हिजाब केस: जज साहब, च्वाइस सर्वोपरि है तो क्या कोर्ट में वकील बिना गाउन के पैरवी कर सकते हैं?
कर्नाटक हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Row) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हो रही सुनवाई पर फैसला तार्किक ही होना चाहिए. वरना इसकी वजह से कई समस्याएं खड़ी हो जाएंगी. वैसे, इसी साल पटना हाईकोर्ट के एक जज ने बिहार सरकार के प्रधान सचिव (शहरी विकास) आनंद किशोर को उनके 'अनुचित' ड्रेसिंग कोड (Dress Code) के लिए जमकर फटकार लगाई थी.
-
Total Shares
हिजाब विवाद को लेकर चल रही सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने बंटा हुआ फैसला दिया है. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए हिजाब विवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया. वहीं, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए हिजाब बैन को खारिज कर दिया. दोनों जजों ने अपने फैसलों के बारे में अपने-अपने तर्क दिए. वैसे, इन तमाम तर्कसंगत बातों से पहले इस सवाल का जवाब खोजना जरूरी है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश हो रहा कोई वकील या अन्य शख्स अपनी यूनिफॉर्म को छोड़कर हिजाब या ऐसा ही कोई अन्य धार्मिक या गैर-परंपरागत कपड़े पहनकर आएगा. तो, क्या सुप्रीम कोर्ट उसकी इस यूनिफॉर्म को स्वीकार करेगा? वैसे, हिजाब विवाद को तर्कपूर्ण तरीके से ही देखा जाना चाहिए.
हिजाब के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची छात्राओं ने हिजाब के लिए अपनी पढ़ाई को छोड़ दिया.
उससे पहले ऐसे ही एक मामले पर नजर डाल लेना जरूरी है. दरअसल, इसी साल पटना हाईकोर्ट के एक जज ने बिहार सरकार के प्रधान सचिव (शहरी विकास) आनंद किशोर को उनके 'अनुचित' ड्रेसिंग कोड के लिए जमकर फटकार लगाई थी. जज पीबी बजंथरी की कोर्ट में IAS अधिकारी आनंद किशोर एक कार्यवाही के दौरान शर्ट और खुले कॉलर में पहुंच गए थे. जिसे देखकर हाईकोर्ट के न्यायाधीश भड़क गए और फटकार लगाते हुए कहा था कि 'क्या आप नहीं जानते कि आपको कोर्ट में कौन सा ड्रेस कोड पहनना है. क्या आपको लगता है कि यह एक सिनेमा हॉल है?' वैसे, इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने गर्मी के दिनों में वकीलों के लिए काला कोट और गाउन पहनना अनिवार्य न रखने की मांग पर सुनवाई से इनकार कर दिया था. आइए डालते हैं ऐसे ही कुछ तर्कों पर नजर...
जज साहब कुछ अधिक ही सख़्त हो रहे हैं। इतनी देर मुद्दों पर बात कर लेते तो कुछ काम की बात निकलती। pic.twitter.com/fI2y9He8Hj
— Narendra nath mishra (@iamnarendranath) June 11, 2022
इन तर्कों पर भी बात की जानी जरूरी है
हिजाब की अनुमति अन्य लड़कियों के लिए सिरदर्द: अगर हिजाब को इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा का हिस्सा मान लिया जाए. तो, क्या कुछ लड़कियों की वजह से सभी मुस्लिम लड़कियों के लिए यह पहनना जरूरी नहीं हो जाएगा. क्योंकि, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं कि कर्नाटक की बच्चियां इसलिए हिजाब पहन रही हैं. क्योंकि, कुरान में अल्लाह ने उन्हें कहा है. अगर असदुद्दीन ओवैसी की इसी तर्क के हिसाब से चलें, तो देशभर की मुस्लिम लड़कियों के लिए हिजाब पहनना अपने आप ही अनिवार्य हो जाएगा. जिन घरों में अभी तक हिजाब या बुर्का की अनिवार्यता नहीं थी. वहां भी मुस्लिम लड़कियों से हिजाब पहनकर ही बाहर निकलने को कहा जाएगा.
"We all need to understand one thing that their problem is not with me, you or Shifa nor Almaz. Their problem is with "La ilaha illallah..." with you Tauheed (Onennes of god) So understand it".Udupi Hijab Activist @Aliyassadi in Today's Girls Conference in Mangalore. pic.twitter.com/Ly8TWiubGJ
— Syed Mueen (@Mueen_mgd) July 16, 2022
क्योंकि, ये इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा का हिस्सा बन चुका है. वैसे भी संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कह ही दिया है कि स्कूलों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब ना पहनने पर आवारगी बढ़ेगी. हिजाब पर बैन लगा तो न सिर्फ इस्लाम को बल्कि समाज को भी नुकसान होगा. इस स्थिति में इस्लाम और समाज को होने वाले नुकसान से बचाने और मुस्लिम लड़कियों में हिजाब न पहनने की वजह से बढ़ सकने वाली आवारगी रोकने के लिए मॉरल पुलिसिंग शुरू हो जाएगी. कोई भी कठमुल्ला सड़क चलती मुस्लिम लड़की के साथ ही अन्य लड़कियों को भी हिजाब पहनने की नसीहत देने लग पड़ेगा. क्योंकि, हिजाब से पहले तो इस्लाम ही दुनियाभर के लिए लाया गया है.
तर्क है कि लड़कियों की शिक्षा जरूरी: हिजाब के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची छात्राओं ने हिजाब के लिए अपनी पढ़ाई को छोड़ दिया. तो, किस आधार पर ये कहा जा रहा है कि इन लड़कियों के पढ़ाई जरूरी है. कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के मंच पर हिजाब बैन की कथित शिकार एक छात्रा आलिया अस्सादी कहती हैं कि 'हम सभी को एक बात समझने की जरूरत है कि उन्हें समस्या मुझसे या आप से या शिफा या अल्माज से नहीं है. उनकी समस्या हमारी तौहीद 'ला इलाहा इल्लल्लाह' से है. इसे समझिए.' सोशल मीडिया पर हिजाब बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची लड़कियों के ऐसे दर्जनों वीडियो मौजूद है. जो लड़कियां हिजाब की आड़ में इस्लाम की तकरीरें कर रही हों, उनके लिए शिक्षा का कितना महत्व होगा, ये बताना जरूरी नहीं है. कहना गलत नहीं होगा कि इन लड़कियों के लिए शिक्षा से ज्यादा हिजाब जरूरी है.
क्या सच में हिजाब उतरना गरिमा और निजता पर हमला: पीएफआई के कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया संगठन से जुड़ीं स्कूल में पढ़ने वाली कुछ मुस्लिम छात्राओं के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने को क्या सभी मुस्लिम लड़कियों की राय माना जा सकता है? क्या स्कूलों में प्रवेश से पहले हिजाब उतारने को निजता और गरिमा पर अतिक्रमण कहा जा सकता है? जब धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की बात आती है, तो किसी अनिवार्य धार्मिक परंपरा के लिए जगह ही नहीं रह जाती है. क्योंकि, स्कूल में सभी छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं. नाकि अपनी धार्मिक पहचान को दिखाने के लिए. अगर हिजाब बैन को हटा दिया जाए, तो इस आधार पर स्कूल-कॉलेज आने वाली मुस्लिम लड़कियों से इतर अन्य छात्राओं की गरिमा और निजता पर अतिक्रमण होगा. क्योंकि, वे तो ऐसा नहीं कर रही हैं. वैसे, कट्टर इस्लामिक देश ईरान में हिजाब के खिलाफ चल रहे हालिया प्रदर्शनों पर भी लोगों का ध्यान जाना जरूरी है. वहां तो खुद मुस्लिम महिलाएं ही इसके खिलाफ हैं. क्या उनके लिए यह इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा का हिस्सा नहीं है? क्या अन्य देशों में हिजाब न पहनने वाली मुस्लिम महिलाएं इस्लाम को नहीं मानती हैं?
अनिवार्य धार्मिक परंपरा बन जाएगी मुसीबत: हिजाब के पक्ष में तर्क दिया गया कि इस्लाम में हिजाब पहना अनिवार्य धार्मिक परंपरा है या नहीं, इसका हिजाब विवाद से कोई लेना-देना नहीं है. अगर यह दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाता है, तो स्कूलों में हिजाब बैन करना गलत है. लेकिन, हिजाब के पक्ष में दिए जा रहे तमाम तर्क इसी बात पर आधारित हैं कि ये इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा का हिस्सा है. जबकि, दुनिया के दर्जनों देशों ने हिजाब को बैन कर रखा है. जिसमें सीरिया और इजिप्ट जैसे मुस्लिम बहुल इस्लामिक देश भी शामिल हैं. वैसे, इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपराओं को अगर क्रॉसचेक करने के लिए हर बार सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिया जाएगा. तो, संभव है कि इसके लिए अलग से दर्जनों बेंचों का निर्माण करना पड़ेगा. क्योंकि, इसके बाद स्कूलों में नमाज पढ़ने के लिए अलग जगह, कैंटीन में हलाल मीट, रविवार की जगह शुक्रवार और गर्मियों की छुट्टी रमजान के महीने में करने, पाठ्यक्रम से राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरुनानक, ईसामसीह को निकालने जैसी कई चीजों पर भी फैसला करना पड़ेगा. क्योंकि, इस्लाम के हिसाब से ये तमाम चीजें ही अनिवार्य हैं.
आपकी राय