैया में तमाम प्रकार की संभावनाओं को तलाश रहें हैं. गौरतलब है कि जेल से रिहा होने के बाद जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष ने जिस लहजे में अपना भाषण दिया आज पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज भी देश में असमानता है. गरीबी तथा महंगाई भी है. भ्रष्टाचार रूपी दानव अपना विकराल रूप लिए आपको हर मोड़ पर खड़ा मिलेगा. इन सब बातों का जिक्र कन्हैया ने अपने भाषण के दौरान किया और खूब लोकप्रियता बटोरने का चतुर प्रयास भी.

काफी हद तक कन्हैया अपने इस एजेंडे में सफल भी रहा. लेकिन लगभग चालीस मिनट के भाषण में कन्हैया ने उन सब बातों का जिक्र करना मुनासिब नहीं समझा जिसके कारण आज इतना बड़ा बवाल हुआ है. अगर स्पष्ट शब्दों में कहें तो कन्हैया ने अपना भाषण एक राजनेता के तौर पर तैयार किया था. न कि एक छात्र नेता के तौर पर. यही कारण है कि देश के कुछ राजनेता कन्हैया की तारीफ करने का मौका गवाना नहीं चाहते हैं. सवाल खड़ा होता है कि कन्हैया ने ऐसा क्या कह दिया कि कुछ राजनेताओं को ये भाषण इतना प्रिय लगा.

दरअसल कन्हैया ने अभिव्यक्ति की आजादी का भरपूर इस्तेमाल करते हुए अपने भाषण में सरकार तथा आरएसएस पर तीखा हमला किया. जिससे सरकार भी असहज स्थिति में दिख रही है. कन्हैया द्वारा कही गई बातें समूचे विपक्ष को बहुत पंसद आई है. शायद ऐसा तार्किक हमला हमारे सियासतदान भूल चुके थे. कन्हैया ने सत्ता पक्ष को तो असमंजस में डाला ही है. इसके साथ ही विपक्ष को भी सकारात्मक व जनसरोकारी मुद्दों का पाठ पढ़ाया है. बहरहाल, कामरेड कन्हैया के भाषण को गौर पूर्वक सुनने के पश्चात् कुछ सवाल खड़े होते हैं. कन्हैया ने बोला तो बहुत कुछ मगर कहा क्या?

ये बात इसलिए क्योंकि जेएनयू कांड पर कन्हैया ने एक शब्द भी नहीं बोला. अपने भाषण में उसने अपनी ही राजनीति चमकाने का भरपूर प्रयास किया. जिसमे अभी तक वह सफल भी दिख रहा है. लेकिन इन सब के बीच मुख्य मुद्दे को कन्हैया ने बड़ी चतुराई से गौण करने का कुटिल प्रयास किया है. कन्हैया को इसी मंच से ये कहना उचित क्यों नही लगा कि जिस इन्फेक्शन की बात कोर्ट ने कही है. हमें जेएनयू के कैम्पस में इस देशद्रोह जैसे इन्फेक्सन से आजादी चाहिए. संघ से आज़ादी, मोदी सरकार से आजादी..इस वैचारिक विरोध के अतिरिक्त कन्हैया ने देश को क्यों नही आश्वस्त किया कि आगे से जेएनयू में अफजल या किसी भी आतंकवादियों की बरसी पर अगर कोई कार्यक्रम होता है तो जेएनयू छात्र संघ विरोध करेगा.

कन्हैया ने क्यों नही इस बात पर जोर दिया कि कोर्ट ने जिस संक्रमण की बात कही है उस संक्रमण को रोकने के लिए जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष होने के नाते मैं इस इंफेक्शन को रोकने का हर संभव प्रयास करूंगा. इन सब बातों का जिक्र न कर के कन्हैया ने गरीबी, भ्रष्टाचार की आड़ में देश को गुमराह करने की नाकाम कोशिश की है. दूसरी बात, कन्हैया के अनुसार ये पूरा मामला जेएनयू को बदनाम करने की साजिश है जो सरकार तथा आरएसएस के इशारे पर हो रहा है. लेकिन कन्हैया ये भूल रहा है कि जेएनयू को किसी ने सबसे ज्यादा बदनाम किया है, तो वो वामपंथी विचारधारा ने किया है. क्यों वहां ऐसे कार्यक्रम होते हैं जिससे देश का अपमान होता है?

जब भी हमारे सैनिक नक्सलियों की गोली का शिकार होते हैं तो जेएनयू में जश्न क्यों मनाया जाता है? क्यों वहां देश के बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को आहत करने के लिए दुर्गा का अपमान तथा महिषासुर का महिमामंडन किया जाता है? ये वो बातें हैं जिसने जेएनयू की छवि को खराब किया है, जिसके सीधे तौर पर जिम्मेदार वामपंथी विचारधारा के छात्र है. रिहाई के बाद जीत के नशे में डूबे कन्हैया एंड कंपनी को कोर्ट के तेईस पेज के फैसले को ध्यानपूर्वक पढना चाहिए ताकि अभिव्यक्ति की आजादी के मायने तथा अपनी जिम्मेदारी को ठीक ढंग से समझ सकें.

लेखक

आदर्श तिवारी आदर्श तिवारी @adarsh.tiwari.1023

राजनीतिक विश्लेषक, पॉलिटिकल कंसल्टेंट. देश के विभिन्न अख़बारों में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर नियमित लेखन

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