हिजाब विवाद में कूदे जावेद अख्तर की सोच 2014 के बाद बदली है!
घटनाओं को चुन-चुनकर सांप्रदायिक रंग देने वाला ये बुद्धिजीवी वर्ग हिजाब विवाद (Hijab Row) के शुरुआती दौर में ही लिख सकता था कि 'स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म का पालन किया जाना चाहिए और हिजाब से परहेज ही सही है.' लेकिन, जावेद अख्तर (Javed Akhtar) समेत इस बुद्धिजीवी वर्ग की प्रतिक्रिया इस विवाद के शुरुआती दौर में आती, तो उन्हें अपना एजेंडा साधने का मौका नहीं मिलता.
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कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाने को लेकर सीजेआई ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर न फैलाने की नसीहत दी है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने छात्र-छात्राओं से स्पष्ट रूप से कहा है कि मामले पर सुनवाई जारी रहने तक शिक्षण संस्थानों में ऐसी कोई भी पोशाक पहनने पर जोर न दें, जिससे लोग भड़क सकते हैं. बताने की जरूरत नहीं है कि कोर्ट का इशारा हिजाब के साथ उसका विरोध करने में इस्तेमाल हो रहे भगवा गमछा (Bhagwa Scarf) की ओर है. लेकिन, इन सबके बीच हर मुद्दे पर अपनी राय रखने वाले मशहूर गीतकार जावेद अख्तर भी इस हिजाब विवाद में कूद पड़े हैं. जावेद अख्तर ने ट्वीट कर लिखा है कि 'मैं कभी भी हिजाब या बुर्का के पक्ष में नहीं रहा. मैं अब भी उस पर कायम हूं, लेकिन साथ ही मेरे मन में इन गुंडों की भीड़ के लिए सिर्फ गहरी घृणा हैं, जो लड़कियों के एक छोटे समूह को डराने की कोशिश कर रहे हैं और वो भी असफल रूप से. क्या ये उनके हिसाब से मर्दानगी है. कितने अफसोस की बात है.' वैसे, जावेद अख्तर हमेशा से ही हिजाब के खिलाफ रहे हैं. लेकिन, यहां उनके ट्वीट की अगली लाइन पर बात करना जरूरी है. क्योंकि, हिजाब विवाद में कूदे जावेद अख्तर की सोच 2014 के बाद बदली है.
ये बुद्धिजीवी वर्ग अपने एजेंडों को साधने के लिए एक खास समय का इंतजार करता है.
विवाद बढ़ने के बाद ही आती है प्रतिक्रिया
दरअसल, हमारे देश में 2014 के बाद जावेद अख्तर जैसे कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों की भाषा बहुत तेजी से बदली है. असहिष्णुता जैसे शब्द का अविष्कार इसी बुद्धिजीवी जमात ने 2014 के बाद किया है. और, तब से ही ऐसे मुद्दों पर सीधी और स्पष्ट बात न रखते हुए अपने तरीके से गोल-मोल घुमाकर कहने का चलन इस कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने बढ़ाया है. घटनाओं को चुन-चुनकर सांप्रदायिक रंग देने वाला ये बुद्धिजीवी वर्ग हिजाब विवाद उठने के साथ ही लिखने को तो सीधे तौर पर ये भी लिख सकता था कि 'स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म का पालन किया जाना चाहिए और हिजाब से परहेज ही सही है.' लेकिन, जावेद अख्तर समेत इस बुद्धिजीवी वर्ग की प्रतिक्रिया इस विवाद के शुरुआती दौर में आ जाती, तो शायद उन्हें अपनी वो बात कहने का मौका नहीं मिल पाता, जो वो कहना चाहते थे और उन्होंने कही है. अपने ट्वीट के जरिये जावेद अख्तर ने बहुत ही चतुराई से देश की बहुसंख्यक आबादी को अपराधबोध से भरने का अपना एजेंडा साधा है.
ये वही जावेद अख्तर हैं, जिन्होंने आरएसएस की तुलना तालिबान से करने पर शिवसेना के मुखपत्र सामना में बाकायदा एक लेख लिखकर हिंदुओं को दुनिया का सबसे सहिष्णु समुदाय बताया था. खुद उन्होंने ने ही सामना में लिखा था कि 'दुनिया में हिंदू सबसे ज्यादा सभ्य और सहिष्णु समुदाय हैं. मैंने इसे बार-बार दोहराया है और इस बात पर जोर दिया है कि भारत कभी अफगानिस्तान जैसा नहीं बन सकता, क्योंकि भारतीय स्वभाव से चरमपंथी नहीं हैं. सामान्य रहना उनके डीएनए में है.' फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि जावेद अख्तर को इन छात्रों में गुंडे नजर आने लगे. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि भगवा गमछा पहनने वाले छात्रों के साथ कुछ 'बाहरी तत्व' भी शामिल हुए हैं. जो निश्चित तौर पर हिंदूवादी संगठन ही हैं. लेकिन, इन बाहरी तत्वों की वजह से सारे छात्रों को गुंडा घोषित कर देना जायज नजर नहीं आता है. जबकि, जय श्री राम के नारों पर अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाने वाली मुस्लिम छात्रा ने ही अपने कई इंटरव्यू में इस बात का भी खुलासा किया है कि छात्रा को उसके गैर-मुस्लिम दोस्तों का भी साथ मिला है.
I have never been in favour of Hijab or Burqa. I still stand by that but at the same time I have nothing but deep contempt for these mobs of hooligans who are trying to intimidate a small group of girls and that too unsuccessfully. Is this their idea of “MANLINESS” . What a pity
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) February 10, 2022
सेलेक्टिव मुद्दों पर सेलेक्टिव राय
कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात सामने आ चुकी है कि बीते साल दिसंबर तक हिजाब का समर्थन करने वाली छात्राएं इसे पहने बिना ही स्कूल-कॉलेजों में आ रही थीं. फिर दो महीने में ऐसा क्या हुआ कि इन छात्राओं को हिजाब पहनना अपना संवैधानिक अधिकार लगने लगा. और, क्लास तक में वो हिजाब के साथ ही पढ़ाई करने की मांग करने लगीं. हिजाब पहले नहीं पहनने के दावे को प्रमाणित करने के लिए कुछ तस्वीरें भी सामने आ चुकी हैं. कोई इस सवाल का जवाब नहीं बता रहा है कि कर्नाटक के उडुपी में कुछ गिनी-चुनी छात्राओं की ये मांग कैसे पूरे राज्य में फैल गई? हिजाब पहनने की स्वतंत्रता की मांग का पहला विरोध कॉलेज प्रशासन ने ही किया था. और, उसके बाद इस मामले में हुई राजनीति ने हिजाब के सामने भगवा गमछा को खड़ा कर दिया. न्यूजमिनट के अनुसार, हिजाब विवाद को तूल देने में कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ सामने आया है.
यहां अहम सवाल यही है कि अगर किसी कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन के भड़कावे में आकर मुस्लिम छात्राएं हिजाब को पहनने की जिद न पकड़तीं, तो क्या उनके विरोध में भगवा गमछा सामने आता. वैसे, इस कथित बुद्धिजीवी वर्ग की सामाजिक मुद्दों को सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. क्योंकि, अगर ऐसा होता तो, जावेद अख्तर के ट्वीट में हिजाब पहनने वाली मुस्कान को पांच लाख का इनाम देने का ऐलान करने वाले जमीयत उलेमा-ए हिंद की निंदा भी नजर आती और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया की भी. लेकिन, उनके ट्वीट में दूर-दूर तक ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया था. खैर, इसके होने की संभावना भी बहुत कमजोर है. क्योंकि, एनसीपी नेता शरद पवार की तीसरा मोर्चा बनाने की मीटिंग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले बुद्धिजीवी वर्ग के जावेद अख्तर शायद ही ऐसा कर सकते थे. जानकारी के लिए ये भी बताना जरूरी है कि इस हिजाब विवाद में कर्नाटक हाई कोर्ट में मुस्लिम छात्राओं की ओर से पेश हुए वकील देवदत्त कामत कांग्रेस नेता हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो हिजाब विवाद में कूदे जावेद अख्तर की सोच 2014 के बाद बदली है.
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