बीजेपी के लिए कुमारस्वामी बन सकते हैं 'कर्नाटक के नीतीश कुमार'
2018 के विधानसभा चुनावों की हार के बाद ही कर्नाटक की गठबंधन सरकार बीजेपी की नजर पर चढ़ गयी थी. अब तो साफ है कि येदियुरप्पा का 'ऑपरेशन लोटस 3.0' असर दिखाने लगा है. रिजल्ट क्या होगा?
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मई, 2018 में बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा जिस मोड़ पर चूक गये थे, छह महीने बाद वहीं से शुरू हुई उनकी सक्रियता रंग दिखाने लगी है. महाराष्ट्र के बीजेपी मंत्री जिस तरह कर्नाटक सरकार के दो दिन में गिर जाने का दावा कर रहे हैं, बिलकुल वैसा ही भले न हो लेकिन खतरे के बादल तो मंडराने ही लगे हैं. येदियुरप्पा की ताजा बेकरारी की वजह अपनी जगह है, लेकिन बीजेपी नेतृत्व भी लोकसभा चुनावों के हिसाब से राजनीतिक हिसाब लगा रहा होगा.
कुमारस्वामी सरकार से दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापसी से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है - लेकिन जो कुछ भी हो रहा है वो किसी बड़े खतरे का मजबूत अलर्ट तो समझा ही जाना चाहिये.
ये तो साफ है कि कर्नाटक बीजेपी का सबसे कारगर नुस्खा 'ऑपरेशन लोटस 3.0' असर दिखाने लगा है.
कर्नाटक में गठबंधन सरकार पर कितना खतरा?
महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार में राम शिंदे मंत्री हैं जो कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार की उम्र महज दो दिन बता चुके हैं. हालांकि, उसमें से काफी वक्त गुजर चुका है. मीडिया में राम शिंदे का बयान था, 'लोगों के जनादेश की अनदेखी नहीं की जा सकती. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को सर्वाधिक मत मिले थे लेकिन कांग्रेस की राजनीति ने हमें सत्ता से दूर कर दिया.'
राम शिंदे ने बीजेपी का इरादा जाहिर किया तो बीजेपी सांसद प्रताप सिन्हा ने भी अपनी इच्छा के जरिये उस पर मुहर लगा दी, 'येदियुरप्पा को अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखना हमारी इच्छा है. 104 सीटें जीतने के बाद हम खामोश कैसे बैठ सकते हैं.'
कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा तो कह रहे हैं कि राज्य में कांग्रेस-जेडीएस सरकार की अंदरूनी कलह के कारण खुद ही गिर जाएगी. विपक्ष के ऐसे दावों और ख्वाहिशों से सत्ता पक्ष खुद बेअसर दिखाने की कोशिश कर रहा है. जेडीएस अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा कहते हैं, 'सरकार पर कोई संकट नहीं है. जिन दो विधायकों ने समर्थन वापस लिया है, वे किसी पार्टी से जुड़े हुए नहीं थे. दोनों ही विधायकों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था. इसलिए निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने को ज्यादा प्रचारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है.'
देवगौड़ा ठीकरा मीडिया पर फोड़ कर ध्यान बंटाने की कोशिश भले करें, लेकिन हकीकत को झुठला नहीं सकते. देवगौड़ा की ही तरह मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार भी गठबंधन सरकार को लेकर दावे कर रहे हैं.
देवगौड़ा के बेटे मुख्यमंत्री कुमारस्वामी भी वैसी ही दलील देते हैं, 'मुझे आपनी ताकत का अंदाजा है. कर्नाटक सरकार स्थिर है. दो विधायकों के समर्थन वापसी की घोषणा से क्या होगा?'
सरकार पर खतरे के बादल, लेकिन कुर्सी पर...
दो निर्दलीय विधायकों आर. शंकर और एच. नागेश ने कुमारस्वामी सरकार से समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल वजूभाई वाला को सौंप दिया है. 224 विधायकों वाले कर्नाटक में बहुमत का आंकड़ा 113 है और दो विधायकों की समर्थन वापसी के बाद भी कुमारस्वामी के पास 117 विधायकों का समर्थन हासिल है. कांग्रेस के विधायकों के मुंबई के होटल में होने की खबर के बीच बीजेपी ने भी अपने सभी विधायकों को हरियाणा के गुरुग्राम में शिफ्ट कर दिया है.
बीजेपी का ऑपरेशन लोटस 3.0
2008 में येदियुरप्पा जब पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने तो बीजेपी की गठबंधन सरकार अल्पमत में थी. अल्पमत को बहुमत में बदलने के लिए बीजेपी ने तभी एक तरकीब निकाली, जिसे ऑपरेशन लोटस नाम मिला. तब दूसरे दलों के विधायकों से इस्तीफे दिलवाने के बाद बीजेपी ने विधानसभा में बहुमत हासिल कर लिया. बाद में बीजेपी ने उन 8 विधायकों को अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया जिनमें से पांच ही जीत पाये, लेकिन तब तक बीजेपी का काम पूरा हो चुका था.
बीजेपी की सरकार बनाने की पिछली कोशिश को ऑपरेशन लोटस 2.0 माना गया जो नाकाम रहा, ताजा प्रयास ऑपरेशन लोटस 3.0 के रूप में चर्चित हुआ है. खुद कुमारस्वामी भी कहते हैं, 'कोई शक नहीं कि ऑपरेशन लोटस 3.0 शुरू हो चुका है. बीजेपी हमारे विधायकों को लालच दे रही है. मुझे पता है कि कितना पैसा और गिफ्ट विधायकों को ऑफर किया जा रहा है. मुझे पता है कि मुंबई में किसके नाम से कमरे बुक कराए थे.'
कर्ज माफी को लेकर मोदी के निशाने पर कर्नाटक
कर्नाटक निशाने पर है ये तो तभी लगने लगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में कांग्रेस की कर्जमाफी के नमूने के तौर पर कर्नाटक का खासतौर पर जिक्र होने लगा.
1. रायबरेली की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समझाया कि कर्नाटक में सरकार आने के 10 दिन के भीतर कर्ज माफ करने की बात कही गई थी लेकिन छह महीने बीत जाने के बाद भी 1000 किसानों का कर्ज माफ हो पाया.
2. हफ्ते भर बाद कर्नाटक के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं के साथ ऑनलाइन संवाद में भी प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस-जेडीएस सरकार को टारगेट किया और कर्जमाफी के मुद्दे पर सवाल खड़े किये.
3. कर्नाटक में 22 दिसंबर को मंत्रिमंडल विस्तार हुआ. कांग्रेस ने रमेश जार्कीहोली को कैबिनेट से हटाकर उनके भाई को मंत्री बनाने का फैसला लिया. नाराज रमेश उसके बाद ही भूमिगत हो गए और उसमें बीजेपी के हाथ होने की चर्चा शुरू हो गयी.
4. चार दिन बाद 26 दिसंबर को बीजेपी नेता उमेश कट्टी ने कांग्रेस के 12 विधायकों के अपने संपर्क में होने की बात कही और दावा किया कि सरकार का गिरना तय हो है. उमेश कट्टी को येदियुरप्पा का करीबी माना जाता है.
5. तीन दिन बाद बीजेपी की गाजीपुर रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने गठबंधन सरकार पर कर्नाटक में किसानों की कर्जमाफी को लेकर वादाखिलाफी की बात जोर देकर उछाली.
मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है कि रमेश जार्कीहोली को लेकर येदियुरप्पा दिल्ली भी पहुंचे थे लेकिन अमित शाह ने खाली हाथ लौटा दिया. नेतृत्व ने पूरे नंबर के बाद ही आगे के लिए बात करने को कह कर मामला टाल दिया.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में एक गुमनाम बीजेपी नेता का कहना है, 'करीब एक दर्जन विधायक हमारे साथ हैं लेकिन सभी को एक जगह नहीं रखा गया है. जैसे ही ये संख्या 17 पहुंचेगी हम उन्हें दिल्ली में एक प्रेसवार्ता में सामने लेकर आएंगे और ये सरकार लोकसभा चुनावों से पहले ही गिर जाएगी.' ऑपरेशन लोटस 3.0 के तहत बीजेपी की कोशिश है कि कम से कम 14 विधायक इस्तीफा दे दें ताकि विधानसभा 207 पर आ जाये - और बीजेपी मौजूदा सीटों के साथ ही बहुमत में आ जाये.
अब सवाल है कि बीजेपी के इस ऑपरेशन की चपेट में सिर्फ कांग्रेस आएगी या सीएम कुमारस्वामी भी?
क्या कुमारस्वामी और बीजेपी हाथ मिला सकते हैं?
कर्नाटक में जिस तरीके से राजनीतक शह-मात का खेल चल रहा है, लड़ाई कहां पहुंच कर खत्म होगी कहना मुश्किल है. ऐसा भी नहीं कि सिर्फ बीजेपी ही अपनी चाल चल रही है, कांग्रेस भी अपने मिशन में लगी है - और कांग्रेस कितने पानी में है, ये तो पिछली बार येदियुरप्पा को बता ही दिया था.
अव्वल तो बीजेपी खुद सरकार बनाने की कोशिश में है, लेकिन अगर संभव न हुआ तो वो कांग्रेस को सत्ता में हिस्सेदारी से हटाना चाहेगी - फिर तो ऐसा भी हो सकता है कि कुमारस्वामी की कुर्सी बची भी रह जाये. बीजेपी को समस्या कुमारस्वामी के मुकाबले कांग्रेस से ज्यादा है.
कुमारस्वामी के सामने कांग्रेस के साथ बने रहने की कोई सैद्धांतिक मजबूरी नहीं है. जेडीएस ने चुनाव पूरी तरह अलग लड़ा था - और चुनावों में लगातार बीजेपी और कांग्रेस के निशाने पर रहे भी - और वैसे ही दोनों से दूरी भी बनाये रखी.
फिर तो कांग्रेस को छोड़ कर कुर्सी पर बने रहने के लिए बीजेपी का सपोर्ट लेने का विकल्प खुला हुआ है. सिर्फ नीतीश कुमार की तरह थोड़ी सी पैंतरेबाजी करनी होगी. बताना होगा कि कैसे कांग्रेस के साथ सरकार चलाना और काम करना मुश्किल हो रहा था - और लोगों को ये समझाने में भी उन्हें कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये.
अगर जेडीएस को बीजेपी की बी टीम बताते बताते कांग्रेस उसके साथ सरकार बना सकती है - तो कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए बीजेपी कुमारस्वामी से दोबारा हाथ क्यों नहीं मिला सकती?
कुमारस्वामी की मुश्किल इससे टल तो सकती है लेकिन बीजेपी से भी हाथ मिलाते हैं तो सरकार की उम्र लोक सभा चुनावों तक ही निश्चित हो पाएगी - बाद में फिर से खतरा मंडराने लगेगा. वैसे तब काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि चुनावों बाद दिल्ली का ताज किसे हासिल होता है?
बीजेपी भी चुनाव से पहले ही पूरी तरह सत्ता हासिल करना या फिर सत्ता में हिस्सेदारी चाह रही होगी. अब सवाल ये है कि क्या बीजेपी अभी ऐसे किसी डील के लिए तैयार हो चुकी है?
क्या बीजेपी कुमारस्वामी के नाम पर राजी होगी?
बीजेपी को एनडीए में नये साथियों की भी बहुत जरूरत है. कुमारस्वामी के कांग्रेस के साथ होने से तो बेहतर होगा बीजेपी उन्हें खुद के पाले में कर ले. ये ज्यादा फायदेमंद भले न हो लेकिन कांग्रेस सत्ता से बाहर तो हो ही जाएगी, कमजोर भी होगी.
विधानसभा चुनाव में बीजेपी खुद को आजमा ही चुकी है. बहुमत भले न मिला हो, लेकिन नतीजे इतने बुरे भी नहीं थे. फिर भी जरूरी नहीं कि लोकसभा चुनाव में रिजल्ट विधानसभा जैसे ही रहेंगे. विधानसभा में कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा बीजेपी को मिला था, तो लोक सभा में मोदी सरकार खिलाफ जो माहौल होगा उसका भी तो कुछ न कुछ असर होगा. कर्नाटक के बाद हुए विधानसभा चुनावों ने इस बात के संकेत भी दे चुके हैं.
कर्नाटक में मचे सियासी उठापटक को देखते हुए कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस सतर्क हो गई है - ये जरूरी तो नहीं कि ऑपरेशन लोटस का दायरा सिर्फ कर्नाटक तक ही सीमित रहे.
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