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Updated: 10 मई, 2023 02:46 PM
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'हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं' और यदि ऐसा हुआ तो मोदी वाकई बाजीगर हैं. एक सुनिश्चित जीत कैसे संभावित हार में तब्दील हो जाती है, कर्नाटक चुनाव का यही दर्शन है. बीते चार सालों में सामाजिक और राजनीतिक विमर्श बेवजह और फालतू के टॉपिक, मसलन हिजाब, हलाल, लव जिहाद, धर्मांतरण विरोधी कानून, टीपू सुल्तान, पर रहे थे. कांग्रेस ने बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, बुनियादी ढांचे और भ्रष्टाचार जैसी आम लोगों की समस्याओं से जुड़े वास्तविक मुद्दों की सटीक लीक पकड़ी. परंतु अचानक बाजी पलटती नजर आ रही है, ऐसा क्या दांव चल दिया बीजेपी ने ?

दरअसल बीजेपी खूब जोर आजमाइश तो कर रही थी, लेकिन इसके सारे दांव बेअसर ही साबित हो रहे थे ; आखिर काठ की हांडी कितनी बार चढ़ती ! केंद्रीय गृह मंत्री का कांग्रेस के सत्ता में आने से दंगे होने के दावे के साथ साथ मोदी को राज्य सौंपने की उनकी वकालत भी लोगों को रास आती प्रतीत नहीं हुई.

हां , एकबारगी लगा था कि कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे जी ने मोदी को जहरीला सांप बताकर सेल्फ गोल कर लिया है, परंतु उसकी भरपाई बीजेपी के एक विधायक ने सोनिया जी को विषकन्या बताकर कर दी. और भी अनर्गल बातें होती रही और चूंकि शैली वार - प्रतिवार की रही, सारी की सारी बातें प्रभावहीन ही रही. और तभी आया कांग्रेस का विज़न डॉक्यूमेंट यानी 'घोषणा पत्र' जिसके एक क्लॉज़ ने विज़न को ही कठघरे में खड़ा कर दिया.

Karnataka, Assembly Elections, Prime Minister, Narendra Modi, BJP, Congress, Bajrang Dal, Hanumanकर्नाटक चुनाव को अपने भाषणों से पीएम मोदी ने एक अलग ही रंग में रंग दिया है

 

क्या जरूरत आन पड़ी थी बजरंग दल की तुलना पीएफआई से करने की ? घोषणा पत्र पार्टी का होता है, इसमें कही किसी बात से पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता. कूटनीति के तहत यदि कहना ही था तो किसी नेता से कहलवा देते, अपरिहार्य परिस्थितियों में उस नेता का निजी बयान बताकर डैमेज कंट्रोल किया जा सकता था.

लगता है आज भी घोषणा पत्र तैयार करने वाले गांधी परिवार के सलाहकार वही लोग हैं जिन्होंने 26/11 वाले जिहादी हमले को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर थोपने की कोशिश की थी. ऐसा न होता तो किसी हाल में बजरंग दल का नाम पीएफआई के साथ न जोड़ा गया होता घोषणापत्र में.

निष्पक्ष मत तो यही निकल कर आता है कि घोषणा पत्र के इस हिस्से में बजरंग दल या पीएफआई का नाम नहीं भी लिखा जा सकता था, क्योंकि पीएफआई को तो पिछले साल ही केंद्र सरकार ने बैन कर दिया है. बैठे ठाले मुद्दा बीजेपी के हाथों में दे दिया और खुद प्रधानमंत्री ने जादुई ढंग से बजरंगदलियों को बजरंगबलियों में बदल दिया.

इतना ही नहीं मुद्दा राष्ट्रव्यापी बनाने की भी पूरी तैयारी है बीजेपी की. एक सवाल भी है क्या बजरंग दल का ज़िक्र करके कांग्रेस पार्टी ये सुनिश्चित करना चाहती है कि मुस्लिम वोट जनता दल सेक्युलर की ओर न जाए ? जवाब ही कांग्रेस का धर्मसंकट है. तभी तो कांग्रेस के स्टार प्रचारकों को सफाई देनी पड़ रही है. डी शिवकुमार कहते हैं अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो पूरे कर्नाटक में आंजनेय (हनुमान) के मंदिर बनवाने के लिए वो प्रतिबद्ध है.

बिल्कुल स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी ने जो किया है वो उसे चुनाव के समय नहीं करना चाहिए. उन्हें पूरे पैराग्राफ को बेहतर तरीके से लिखना चाहिए था, जैसे कि, 'चुनाव जीतने के बाद वो हर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करेगी जो समाज में द्वेष फैलाने की कोशिश करता है.' अब तो वोट डाले जा रहे हैं. भले ही कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी के हाथों में अब एक हथियार आ गया था, लेकिन क्या मतदान पर इस तरह नैरेटिव का वोटरों की एक बड़ी संख्या पर कोई असर पड़ेगा?

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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